- आदमी-औरत अपने को संभाल नहीं पा रहे, समाज और परिवार की लक्ष्मण रेखा को तार-तार कर दे रहे हैं
- सात्विक भोजन करो जो वासनाओं को दबावे, उभारे नहीं
आजकल मनुष्य के गिरते व्यवहारिक, बौद्धिक, सामाजिक स्तर और पशुवत व्यवहार का मूल कारण और सुधार-बचाव के सरल उपाय बताने वाले, विलुप्त होती भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में लगे, शरीर, परिवार, देश के साथ-साथ आत्मा का भी भला चाहने वाले इस वक़्त के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बुद्ध पूर्णिमा 7 मई 2020 प्रातः काल उज्जैन आश्रम पर दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि जिनको नामदान मिला वो नाम की कमाई करके, नाम की डोर पकड़ कर स्वर्ग, बैकुंठ, ब्रह्मलोक, शिवलोक, विष्णुलोक, सतलोक, अलखलोक, अगमलोक आदि में आप जा सकते हो। ऐसा नाम आपको मिल गया। उस नाम से जब आप उसको (मालिक को) पुकारोगे तो आपको मिलेगा। ऐसे समर्थ गुरु आपको मिल गए, जो वहां आते-जाते हैं, आपकी वहां जाने में मदद कर देंगे। लेकिन मन अगर काम की तरफ लगा रहा तो जैसे ऊद्धव से गोपीकाओं ने कहा था-
उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ श्याम संग, को अवराधै ईस॥
मन तो एक ही है। जहां पर लगता है वहीं रस लेता है। इसका काम इंद्रियों के घाट पर बैठकर रस लेने का है। खाने-पीने, मान-प्रतिष्ठा के लिए जहाँ तक जाता है मन, वो सब कहलाता है काम। कामवासना को ही काम नहीं कहते हैं। इस शरीर के लिए, मन जहां तक जाए, वह सब काम कहलाता है। कहा गया है-
काम-काम सब कोई कहै, काम न जानै कोय। जेती मन की कल्पना, काम कहावै सोय।।
मन जिस चीज की कल्पना करता, सोचता, जिसके लिए फुरना, इच्छा पैदा करता है वो भी काम कहलाता है। जब देखेगा, सुनेगा, चखेगा, खाएगा बढ़िया पौष्टिक चीज तो कामवासना जागेगी।
सात्विक भोजन करो जो वासनाओं को दबावे, उभारे नहीं
ऐसा भोजन जिसमें चिकना-चुपड़ा, गरिष्ठता न हो, आराम से हजम हो जाए, इंद्रियों को उत्साहित न करे, सात्विक भोजन कहलाता है। पहले लोग सात्विक भोजन करते थे। जब से लोग पशु-पक्षियों के अंडे और मांस खाने लग गए तब से कामवासना, उत्तेजना बढ़ गई। आदमी, औरत अपने को संभाल नहीं पा रहे। समाज परिवार की खींची हुई लक्ष्मण रेखा को भी लांघ रहे हैं। इसीलिए कहा जाता है सात्विक भोजन करो जो वासनाओं को दबावे, उभारे नहीं। कामवासना रहेगी, इच्छा बढ़ेगी तो परमार्थ की, नाम की कमाई नहीं हो पाएगी। जहां भी काम की इच्छा रहेगी, नाम नहीं मिलेगा, नाम से दूर होते जाओगे।
नियम-संयम को जानना और उसका पालन करना जरूरी है
क्या पहले लोग संतान की उत्पत्ति नहीं करते थे? करते थे। लेकिन पहले बच्चे होनहार, बुद्धिमान और सुडौल होते थे। आज की तरह से लूले-लंगड़े और बुद्धिहीन नहीं होते थे। प्रेमियों! संयम-नियम को जानना, समझना और उसका पालन करना बहुत जरूरी है। आज पूर्णिमा के दिन आप सब लोगों को इन चीजों को समझने और अच्छी चीजों को अपनाने की जरूरत है।
बाबा उमाकान्त जी महाराज के वचन
ऐसा काम करो कि पूरे विश्व में तुम्हारी कीर्ति हो जाए। कीर्ति, यश को दुनिया की कोई भी शक्ति खत्म नहीं कर सकती। एक समय ऐसा आएगा कि लोग गाँव छोड़कर नदियों के किनारे चले जाएंगे। नदियों का पानी शुद्ध और साफ रखो, एक दिन यही तुम्हारे काम आएगा। कुदरती कहर जब बढ़ेगा, व्यवस्था बिगड़ेगी तब नदी, तालाबों का ही पानी पीने के काम आएगा। इसे स्वच्छ रखो। प्रेमियों ! यह समय आलोचना करने का बिल्कुल नहीं।
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