- गुरु पर से विश्वास जब कम होता है, हटता है तब लोभ लालच काम क्रोध मान सम्मान का भूत सवार होता है
- पूरे समर्थ सन्त सतगुरु लोक और परलोक दोनों बना सकते हैं
लोक और परलोक दोनों बनाने के लिए गुरु की जरूरत होती है इसलिए जानकार पूरे समरथ सन्त सतगुरु की खोज करके अपना मानव जीवन सफल बना लेना चाहिए- इस बात को समझाने वाले, इस खोज को पूरा करने वाले इस समय के त्रिकालदर्शी समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने उज्जैन आश्रम से 3 मई 2022 सायंकाल को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव ऑनलाइन संदेश में गुरु की महिमा के बारे में बताया कि इस धरती पर हमेशा गुरु का स्थान, महत्व रहा है, चाहे जैसे गुरु रहे हो। इतिहास उठा कर देख लो, चाहे विद्या पढ़ाने, चाहे काम सिखाने, चाहे आध्यात्मिक गुरु रहे हो, गुरु की हमेशा लोगों को जरूरत पड़ी है। गुरु का काम अलग-अलग भले रहा हो लेकिन स्थान दर्जा अन्य स्थानों से ऊंचा रहा है। इसीलिए कहा गया गुरु बिना होए न ज्ञान। चाहे दुनिया का या चाहे आध्यात्मिक ज्ञान हो, बिना गुरु के पूरा नहीं होता, ज्ञान मिलता नहीं है।
इसी मनुष्य शरीर में मालिक की पूरी ताकत का इज़हार करा लेते हैं
गुरु का हमेशा महत्व रहा है। गुरु मनुष्य शरीर में आते हैं लेकिन उनको शक्ति ताकत कहां से मिलती है? जो शक्ति का भंडार, पुंज है, वहां से। इसी शरीर में वह शक्ति का इजहार करा लेते हैं, पावर ताकत बढ़ जाता है। शब्द के द्वारा वह शक्ति दी जाती, उतारी जाती है। शब्द को पकड़ करके जो शक्तियों का ऊपर भंडार है वहां जब पहुंच जाते हैं तो उन्हीं जैसे हो जाते हैं। लेकिन कोई कितना भी पहुंचा हुआ रहा हो, अपने गुरु को भूलता नहीं है। गुरु के महत्व को बराबर समझता है। गुरु उनके जो मनुष्य शरीर में आते हैं, जब चले जाते हैं तब उनकी आत्मा उस पावर में मिली रहती है। तो उनको याद करते रहते हैं।
गुरु महाराज भी बराबर अपने गुरु का सहारा लेते रहे
गुरु महाराज भी अपने गुरु का सहारा लेते रहे। इसका मतलब वह उस पावर को समझते थे। कहते थे गुरु महाराज दया करेंगे, कृपा होगी तब होगा। यहां तक हमने सुना कि कहते थे हुकुम हो जाएगा तो हमको भी जाना है। सतसंगों में भी कहा करते थे- मुझे, तुम सबको जाना है। यह मृत्यु लोक है। यहां कोई भी नहीं रहा। बराबर सतसंग में सुनाया करते थे। इसी तरह से पावर ही काम करता है। इसमें भ्रम, भूल, चिंता आपको करने की जरूरत नहीं है। गुरु महाराज पूरे थे।
सतगुरु भी अपने गुरु के आदेश से धरती के विधान के अनुसार शरीर छोड़ देते हैं
अब यह है कि धरती का विधान है। गुरु महाराज को भी एक तरह से हुकुम हुआ, जिनको वह सर्वोपरि मानते थे, जिनके बारे में कहा करते थे और उन्होंने शरीर छोड़ा। शरीर से ही शक्ति का इजहार करते थे। शक्ति से ही हम-आप को जोड़े थे। शक्ति से ही चलते-फिरते थे। अब वह शरीर से लाभ तो नहीं मिल सकता लेकिन जब वह ऊपरी शक्ति में समाए हुए हैं, उससे आपको बराबर लाभ मिल सकता है। इसलिए बराबर कहा गया-
गुरु माथे पर रखिए चलिए आज्ञा माहि। कहे कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहि।।
गुरु जब मस्तक से उतरते हैं, गुरु पर से विश्वास कम होता है, हटता है तब आदमी को तरह-तरह से लोभ लालच काम क्रोध मान सम्मान का भूत सवार होता है। आपको गुरु को हमेशा मस्तक पर सवार रखकर चलना है।
सन्त उमाकान्त जी के वचन
जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव नाम ध्वनि रोज रात को सोने से पहले बराबर कुछ दिन बोलने से फायदा दिखने लगेगा। आजमाइश करके देख लीजिए। विश्व बने धर्मात्मा, पापों का हो खात्मा। हाथ जोड़ कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। सन्त उमाकान्त जी का सतसंग प्रतिदिन प्रातः 8:40 से 9:15 तक (कुछ समय के लिए) साधना भक्ति टीवी चैनल और अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित होता है।
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