दुःख तकलीफ में भगवान भी जल्दी याद नहीं आते इसलिए इनमें दुरुस्ती जरुरी है, जयगुरुदेव नाम ध्वनि बोलने से हो जायेगा

  • साधकों को होशियार रहने की जरूरत है
  • गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव ने कभी आलस नहीं किया

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 मई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सन्तों ने हमेशा से ही जीवों की भलाई के लिये बहुत मेहनत की है। हमारे गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) समय से सब काम पूरा करते थे। गुरु महाराज ने समय की हमेशा कद्र किया। बाकी लोग तो हार जाते थे लेकिन गुरु महाराज परिस्थितियों से कभी नहीं हारे। सब काम समय से किया। जब देखा परिस्थितियां मजबूर कर देती है आदमी को, समय से पहुंचने में बाधा डालती है तो पहले पहुंचने का टारगेट बनाते रहे। जैसे सुबह 9 बजे का सतसंग है तो सुबह 6:30 बजे ही पहुंच जाते थे। और जल्दी का सतसंग है तो रात को ही पहुंच जाते थे कि सुबह लेट न हो जाये। 

रात को 11-11:30 बजे सोये और 2:30-3 बजे उठ जाते थे। आलस्य तो गुरु महाराज के अंदर था ही नहीं। हमको जगाते, कहते थे उठो-उठो नहीं तो धूप हो जाएगी। चलो जल्दी करो, लाइन लगाओ, लोगों से मिल लें। एक-एक आदमी से गुरु महाराज मिलते और सबकी बात सुनते थे। जब कोई कार्यक्रम लग जाता था तो रात-रात जगते थे। ऐसे हाथ धुलाते-धुलाते हमको नींद आ जाती थी, सोने का समय नहीं मिलता था। दिन में गर्मी की वजह से जल्दी नींद नहीं आती थी। पहले पंखे भी बड़ी मुश्किल से कहीं मिलते थे। समझो हम लोग जवान आदमी आलस्य में आ जाते थे, गुरु महाराज कभी भी आलस्य में नहीं आते थे। सब काम समय से किया।

साधकों को होशियार रहने की जरूरत है

महाराज जी ने 17 सितम्बर 2022 प्रातः बावल आश्रम रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि लाभ और मान क्यों चाहे, पड़ेगा फिर तुझे देना। लाभ की, मान-सम्मान की इच्छा हो जाती है और उसमें हर तरह के लोगों से मिलना-जुलना पड़ता है तो उनके कर्म आते हैं। कई तरह से कर्म आते हैं। साथ में उठने-बैठने, खाने-पीने का असर आ जाता है। आपको बराबर बताया जा रहा। दृष्टि से दृष्टि मिलने पर भी कर्म आते हैं। भाव ही कहीं खराब हो जाते हैं। यह समाज, दुनिया, मृत्युलोक है। यहाँ हर तरह का जोर है। उस जोर में आ जाते हैं तो साधना में बाधा आ जाती है। इसलिए परमार्थी, साधक को बराबर होशियार रहने की जरूरत है। बराबर लगे रहो। 

कभी ऐसा भी होता है जब काल भगवान के काम में बाधा आती है, उनका बगीचा जब उजड़ने को होता है, उनकी तरफ से लोगों का रुझान हटता है, मालिक की, गुरु भक्ति की तरफ बढ़ता है तो वह बाधा भी डालते हैं। कहीं काम कहीं लोभ क्रोध लालच अहंकार जगा देते हैं। उस जागरण से किया कराया में रुकावट आ जाती है। लेकिन जब यह सन्तों की वाणी है की सतसंग सुनना, सेवा करना और भजन करना स्तंभ है। जब सभी सन्तों ने कहा और सन्तों को श्रेष्ठ माना गया और सतसंग में इस तरह की जानकारी भी हो गई कि भाई यही तीन स्तंभ है तो उसको क्यों छोड़ा जाए? तन मन से सच्चा रहे, पकड़े सतगुरु बाहं। सतगुरु के वचन को, बातों को पकड़ लो, उनके अनुसार चलने लगे जाओ, भजन सेवा करने लग जाओ, सतसंग सुनने लग जाओ तो अभी सब बात बन जाए, सब काम हो जाए।

शरीर स्वस्थ होना जरूरी है

महाराज जी ने 3 सितम्बर 2022 दोपहर नेत्रंग, भरूच (गुजरात) में दिए संदेश में बताया कि पढ़े-लिखे समझदार बुद्धिमान लोग तो जल्दी सीख जाते हैं लेकिन जो कम पढ़े-लिखे या गांव के लोगों को थोड़ा समझाना बताना पड़ता है। उसको समझा दो, ध्यान भजन करने लग जाएगे और नामध्वनी बोलने लग जाएंगे तो आराम उनको दिखाई पड़ने लगेगा। थोड़ी बहुत अगर तकलीफ रह जाएगी तो कुछ अच्छी पर्ची दिला दी जाएगी, कुछ बता दिया जाएगा। उससे इनको आराम मिल जाएगा। यदि यह शरीर दुःखी है, रोग या तकलीफ है तो भगवान भी नहीं याद आएंगे इसीलिए शरीर को ठीक रखना जरूरी है। जैसे भूख लगी रहे, किसी के पास रोटी खाने को नहीं है तो भगवान भी उसको भूख में अच्छे नहीं लगेंगे। इसलिए इन सब चीजों में दुरुस्ती होना जरूरी है। यह तो जयगुरुदेव नाम ध्वनि बोलने से हो जाएगा। ऐसे बोलना रहेगा- जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।

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