इतिहास साक्षी है मुक्ति-मोक्ष का रास्ता, नामदान देने का अधिकार, एक समय पर एक ही को होता है : बाबा उमाकान्त



  • जीवात्मा के मुक्ति-मोक्ष का रास्ता नामदान ले लो और दक्षिणा में अपनी सारी बुराइयां दे दो
  • शरीर से किये अपराधों की माफी शरीर रहते मांग लो वर्ना शरीर छूटने के बाद सिर्फ मिलती है सजा

गृहस्थ आश्रम में रहकर जीते जी प्रभु से मिलने, मुक्ति मोक्ष निर्वाण का मार्ग नामदान बताने वाले, उसपर चलने में भरपूर मदद करने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 5 जनवरी 2022 को उज्जैन (म.प्र.) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि इतिहास बता रहा है जितने भी सन्त समर्थ गुरु आए, शिष्य तो उनके बहुत रहे, लेकिन किसी एक ही को उन्होंने नाम दान देने का अधिकार दिया तो उसके मुंह से सुनना जरूरी होता है। इसीलिए ऑनलाइन, टेलीफोन से नामदान नहीं दिया जाता है। आमने-सामने बैठकर नाम दान दिया जाता है। आप अगर नाम को किसी को बताओगे या टाइप करके सुनाओगे या लिख करके दोगे तो उसका कोई फायदा होने वाला नहीं। और अगर यह धनी सोच लिये कि इसने मेरी इज्जत नहीं किया, सबको बताने लग गए तो कोई नुकसान हो जाय, नुकसान का आप कोई भी काम मत करना।

ऐसा सीधा-सरल रास्ता बताऊंगा कि गृहस्थ आश्रम में ही रहकर उस प्रभु को प्राप्त कर सकते हो : न आपको घर छोड़ना, न जमीन जायदाद, न बाल बच्चों को छोड़ना है। गृहस्थ आश्रम में ही रहो, (यदि) है तो- अच्छा खाओ, अच्छा पहनो, अच्छे घर में रहो। हम आपका घर या कोई चीज नहीं छुड़ा रहे।

हमारे यहां कोई भेदभाव नहीं, जो सबमें प्रभु की अंश जीवात्मा को देखता है, वह सबसे प्रेम करता है : देखो प्रेमियों हमारे यहां कोई भेदभाव नहीं है। गरीब-अमीर, छोटे-बड़े, सबको नाम दान देता हूं ।भगवान ने इंसान बनाया, कोई हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र कुछ नहीं बनाया। सबकी हड्डी, खून मांस, मुंह, टट्टी-पेशाब का रास्ता सबका एक जैसा, सबके अंदर एक जैसी जीवात्मा जो इस शरीर को चलाती है। जिसको जीवात्मा की जानकारी है, जो उसको देखता है, वह सबसे प्रेम करता है। उसके यहां कोई भेदभाव नहीं होता। हमारे यहां कोई भेदभाव नहीं। गुरु महाराज के पास आते थे लोग, उनके यहां भी कोई भेदभाव नहीं था। हमको तो गुरु के आदेश पर चलना है। वह जो काम छोड़कर के गए वह काम हमको करना है तो कहां से भेदभाव करेंगे? यहां कोई भेदभाव नहीं।

मांस, मछली, अंडा, शराब छोड़ो और दूसरी औरत के साथ बुरा कर्म मत करना : जो भी आप करते हो, मेहनत-ईमानदारी से काम करो, संयम-नियम से रहो। 22 घंटा अपने शरीर और बच्चों के लिए करो लेकिन 24 घंटे में से 2 घन्टे अपने आत्मा के लिए जरूर निकालो। आप कहोगे सारी मर्यादा का पालन करते हो तो दक्षिणा की मर्यादा को क्यों खत्म करते हो। दक्षिणा देने का मौका है। आपको जो मैं बताऊं वह दक्षिणा दो। आप अपनी बुराइयों को यहीं छोड़ दो। वही आपकी होगी दक्षिणा। अभी तक आपने मांस, मछली, अंडे, शराब, ताड़ी अफीम का सेवन किया, दूसरी औरत के साथ बुरा कर्म किया, बच्चियों दूसरे पुरुष के साथ बुरा कर्म किया, अब मत करना। तौबा कर लो, कान पकड़ लो, उस प्रभु से माफी मांग लो। कहते हैं सुबह का भूला जब शाम को घर वापस आ जाता है तो भूला नहीं कहलाता है।

गलती शरीर से किए तो शरीर से ही माफी हो सकती है : गलती की माफी मांग ली जाए समय से तब तो माफ हो जाता है। शरीर से आपने गलती किया तो शरीर रहते-रहते माफी मांग लोगे तब तो माफ हो जाएगा। शरीर छूटने के बाद चाहो माफी हो तब नहीं होगा तब तो सजा मिल जाएगी। इसलिए समय रहते चेत जाओ।

सन्त उमाकान्त जी के वचन : माया रूपी मधु में आप मस्त मत हो जाओ, इन्द्रियों के सुख के लिए ही सारा काम मत करो।मन जिधर लग गया और इन्द्रियों को सुख मिल गया, उसी में वो लय हो जाता है। जो शरीर के लिए सब कुछ और इसको चलाने वाली आत्मा के लिए कुछ नहीं करते उनको नरकों, चौरासी में डाल दिया जाता है। मनुष्य शरीर पाने का मतलब समझो। चूक जाने पर कितनी बार मरना-जीना पड़ता है। हर बार तकलीफ होती है। साधुओं को एक जगह पर ठहरना नहीं चाहिए, चलते रहना चाहिए।

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