मृत्यु पर विजय हासिल करना है तो करें इस मंत्र का जाप


महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। इस मंत्र को प्राण रक्षक मंत्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव प्रसन्न होते है और मंत्र का जाप करने वाले से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र का जाप सबसे पहले महाऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले किया गया था।

हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें।

महामृत्युजंय मंत्र का जप करने से मिलता है शुभ फल

आरोग्य की प्राप्ति 

यह मंत्र मनुष्य न सिर्फ निर्भय बनता है बल्कि उसकी बीमारियों का भी नाश करता है। भगवान शिव को मृत्यु का देवता भी कहा जाता है। इस मंत्र के जप से रोगों का नाश होता है और मनुष्य निरोगी बनता है।

दीर्घायु की प्राप्ति

जिस भी मनुष्य को लंबी उम्र पाने की इच्छा हो, उसे नियमित रूप से महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र का जप करने वाले को लंबी उम्र मिलती है। इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य का अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। 

सम्पत्ति की प्राप्ति

जिस भी व्यक्ति को धन-सम्पत्ति पाने की इच्छा हो, उसे महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना चाहिए। इस मंत्र के पाठ से भगवान शिव हमेशा प्रसन्न रहते हैं और मनुष्य को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

संतान की प्राप्ति

महामृत्युजंय मंत्र का जप करने से भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है और हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंत्र का रोज जाप करने पर संतान की प्राप्ति होती है। 

यश की प्राप्ति

इस मंत्र का जप करने से मनुष्य को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है। सम्मान की चाह रखने वाले मनुष्य को प्रतिदिन महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए।


कब करना चाहिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप ?

महामृत्युंजय मंत्र का जाप सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है। अगर कोई संकट की स्थिति है तो इस मंत्र का जाप कभी भी किया जा सकता है। इस मंत्र का जाप शिवलिंग के सामने या भगवान शिव की मूर्ति के सामने करना ज्यादा बेहतर होता है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए।


दिन में कितनी बार करना चाहिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप ?

भगवान शिव को रुद्राक्ष प्रिय है। रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र या फिर लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। महामृत्युं जय मंत्र का जाप सवा लाख बार और लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार करने का विधान है।

कैसे करना चाहिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप ?

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें। अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें। जाप करने के लिए एक शांत स्थान का चुनाव करें, जिससे जाप के समय मन इधर-उधर न भटके। जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें।

महामृत्युंजय मंत्र जाप करते समय इन बातों को रखें ध्यान (सावधानियां)

  • मंत्र का जप करते समय उसका उच्चारण शुद्धता से करें।
  • एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
  • मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
  • जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
  • रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
  • माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
  • जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
  • महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
  • जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
  • जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
  • महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
  • मिथ्या बातें न करें।
  • जपकाल में मांसाहार त्याग दें।
  • जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
  • जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
  • जपकाल में स्त्री सेवन न करें।

इन स्थितियों में महामृत्युंजय मंत्र का करें जाप 

  • ज्योतिष के अनुसार, जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
  • धन-हानि हो रही हो।
  • मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
  • राजभय हो।
  • किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
  • जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
  • हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
  • राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
  • मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
  • राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
  • मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
  • त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ