सन्त उमाकान्त जी ने आत्मा का उद्धार करने वाले और आदि से अंत तक रहने वाले पांच नामों का खोला भेद


  • गोस्वामी जी ने राम चरित मानस में स्पष्ट कहा है कि कलयुग में केवल इसी नाम से ही जीव का उद्धार, मुक्ति-मोक्ष हो सकता, दूसरा कोई उपाय नहीं

इंदौर (मध्य प्रदेश)। विश्व विख्यात सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, मनुष्य शरीर में मौजूद समय के महापुरुष उज्जैन वाले समरथ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 मार्च 2022 सायं काल इंदौर आश्रम में दिए संदेश में बताया कि जब भेदी गुरु, समरथ गुरु मिल जाते हैं तो वह नाम बताते हैं। तो वो नाम जो मैं आज आये हुए लोगों को बताऊंगा, जो हमारे गुरु महाराज मुझको बताने के लिए आदेश दे करके गए थे, वो नाम आदि नाम है। कहा गया हैं-

कोटि नाम संसार में, ताते मुक्ति न होय। आदि नाम जो गुप्त जपै, बिरला जानै कोय।। 

ये नाम आदि से चला आ रहा है और आगे जब तक सृष्टि रहेगी, दुनिया, धरती-आसमान, पेड़-पौधे, नदी-नाले, आग-पानी आदि रहेंगे तब तक यह नाम रहेगा, अंत तक रहेगा। आदि से ही हम सब लोग उतारे गए और अंत जहां है, तहाँ तक यही नाम पहुंचाएगा। तो कहा कि बिरला जाने कोई। उस प्रभु को विरला ही कोई जान सकता है। कौन? जो आदि नाम को गुप्त हो करके जपता है। कहा न गुप्त होकर के भक्ति करना चाहिए। भक्ति में बहुत से लोग दिखावा करते हैं। दिखावे की भक्ति नहीं होती है। गुप्त दान करना चाहिए। भेद को गुप्त रखना चाहिए। 

इस नाम को गुप्त जपा जाता है, दिखावे के लिए नहीं क्योंकि यह ध्वन्यात्मक नाम है। अंतर में यह प्रकट होता है। अंतर में इसका रस मिलता है। बाहर इस जबान का रस, शरीर के स्पर्श का रस आदि अलग है। अब इस समय मन बाहर के रस में लगा हुआ है। इंद्रियों के घाट पर बैठकर रस लेने में लगा हुआ है। उसी रस को आप सब लोग जानते हो। लेकिन अंदर का रस कुछ और है। उसको कौन जान सकता है? बिरला ही कोई जानता है। तो गुप्त रूप में उसको जपना रहेगा। कैसे जपना रहेगा ? वह मैं आज आपको इस सतसंग में बताऊंगा। नाम, रूप, स्थान और इनकी आवाज मैं आपको अभी बताऊंगा जिसके लिए गोस्वामी जी महाराज ने कहा-

नाम लेतु भवसिंधु सुखाही। सुजन विचार करो मनमाही।।

नाम लेते ही भव सागर सूख जाए, यह वह नाम है।

कलयुग केवल नाम आधारा। सुमिर-सुमिर नर उतरहि पारा।।

इस कलयुग में केवल इसी नाम के आधार से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है। एक ही तरह का नाम शुरू से चला आया है बाकी नाम तो बदलते रहे। कैसो करोड़ों लाख नाम कृष्ण के। तो वो नाम तो बदलते रहे लेकिन ये नाम, आदि से अंत तक यही नाम रहे- पांच नाम जो आपको बताऊंगा।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

साधक के सभी कार्य अंतःकरण की शुद्धि के लिए होने चाहिए। कर्मों के चक्कर से जीव अनेकों शरीर धारण करता है। चरित्रहीन व्यक्ति बगैर मणि के सर्प की तरह से हो जाता है। झूठ बोली हुई बात कुछ समय के बाद भूल जाती है। सत्य बात हमेशा याद रहती है, इसलिए सत्य ही बोलो।

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