- प्रेमियों! अब समय आ गया त्याग करके कलयुग से करो मुकाबला
असंभव काम को भी संभव बनाने का उपाय बता देने वाले, चरम पर पहुंचते कलयुग के सिंहासन को भी कंपा चुके और अब उसे भय से भागने पर विवश करने का तरीका अपने भक्तों को बताने वाले, सतयुग को धरा पर उतारने का संकल्प लेने वाले, धर्म की स्थापना धार्मिक नेक लोगों के बचाव के साथ-साथ दुष्टों को भी सुधार कर उनकी भी जान बचाने में दिन-रात अनवरत लगे, जो अवतारी शक्तियों की तरह गलती की सजा नहीं देते बल्कि जीव की गलतियों की माफी करा कर सबको बचाते हैं ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 11 सितम्बर 2022 प्रातः इंदौर (म. प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अकल, बुद्धि लोगों की अलग-अलग होती है। एक होता है पढ़ा और एक होता है कढ़ा और एक होता है ऐसे ही साधारण आदमी। पढ़े का समाज अलग होता है। जैसे स्कूल में गया तो उसी व उससे ज्यादा दर्जा के पढ़ने वाले बच्चे मिलते हैं, हर घर के, ऊंचे माध्यम तबके के और सरकारी स्कूल होता है तो छोटे तबके के भी बच्चे मिलते हैं तो उनका एक अलग समाज रहता है। मास्टर लोग भी जो उठना बैठना तौर तरीका करते हैं पढ़े-लिखे के हिसाब से करते हैं वह अलग समाज होता है। और समाज होते हैं जैसे मजदूरों का, मिस्त्रियों का, उसमें जो काम सीखता है वह समाज होता है। मिस्त्री लोहा गर्म करता और मजदूर लोहे पर घन मारता है, ठोकता है तो ये अलग-अलग होता है।
पढ़ा और कढ़ा दोनों का अलग-अलग होता है समाज
जो खुरपा कुदाली, लोहे का समान बनाने वाले किसी मिस्त्री के यहाँ जो घन चलाने ठोकने वाले से कहो बना दो तो नहीं बन पाएगा, भले ही उससे (मिस्त्री से) थोड़ा ज्यादा पढ़े हो। लेकिन उसको ज्यादा जानकारी है जो बनाता है, उस औजार को तो उसको कहते हैं कढ़ा। तो पढ़ा और कढ़ा। यह अलग-अलग समाज होता है। जब दोनों मिलते हैं तब बड़ा काम होता है। आपको भी संगत में गुरु का काम और नाम बढ़ाने के लिए पढ़ा और कढ़ा दोनों को इकट्ठा करने की जरूरत है तब काम बनने वाला है आपका। जिनको अनुभव है और जो पढ़े लोग हैं और जो आप दौड़ धूप कर सकते हो, सब लोग अगर मिल करके करोगे तो कहते दस आदमी की लाठी एक आदमी का बोझा होता है।
सब लोग अगर मिल करके करोगे तो दबने के भय से कलयुग भाग जाएगा
तो (आपके प्रचार से) कलयुग के ऊपर इतना जोर पड़ेगा, दबाव पड़ेगा कि कलयुग दब ही जाएगा और दबने के भय से भागेगा। कोई आदमी खड़ा हो और आप एक क्विंटल वजन उठा कर उसके ऊपर रखने लग जाओ तो वह देखेगा तो भगेगा कि ये तो हमको दबा करके मार डालेगा, आदमी घबरा जाएगा। लेकिन ऐसे (आसानी से) कलयुग घबराकर भगेगा नहीं। कलयुग की लड़ाई क्या आसान है? बहुत कठिन है। आप यह समझो-
नींद नारी भोजन जो तजहि
ताकै मारे मेघनाथ मरहि
जो नींद को, नारी को, भोजन को तज देगा उससे। क्योंकि भैसा ही राक्षस लोग खाते थे। वहां का भोजन वही था। लेकिन (राक्षसों को) मारने वाले सब शाकाहारी थे। जानकार लोगों ने ही आवाज लगाया कि ऐसे (शाकाहारी, त्यागी) लोग ही उसको परास्त कर सकते हैं जो भैंसा बकरा ऊंट घोड़ा गधा को उठा कर मुंह में डालते थे और निगल जाते थे, दांत से भी नहीं दबाते थे, इतने मांसखोर बलवान ताकतवर लंबे तड़गे थे, उनको यह मार नहीं सकते थे। लेकिन कहते हैं त्यागी आदमी, त्यागी पुरुष क्या नहीं कर सकता है।
बड़े-बड़े विद्वानों ने राम-सीता का विवाह टालने की कोशिश करी लेकिन होनी तो होकर रहे मेट सकै न कोय
देखो भोगी लोगों ने परिवर्तन किया? किसी भोगी ने धर्म की स्थापना किया? त्यागियों ने किया। जब राम कृष्ण ने त्याग किया, राम ने राजगद्दी पर जब ठोकर मारा, जंगल-जंगल गए, कंदमूल फल खाए और धरती पर सोए तब देखने वाले भी रो दिए। आप यह समझो वह भी उधर चले जाते थे जिनके लिए राम ने लौटते समय कि कहा था नर नारियों तुम अब जाओ। जब राम जंगल जा रहे थे (तो साथ में) पढ़े-लिखे लोग ज्योतिषी विद्वान नहीं गए थे लेकिन थोड़े लोग राम के पीछे-पीछे चले थे तो कहा नर-नारियों जाओ। नर नारी तो चले आए लेकिन जो बीच वाले थे जो न नर थे न नारी है वो रुके रह गए तो घूम कर चले जाते तो लक्ष्मण से पूछा भी था उन लोगों ने क्या राजा राम के भाग्य में यही लिखा है? बोले होनी तो होकर रहे, मेट सके न कोय। होनी थी। कितनी कोमल बदन वाली सीता थी। बहुत कोशिश किया वशिष्ठ ने कि यह विवाह टल जाए लेकिन नहीं टला। क्योंकि उनको यह मालूम था इसके भाग्य में राज सुख तो क्या गृहस्थी का भी सुख नहीं है। जनकपुर के बड़े-बड़े विद्वानों ने टालने की कोशिश किया लेकिन नही टला। जयमाल तो पड़ा राम के गले में ही। आप को समझने की जरूरत है त्याग तो प्रेमियों! थोड़ा करना ही पड़ता है।
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