कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता 'सौरभ मिश्रा' |
- ''पुरुषार्थ चतुष्टय आधारित युवाओं के भवितव्य का भारतीय दृश्य'' विषयक संगोष्ठी
- हमें अर्थ के पीछे भागने की जरूरत नहीं, अपना कर्म करें: सौरभ मिश्रा
- हमारी परम्पराएं ही हमें मजबूत बनाती हैं : प्रो.विभूति राय जी
- पंचतत्वों के संतुलन में ही छिपा है हमारा अस्तित्व: प्रो. अजय कुमार मिश्रा
मुख्य वक्ता विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख श्री सौरभ मिश्रा जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग सभागार में आजादी के अमृत महोत्सव पर आयोजित ''पुरुषार्थ चतुष्टय आधारित युवाओं के भवितव्य का भारतीय दृश्य'' विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए...
लखनऊ। सृष्टि ने हमें सब कुछ दिया है, लेकिन मनुष्य योनि को छोड़कर किसी में भी संग्रह करने की आदत नहीं है, क्योंकि वह संतुष्ट नहीं है। मनुष्य हमेशा संग्रहण में जुटा रहता है, जिससे समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। जब हम अपने आत्मतत्व को पहचान लेंगे, तो हमारी आवश्यकताओं स्वयं समाप्त हो जाएंगी। उक्त उद्गार मुख्य वक्ता विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख श्री सौरभ मिश्रा जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग सभागार में आजादी के अमृत महोत्सव पर आयोजित ''पुरुषार्थ चतुष्टय आधारित युवाओं के भवितव्य का भारतीय दृश्य'' विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए।
मुख्य वक्ता विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख श्री सौरभ मिश्रा जी ने पुरुषार्थ पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरूषार्थो का विशिष्ट स्थान रहा है। इन पुरूषार्थो ने ही भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता के साथ भौतिकता का एक अद्भुत समन्वय स्थापित किया है । धर्म, अर्थ और काम ये तीनों पुरुषार्थ को अच्छी तरह कर लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति सहज हो जाती है। इस अवसर पर उन्होंने आत्मा, ईश्वर व ध्यान पर भी चर्चा की और साथ ही एक डाक्युमेंट्री माध्यम से लोगों को समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि अर्थ के पीछे भागने की जरूरत नहीं है, हमें अपना कर्म करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब हम दूसरों को खुशियां देने की कोशिश करेंगे, तो हमारे हिस्से की खुशियां हमें खुद ब खुद मिल जाएंगी।
विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख सौरभ मिश्रा और उपस्थित अन्य पदाधिकारीगण |
विशिष्ट अतिथि प्रो.विभूति राय जी ने सनातन परपम्परा पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि सनातन सभ्यता सबसे पुरानी है, जिससे जुड़कर हम अपने धर्म की रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी सनातन परम्परा से जुड़े रहते हैं तो खुद को कभी कमजोर नहीं समझ पाएंगे। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा सकारात्मक बातों का ही प्रचार करना चाहिए, जिससे हमारे समाज और अपने वाली पीढ़ी में बदलाव दिखाई है। उन्होंने कहा कि हम जितना नकारात्मक सोचेंगे, हम खुद को नुकसान ही पहुंचाएंगे, इसलिए हमें हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए। उन्होंने द्वैतवाद और अद्वैतवाद पर भी विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम की रूपरेखा लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अजय कुमार मिश्रा ने रखी। उन्होंने कहा कि हमारा शरीर पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है और यही तत्व हमारे अंदर भावनाएं, मानिसक वेदनाएं और भाव पैदा करते हैं। यदि हम इन्हीं पांचों तत्वों में संतुलन बनाकर रखेंगे तो हमारा जीवन अच्छे से व्यतीत हो सकेगा। इस अवसर पर विद्या भारती के सह प्रचार प्रमुख श्री भास्कर दूबे जी, डॉ. आशीष अवस्थी, डॉ. महेन्द्र अग्निहोत्री, शोध छात्र अभिषेक मिश्र, परमजीत, सचिन, विशाल, सिद्धार्थ, प्रदीप सहित लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं सहित कई लोग मौजूद रहे।
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