ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इनके माता-पिता से भी परे-ऊपर कोई शक्ति है जिसे प्राप्त करने के लिए सभी देवता मनुष्य शरीर को मांगते रहते हैं : बाबा उमाकान्त जी महाराज

  • अच्छे काम में भगवान, प्रभु हमेशा मदद करते हैं
  • इस अनमोल मनुष्य शरीर में ही वो रास्ता है जिससे सबके पिता परमात्मा, प्रभु को जीते जी प्राप्त किया जा सकता है

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। लोक बनाने यानी इस दुनिया में सफल, संतुष्ट, प्रसन्न जीवन जीने के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास के उच्चतम स्तर तक पहुंचने के तरीकों को बताने वाले, उस रास्ते पर चलाने वाले और मंजिल तक पहुंचाने वाले इस समय के पूरे सर्व समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 5 जनवरी 2022 को रत्नाखेड़ी उज्जैन में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि देखो जिन-जिन लोगों को आप भगवान कहते हो चाहे राम-कृष्ण, बुद्ध, महावीर, परशुराम भगवान हो, चाहे जितने भी लोगों को भगवान आप कहते हो, सब मनुष्य शरीर में ही आए थे। हमारे आप जैसे ही थे। काम उन्होंने इस तरह का किया कि जिससे लोग उनको पूजने लग गए, जगह-जगह उनकी मूर्तियां बनाने लग गए। चले जाने के हजारों वर्ष बाद भी लोग मूर्तियों की पूजा करने लग गए तो उन्होंने काम इस तरह का किया। 

आदमी जब सबको एक समान भाव से देखता है, भूखे-प्यासे को खिलाता-पिलाता है तो लोग कहते है इंसान नहीं भगवान है

आदमी भी जब दूसरों के काम आता है, परोपकार-सेवा करता है, सबको समान भाव से देखता है, दूसरे को अपनी रोटी में से रोटी खिला देता है, प्यासे को पानी पिला देता है तब उसको लोग कहते हैं कि ये इंसान नहीं भगवान है।

सभी देवी-देवता मनुष्य शरीर मांगते रहते हैं

भगवान से भी ऊपर का दर्जा है, देवी-देवताओं के भी ऊपर से का दर्जा है। जैसे आप देखो 33 करोड़ दुर्गा, 10 करोड़ शंभू शुरू में ही बनाए गए थे। इसके अलावा शिव, ब्रह्मा, विष्णु यह देवता हैं। इनकी मां आद्या महाशक्ति और इनके पिता निरंजन यह सब देवताओं की श्रेणी में आते हैं। तो इनसे भी ऊपर, इनसे परे कोई शक्ति है जिसके लिए यह सभी बराबर मनुष्य शरीर को मांगते रहते हैं।

 नर समान नहीं कौनो देही। जीव चराचर जाचर देही।।

जितने भी चर और अचर के जीव हैं सब मनुष्य शरीर को मांगते रहते हैं। किस लिए मांगते रहते हैं? कि यह जो परमात्मा की अंश जीवात्मा हमारे आपके शरीर के अंदर हैं, यह वहां अपने असला घर, परमात्मा के पास पहुंच जाए। परमात्मा के पास जब पहुंचेगी तब उसका दर्शन होगा। जो सबका सिरजनहार है, देवी-देवता और जितने भी अंड, पिंड, ब्रह्मांड के जितने भी जीव हैं, वह तो सबका मालिक है। तो उसकी गति, पावर, स्थान अलग होता है तो आदमी भी यही सब कुछ बन सकता है।

सच्चे सन्त के सतसंग में जाने से समझ और इंसानियत आती है

सतसंग जब मिलता है तो हैवानियत, शैतानियत छूटती, इंसानियत आती है। इंसानियत से जब अच्छे काम में लग जाता है तो भगवान उसको लोग मानने लगते हैं फिर भगवान की शक्ति-ताकत काम करने लग जाती है। अच्छे काम में भगवान प्रभु हमेशा मदद करते हैं, उसी तरह से अकल बुद्धि वो दे देते हैं तो उसी तरह से ताकत आ जाती है। इस जीवात्मा को सिरजनहार, सबके मालिक परमात्मा तक पहुंचा दिया जाए। वह भी रास्ता इसी मनुष्य शरीर के अंदर में है। तो सतसंग से इन बातों की जानकारी होती है। इसलिए सच्चे सन्त के सतसंग को सुनना और उस पर अमल करना चाहिए।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

कम कर्मी जीवों को संतो की बात जल्दी समझ में आ जाती है। जानवरों की जीवात्मा हृदय में होती है। मनुष्य की जीवात्मा दोनों आंखों के बीच में होती है। शरीर स्वस्थ रखने एवं कर्म कटवाने के लिए सेवा कराई जाती है। सतगुरु के दरबार में एक का दस गुना मिलता है।

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