- पाप करने से पूर्व के अच्छे कर्म समाप्त होते जाते हैं फिर तुरंत मिलने लगती है सजा
- रास्ता बताने वाले सन्त सतगुरु मिलने पर जीवात्मा पैदल की बजाय हवाई जहाज से जाने की तरह जल्दी अपने घर वतन पहुंच जाती है
साधना करके जीवात्मा अंतर में हंस की गति कैसे प्राप्त कर सकती है इसका भेद बताने वाले, बुरे कर्मों की मिलने वाली अटल सजा से भी बचत का उपाय बताने वाले, पाप व पुण्य दोनों कर्मों की बेड़ियां काट कर मुक्ति-मोक्ष दिलाने वाले, जीवन में आने वाली तकलीफों की मूल वजह बताने और उसे दूर करने वाले मौजूदा वक्त के सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने तपस्वी भंडारा कार्यक्रम में 26 मई 2022 प्रातः काल को उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि चेतन कौन है? यह जीवात्मा। जड़ कौन है? यह शरीर। जड़ वो जो एक जगह से दूसरी जगह आ-जा नहीं सकता है। जीवात्मा अगर शरीर से निकल जाए तो यह शरीर जड़ हो जाता है। यह शरीर जड़ है और जीवात्मा चेतन है। चेतन और जड़ की गांठ पड़ गई है। ये खुलेगी तब जीवात्मा ऊपर जाएगी। कर्मों का पर्दा लग गया है। इस शरीर से कर्म कुछ जान में, कुछ अनजान में बन जाते हैं। ये अंदर में सब जमा होते हैं। आप बहुत से लोग कहते हो आंख बचाकर के बुरा काम कर लो, बेईमानी चोरी व्यभिचार, खून, कत्ल कर दो लेकिन उस मालिक से कोई चीज छिपी नहीं है।
राम झरोखे बैठकर सबका मुजरा लेय। जाकी जैसी चाकरी वाकौ वैसा देय।।
पिछले अच्छे कर्मों की वजह से मनुष्य जन्म मिला
आपके पूर्व जन्मों के कुछ अच्छे कर्म थे उससे ये मनुष्य शरीर आपको मिल गया। कुछ लोगों को यह भी नहीं मालूम है कि मां के पेट में आने से पहले आप किसी दूसरी योनि में रहे होंगे। मनुष्य शरीर में रहे या स्वर्ग बैकुंठ में रहे या पशु पक्षियों के शरीर में रहे। नर्क के बाद चौरासी में आना पड़ता है। कहीं भी रहे लेकिन रहे होगे। पीछे जन्म में मनुष्य शरीर मिला लेकिन अपना काम नहीं कर पाए। पुण्य कर्म थे उससे मनुष्य शरीर मिला, उसी से आपका भाग्य बना।
बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन गावा।।
कोर्ट जन्म जब भटका खाया। तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।
करोड़ों जन्मों में भटकने के बाद तब मनुष्य शरीर मिलता है। पहले मनुष्य शरीर जब मिला तो अच्छे कर्म किये थे जिसकी वजह से मनुष्य शरीर आपको मिल गया। तो जो (आपके पुराने अच्छे) कर्म है उसकी वजह से महसूस नहीं होता है। अगर वह अच्छे कर्म खत्म हो जाएं तो आप जो गलती करते हो, पाप इकट्ठा करते हो उसकी सजा तुरंत मिलने लगेगी।
गलत कर्म करने से आपके पूर्व के अच्छे कर्म जब पूरे खर्च हो जाएं तो बुरे कर्मों की सजा तुरंत मिलने लगे
जैसे पुलिस पकड़ने के लिए अपराधी द्वारा उसके हाथ के हथियार को गिराने तक इंतजार करती है। थोड़ा समय लग जाता है उसका इंतजार करते है। अगर वह हथियार न रहे तो तुरंत पकड़ में आ जाए। ऐसे ही जब तक थोड़े बहुत अच्छे कर्म रहते हैं तो बुरे कर्मों का पता नहीं चलता। इसलिए वह समय दिया रहता है। जब समय ऐसा आता है कि इसके पास अब अच्छे कर्म नहीं रह गये तब बुरे कर्मों की सजा देने लगता है। कर्मों का विधान बना दिया। जो जसि कीन्हि सो फल तसि चाखा। कर्मों की सजा सबको मिली, कोई बचा नहीं। तो कर्मों की सजा मिलने लगती है।
अच्छे बुरे कर्मो का फल शरीर भोगता है, फिर जब जीवात्मा निकलती है तो उसको तकलीफ झेलनी पड़ती है
और दूसरी सजा कब मिलती है? बता देते हैं आपको। मान लो (शरीर रहते-रहते) बुरे कर्म कम रहे हैं अच्छे कर्म ज्यादा रहे हैं। अच्छे-बुरे कर्म कब तक रहते हैं? जब तक यह शरीर रहता है। और जब शरीर का समय पूरा हो गया, सबका होता है, तब शरीर से जीवात्मा निकलती है तब जीवात्मा को (बुरे कर्मों की वजह से) तकलीफ झेलनी पड़ती है।
कर्मों की वजह से जीवात्मा निकल कर ऊपरी लोकों में नहीं जा सकती
और दूसरी बात यह है कि आदमी कोशिश नहीं करता। रास्ता भी मिल गया, नामदान भी मिल गया लेकिन सुमिरन, ध्यान, भजन नहीं किया तो जीवात्मा नहीं निकल पाती है। इस जड़ (शरीर) को छोड़ नहीं सकती है। चैतन्य लोक में नहीं जा सकती है। इसी अंधेरे लोक, अंधेरे देश में इसी शरीर के अंदर पड़ी रहती है। जब निकल कर ऊपर प्रकाश में चली जाती है तब इसको अपनी शक्ति का पता चलता है।
जीवात्मा में बड़ी शक्ति है, बड़े-बड़े देवी-देवताओं, लोकों की कर सकती है रचना
क्योंकि ये परमात्मा की अंश है। जैसे बादशाह का बेटा बादशाह नहीं होता है लेकिन वह अपने राज्य में कहीं भी चला जाए तो उसकी कदर होती है, अन्य नागरिकों से उसकी पावर ज्यादा होती है। मोटी बात, यह कर्मों की वजह से निकल नहीं पाती है। कर्म जब कटते हैं तो जीव जन्म-मरण की पीड़ा से छुटकारा पाता है। जब कर्म कटते हैं, कोशिश, प्रयास, साधना, नाम की कमाई करता, नाम की डोर पकड़ता है तब नाम नौका पर चढ़ दास तर जाएगा फिर यह जितने भी संकट, समुन्द्र, बाधाएं हैं सब हट जाती हैं।
रास्ता बताने वाले सन्त सतगुरु मिलने पर जीवात्मा पैदल की बजाय हवाई जहाज से जाने की तरह जल्दी अपने घर वतन पहुंच जाती है
जैसे पैदल चलो तो घाटी पार करने में बहुत टाइम लग जाता है। लेकिन जब हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज से चलो तो यह घाटी सब नीचे छूट जाती है, एकदम उड़कर के एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाते हो। ऐसे ही जब रास्ता मिल जाता है, बता दिया कि हेलीकॉप्टर यहां से जाता है, हेलीपैड बना है, चले जाओ। वहां पर गए, बैठे और पहुंच गए। ऐसे ही जब रास्ता मिल जाता है, बताने वाले मिल जाते हैं, मदद करने वाले मिल जाते हैं तब आदमी का जीवन सफल हो जाता है, जीवात्मा अपने घर वतन पहुंच जाती है। अब आप नयों को रास्ता नामदान दिया जाएगा।

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