ऑस्ट्रेलिया में सतसंग के दौरान अंतर की साधना में कराया दिव्य अनुभव


  • सन्त उमाकान्त जी ने बताया अंत समय में साधक, धार्मिक और पापियों की जीवात्मा शरीर के किन अंगो से कैसे निकलती है
  • सच्चे गुरु की पहचान कब होती है

उज्जैन (म.प्र.)। जिन्हें बाहरी पूजा पाठ से आगे जाकर प्रभु के दर्शन की मिलान की प्यास है ऐसे जीवों को देश विदेश में घूम-घूम कर दर्शन देने और प्रभु प्राप्ति का सच्चा मार्ग नामदान बताने वाले साथ ही अनुभव करा कर विश्वास दिलाने वाले, समय को सदैव सम्मान देते हुए प्रभु को जल्दी खुश करने में को जल्दी कंट्रोल में करने का तरीका बताने वाले, अंत काल जब कोई भी परिवार जन मित्र धन संपत्ति मदद नहीं कर सकते तब भी जीवात्मा की संभाल करने वाले, ऐसे सच्चे गुरु जो इस मृत्युलोक से सतलोक का यात्रा मार्ग, रास्ते में पड़ने वाले दिव्य लोकों स्थानों की जानकारी पहले ही अपने सतसंग में करा देने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने भंडारा कार्यक्रम में 19 मई 2020 सांय उज्जैन आश्रम (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में गुरु की दया से अंतर में अनुभूति के बारे में बताया।

विदेश में साधना में कराया दया का अनुभव

बताया कि मेलबॉर्न (ऑस्ट्रेलिया) में गया था। वहां कई कार्यक्रम कराये थे। वहां मंदिर में (सतसंग व नामदान) कार्यक्रम हो रहा था तो वहां दो लोग आए। उन्होंने पूरा सतसंग सुना, अच्छा लगा और जब ध्यान भजन पर बैठाया तो भजन में उनको कुछ (अंदर में) अनुभूति हो गई, कुछ मिल गया, सुनाई पड़ गया तो उनको पक्का विश्वास हो गया। और फिर जब सतसंग खत्म हुआ तो ज्यादा ठंडी के बावजूद भी वह हमसे मिले, बोले हमको अब विश्वास हो गया। यह रास्ता जो आपने बताया, यह सही है और हम लोग अब करेंगे। हमने कहा बहुत अच्छा।

अंत समय में जीवात्मा शरीर के किन अंगों से निकलती है

महाराज जी ने 10 अप्रैल 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए गए संदेश में बताया कि जो पैदा होता, पेड़ फलता, आग जलती वो मरता, पेड़ झड़ता और आग बुझती है। सबको शरीर छोड़ना पड़ा, चाहे अवतारी शक्तियां रही हो, चाहे ऋषि मुनि रहे हो, चाहे सन्त रहे हो, छोडना सबको पड़ता है। तो वह (काल इस शरीर रूपी मकान को समय उम्र पूरा होने पर) खाली कराना चाहेगा। अगर आपके अच्छे कर्म रहे, साधना किया तो साधक को जीवात्मा को निकालने में दिक्कत नहीं होती, सुषम्ना (नाड़ी) फोड़कर निकल जाती हैं। धार्मिक लोगों की आंख से, मुंह से आराम से निकलती है। और पापी कुकर्मी जो बिल्कुल नहीं निकलना चाहते, खाने पीने मौज मस्ती में फंसे हुए हैं, नभ्या जिभ्या के भोग की आदत पड़ गयी, उसी के लिए गलत काम करने में लगे रहते हैं तो उम्र समय पूरा होने पर इस किराये के मकान मनुष्य शरीर को खाली कराने के लिए यमराज के दूतों को आना पड़ता है। 

समय पूरा होते ही यमदूत आवाज लगाते हैं, खाली कर दो। जैसे मकान मालिक के मकान खाली कराने के नोटिस मिलने पर समझदार किराएदार अपनी व्यवस्था पहले से रखता है और खाली कर देता है। नहीं तो मुकदमेबाजी झगड़ा मारपीट होती है, एक न एक दिन खाली करना ही पड़ता है। ऐसे ही पापियों की जीवात्मा मल मूत्र के रास्ते से जीवात्मा यमदूतों द्वारा झुलसा करके, मार-मार करके निकाली जाती है फिर उसको (कर्मों की) सजा मिलती है और नरकों में बड़ी तकलीफ पीड़ा बड़े लंबे समय तक झेलने के लिए डाल दी जाती है।

सच्चे गुरु की पहचान कब होती है

महाराज जी ने 1 सितंबर 2022 दोपहर वापी (गुजरात) में दिए गए संदेश में बताया कि गुरु करना बहुत जरूरी होता है। दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। बहुत गुरु किया उन्होंने लेकिन जब पूरे गुरु मिले तब उन्होंने गुरु को अपना लिया, मान लिया। कबीर साहब ने कहा-

जब तक गुरु मिले नहीं सांचा, तब तक गुरु करो दस पांचा

न जानकारी में गुरु भले ही लोग कर लेते हैं लेकिन जब सच्चे गुरु मिल जाए तो उनकी बातों को मान लेना चाहिए। सच्चे गुरु की पहचान कब होती है? जब उनके बताए हुए रास्ते पर आदमी चलता है। रास्ते की चीजें मिलती जाती है तब विश्वास हो जाता है। जैसे रेलवे स्टेशन जाना है और पूछो तो बताया जाए कि उधर जाओ, उधर मकान पड़ेगा, मोड पड़ेगा, बगीचा पड़ेगा और जब वह चीजें मिलनी शुरू हो जाती हैं तो विश्वास हो जाता है। लेकिन हम चले ही न, आगे ही न बढ़ें तो कैसे स्टेशन पर पहुंचेंगे? तो समझने की जरूरत है, गुरु की जरूरत हमेशा रहती है।

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