- सतसंग में लोगों को बुला कर पिछले जन्मों का आपसी लेना-देना अदा करवा दिया जाता है
- एक दूसरे से लेना-देना क्या होता है और कैसे चुकाया जाता है
बाबाजी का कहना है, शाकाहारी रहना है- जैसा नारा देने वाले, लोगों से शराब, मांस, अंडा, मछली आदि के सेवन को त्यागने की प्रार्थना कर, वैचारिक क्रांति से करोड़ों लोगों के जीवन में भारी परिवर्तन, सुधार कर उनके भौतिक और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने वाले विलक्षण महापुरुष निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के तीन दिवसीय दसवें वार्षिक तपस्वी भंडारे के प्रथम दिन 26 मई 2022 को सायंकाल की बेला में उज्जैन आश्रम से दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सतसंग में बाबाजी के सार्वजनिक रूप से घोषित उत्तराधिकारी, पक्के शिष्य, इस समय के मौजूदा पूर्ण समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि
दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
दर्शन से, स्पर्श से कर्म कटते हैं, एक-दूसरे का लेना-देना अदा हो जाता है। आपको नहीं मालूम है कि पिछले जन्म में आप कहां थे। मां के पेट में पता था लेकिन बाहर इस काल माया के देश में निकल कर माया का पर्दा पड़ गया और पीछे का सब भूल गये।
लेना-देना किसको कहते हैं?
जैसे आपने अपने लड़के को पढ़ाया, मेहनत किया, नहीं पैसा है तो गाय बैल, जमीन जायदाद बेच दिया, मकान गिरवी रख कर पढ़ाया-लिखाया और वह नौकरी करने दूसरे बड़े शहर, दूसरे देश में चला गया। रुपया तो भेज देता है लेकिन सेवा नहीं करता है। आप बुड्ढे हो गए, बीमार हो गए तो सेवा नहीं करेगा। प्रेम बराबर है, श्रद्धा खूब है लेकिन दूरी बढ़ गई। तो जो आपका लेना-देना था, जो आपने उसके साथ मेहनत किया वह था। और लड़का केवल कागज का छपा छपाया नोट आपको भेजता है। नोट कोई खाता, पीता, चबाता है या नोट रगड़ने से तकलीफ जाती है? सिर दर्द तो दबाने से जाता है। किसी की लड़की, लड़का मर गया, बिछड़ गया, यह सब लेना-देना होता है। तो यहां सतसंग में जब आते हो तो एक-दूसरे का लेना-देना अदा हो जाता है।
सतसंग में लोगों को बुला कर आपसी लेना-देना अदा करवा दिया जाता है
देखो कितने भंडारे चल रहे हैं। यह किसी एक का भंडारा नहीं है। इनमें सबका लगा है। कोई एक चुटकी अन्न दिया। यह जो माताएं बच्चियां है यह भोजन बनाने के लिए जब जाती हैं, चुटकी निकाल देती हैं। तो यह भंडारे सब चुटकियों से चल रहे हैं। इसमें किसी सेठ-साहूकार का नहीं लगता। सेठ-साहूकार तो ऐसे भी लोग हैं जो सारे भंडारे को एक ही आदमी चला सकता है। लेकिन नहीं, संतमत में ऐसा नहीं होता है। सबका लगता है। सबका एक-दूसरे से कर्म कर्जा अदा कराया जाता है। जो नहीं कुछ दे पाया, भंडारे में केवल सेवा ही कर दिया, परोसगारी ही कर दिया, खिला दिया, सफाई कर दिया, पानी की व्यवस्था कर दी, उसी में अदा होता है।
हरइ पाप कह बेद पुराना॥
समझो सारे वेद पुराण साक्षी हैं, बताते हैं कि इससे कर्म कटते हैं, लेना-देना पूरा होता है, अदा होता है। इसीलिए सतसंग में बुलाया जाता है कि लोगों को आपस में लेना-देना अदा हो जाए, कर्म कट जाए।
सतसंग में आने से ही पूरी जानकारी, पहचान हो पाती है
कर्मों का विधान पहले नहीं था। जीवात्मा पहले साफ थी। उस समय सतयुग था। लोग ध्यान लगाते ही ऊपरी लोकों में चले जाते थे।
सतयुग योगी सब विज्ञानी। कर हरि ध्यान तरही भव प्राणी।।
ध्यान लगाते ही पार हो जाते थे, चले जाते थे। लेकिन जब यह कर्म का विधान बना तो जकड़ बढ़ गई और जो पावर शक्ति लोगों की क्षीण हो गई। युग, समय, परिस्थितियां बदलती गई और यह कर्मों का आवरण पर्दा और मोटा होता चला गया। इस समय कलयुग में तो कर्मों का पर्दा इतना मोटा है कि मोटी दीवार क्या होगी। क्योंकि जान ही नहीं पाते हैं कि अच्छा-बुरा क्या है। क्योंकि सतसंग में नहीं आते हैं।
सतसंग में आए बिना पहचान नहीं पाते, जान नहीं पाते की आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, वास्तविकता क्या है, शरीर क्या है, यह देवी-देवता कौन है। किसी ने पत्थर को बता दिया कि यह देवता है, किसी ने कहा स्नान करोगे तो देवता खुश हो जाएंगे, धन पुत्र परिवार में बढ़ोतरी हो जाएगी। तो बताते तो हैं लोग लेकिन जिसको जितनी जानकारी होती है वह उतना ही तो बता पाता है और उतना ही लोग जान पाते हैं। इसलिए सन्त सतगुरु के सतसंग में बराबर आते-जाते रहना चाहिए।
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