ग्रंथों में जिस नाम का जिक्र बार-बार आया है, उसे केवल सन्त ही दे सकते हैं


इस कलयुगी समय में जीवों को नामदान देकर जीते जी उनके असली घर सतलोक पहुँचने का रास्ता बताने वाले पूरे सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने उज्जैन आश्रम से 7 अगस्त 2020 को, यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित सतसंग में बताया कि रामायण तो अब बहुत तरह के बन गए लेकिन घट रामायण और राम चरित मानस लोगों की जानकारी में ज्यादा है। मानस में उन्होंने इस मनुष्य शरीर के भीतर जो प्रकृति, मालिक की लीला हो रही है उसे सरल शब्दों में लिखा है। इनमें जवानी में ही मालिक को पाने की तड़प जग गयी थी, खोजा तो रास्ता मिला और उसमें लगे। 

गोस्वामी जी भी ठोकर खा कर संभले और मेहनत से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया

ये काल और माया का देश है। माया का हमला सब पर होता है। ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश सब उसके घेरे में हैं। लेकिन इसी माया से इनको ज्ञान मिला। ये पत्नी प्रेम में डूबे थे, वियोग जब सताया तो मायके गयी हुए पत्नी से मिलने बरसात में मकान के उपर से चढ़ कर गए। पत्नी बोली- अस्थि चर्म मय देह यह, ता पर ऐसी प्रीति..  कि इस चमड़ी, खून और हड्डी में इतना लगाव बनाये हो, यही प्रेम प्रभू से किये होते तो कल्याण हो जाता। तब इनमें वैराग्य, द्रढ़ता आ गयी। संकल्प बनाया, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर जब पारंगत हो गए तब प्राप्त रूहानी दौलत लोगों में बांटने लग गए। तत्कालीन समय में प्रचलन से अलग होने की वजह से लोगों ने विरोध किया फिर भी इन्होने ह्रदय अहीर, करिया, माना, तकि मियाँ सहित कई लोगों को वो अंदरूनी आध्यात्मिक शक्ति बांटी। 

उन्होंने सब लिखा- देव दुर्लभ मनुष्य शरीर, पूरे सतगुरु की पहचान, तीसरी आँख खोलने का तरीका

आध्यात्मिकता सब जगह एक ही है, वो मालिक एक ही है। जितने भी सन्त, फ़क़ीर, मुर्शिद-ए-कामिल हुए, सबने उस परमात्मा से मिलने का रास्ता बताया लेकिन उसमें मिलावट करने से तिफरका पैदा हो जाता है। इन्होने सोचा कि जाने से पहले लोगों के मार्गदर्शन के लिए कुछ लिख दिया जाए। घट रामायण लिखी, सब बातें लिखी। लिखा कि बड़े भाग मानुष तन पावा.. बड़े भाग्य से प्राप्त इस मनुष्य शरीर को प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं। लिखा साधन धाम मोक्ष कर द्वारा.. ये शरीर साधना का घर, इसी में मोक्ष का दरवाजा है, इसी में मालिक मिलता है। कब? जब पूरे सन्त सतगुरु मिलेंगे।

गुरु बिन भव निधि तरे न कोई, जो विरंच शंकर सम होई यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश हो चाहे कोई भी हो, उस अनामी का दर्शन गुरु के बिना नहीं कर सकता। एक अनीह अनामा.. उस मालिक का नाम नहीं, लोगों ने उसे विभिन्न नामों से पुकारा है। उसके मिलने पर ही दुःख दूर होते हैं और आनंद मिलता है। इन्होने उसे राम कहा। दशरथ के पुत्र राम को तो उन्होंने कहानी, रामायण का नायक बनाया है लेकिन व्याख्या के अर्थ में उसी मालिक, उसी राम का जिक्र है। बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि.. सबसे पहले गुरु की वन्दना, मनुष्य शरीर में कृपा के सिन्धु, मोह-माया को ये ही ख़तम कर सकते हैं। श्री गुरु पद नख मनि गन ज्योति.. तो गुरु की पहचान बताई की जिनके अंगूठे के अग्र भाग को याद करते ही दोनों आँखों के बीच में स्थित दिव्य द्रष्टि, तीसरी आँख खुल जाय और जीवात्मा इसके द्वारा उपरी लोकों में जाने लग जाए, अनहद वाणी सुनाई देने लग जाए - सब लिख दिया। 

असली राम से पहले, कौशल्या की गोद वाले राम का परिचय दिया

पहले उन्होंने कौशल्या की गोद में आये राम को नायक के रूप में दर्शाया की लोग पहले इन्हें, इनके काम, महत्व को समझे तब आगे की असली मुख्य बात समझेंगे। उन्होंने तो नाम को प्रमुखता दी लेकिन लोकप्रिय बनाने के लिए, राजा राम के महत्त्व को बढ़ाने के लिए उस हस्तलिखित प्रति में कई परिवर्तन कर दिए। राम को, राम-रावण युद्ध को इतनी ज्यादा प्रमुखता दे दी की आध्यात्मिकता, आध्यात्मिक ज्ञान जिससे ही सुख मिलने का था, वो पीछे हो गया, छिप गया।   

जिस नाम का इतना गुणगान किया गया है, उसे केवल सन्त ही दे सकते हैं

नाम के बारे में कहा- इश्वर अंश जीव अविनाशी.. उस इश्वर का अंश ये जीवात्मा इस शरीर में बंद हो कर दुःख पा रही है तो अब इसे सुख कैसे मिलेगा? जब नाम पकड़ में आएगा, जब नाम की कमाई होगी। कहा- राम न सकहि नाम गुण गाई, कह लग कहूँ मैं नाम बड़ाई। और कहा- चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ, कलि विशेष नहिं आन उपाऊ। यानी इस कलयुग में नाम के अलावा और कोई तरने का उपाय नहीं है। नाम मिलने पर, नाम की डोरी पकड़ में आने पर ही ये अविनाशी बनेगी। 

कहा- कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहि पारा। अब ये समझो कि किस नाम की बात हो रही है। उस नाम की जिसके लिए कहा- नाम रहा सन्तन आधीना, सन्त बिना कोई नाम न चीन्हा। यानी बिना संतों के नाम की पहचान नहीं हो सकती तो नाम ले लो, नाम की कमाई करो। कबीर साहब ने तो और स्पष्ट कर दिया- 

कोटिन नाम संसार में, ताते मुक्ति न होए। आदि नाम जो गुप्त जपे, बूझे विरला कोय।।

यानी आदि नाम यानी जहां से ये जीवात्माएं आई, वो मिल जाए तो काम बन जाए। तो उस नाम को उन्होंने राम बताया। गुरु महाराज ने निचोड़ बताया की चौथे राम से कैसे मिल सकते हैं- 

एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट-घट में बोले। 

एक राम का सकल पसारा , एक राम सब जग से न्यारा।।

दशरथ के पुत्र, जिनके मूर्तियाँ, मंदिर बने हैं, भगवान् राम जिनको कहा गया, वो अलग हैं। एक राम तो मन को कहा, एक राम काल भगवान् को कहा और एक राम उस अनामी, अकाल, मालिक को कहा। शक्ति तो राम में भी थी तभी तो राक्षसों का संहार किया। तो ये समझो कबीर साहब से शुरू और 16वीं सदी के गोस्वामी जी से होते हुए सन्तमत का विस्तार हुआ। अन्य भी आये लेकिन अपने गुरु महाराज ने सारे ग्रंथों का सार निकाल लिया, सारा निचोड़ निकाला की 24 घंटे में 1 घंटा सुबह-शाम निकालो, सारा काम इसी में हो जायेगा। 

उनकी बातों को पकड़ लो तो मानस में जो राम का चरित्र हो रहा है वो तो समझ में आ ही जायेगा साथ ही बाकी लोकों का चरित्र, सतलोक में जो जैसा हो रहा है वो भी समझ में आ जायेगा। खोज री पीया को निज घट में.. पिया को अपने अन्दर खोजो इसी में सारे ग्रन्थ, रामायण मिल जायेंगे, इसी में सारी चीजें भरी है। तो मनुष्य शरीर को समझो, इसमें क्या मिल सकता है। तो इसको समझने का रास्ता (नामदान) जिनको मिल गया है तो उस रास्ते पर आप लोग चलो।

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