जयगुरुदेव बाबा उमाकान्त जी द्वारा वाराणसी में 8 व 9 अक्टूबर को सतसंग व नामदान की अमृत वर्षा

  • शाकाहारी नशामुक्त बनो, बीमारियों से बचो
  • जयगुरुदेव नाम प्रभु का, संकट में मददगार, परीक्षा लेकर देख लो- बाबा उमाकान्त जी

वाराणसी (उ. प्र.)। निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के एकमात्र आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, देश समाज पारिवारिक व व्यक्तिगत स्तर की हर तरह की समस्याओं तकलीफों व बीमारियों में आराम मिलने का उपाय बताने वाले, आत्मा के उद्धार कल्याण, जीते जी मुक्ति मोक्ष प्राप्त करने और देवी-देवताओं के दर्शन का दुर्लभ रास्ता पांचों नाम के नामदान को देने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने वाराणसी में 8 अक्टूबर 2022 प्रातः दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में भक्तों पर सतसंग व नामदान वर्षा की।

लगभग 50 एकड़ क्षेत्र में लगे इस कैम्प में यूएई, यूएसए, मॉरीशस समेत 8 देशों व भारत के राजस्थान, म.प्र., उ. प्र., छत्तीसगढ़, प. बंगाल, महाराष्ट्र, हिमालय प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक समेत कई प्रान्तों से पचास हजार से अधिक की भारी संख्या में आये हुए भक्तों की सुविधा के लिए 600 से अधिक शौचालय तथा विभिन्न प्रान्तों से आये 12 भंडारे बिना किसी सरकारी अनुदान के पूर्णतया संगत द्वारा स्वयं के खर्च से चलाए जा रहे हैं जिनमें बिना जाति धर्म समाज पूछे सबको निरंतर प्रेम से भोजन करवाया जा रहा है।

महाराज जी ने बताया कि शरद पूर्णिमा का कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में पहले भी हुआ करता था। लखनऊ में भी कई बार हुआ। बराबर इस तरह के कार्यक्रम पहले के समय में आयोजित होते रहते थे। काशी बनारस में गुरु महाराज महीनों रुकते थे। कई कार्यक्रम किये, भूमि पूजन किया। ऐसे ही ध्यान भजन का कैंप लगाते रहते थे, इससे बड़ा फायदा होता है, बहुत से लोगों को लाभ मिलता है।

महाराज जी ने बताया कि यह मनुष्य शरीर किराये का मकान है। साँसों की पूंजी खत्म होने पर सबको एक दिन खाली करना पड़ेगा। यह देव दुर्लभ अनमोल मनुष्य शरीर केवल खाने-पीने, मौज-मस्ती करने के लिए नहीं मिला। मनुष्य शरीर का असली उद्देश्य जीते जी प्रभु को पाना है।  श्मशान घाट पर शरीर को मुक्ति मिलती है आत्मा को नहीं। मौत को हमेशा याद रखो क्योंकि एक दिन सब की आती है। मरने के बाद जो काम आवे वह काम करना और वह दौलत प्राप्त करनी चाहिए।

पैदा होने से पहले जो मां के स्तन में दूध भरता है, उस मालिक पर भरोसा करो, पेट के लिए ईमान और धर्म मत बेचो। जो प्रभु को याद करते रहते हैं उन पर उनकी दया भारी रहती है और वो बुला लेते हैं। भगवान को हमेशा हाजिर नाजिर समझो, जो भी कर्म करते हो, वह देख रहा है। बुरा करने पर सजा मिल जाती है और नरकों में जाना पड़ जाता है।

जीवन का जो समय बचा है उससे अपनी आत्मा को जगा लो। शरीर में रहते रहते भगवान से मिला जा सकता है, मरने के बाद किसी को भी भगवान न तो मिला और न मिलेगा। आत्मा को मुक्ति परमात्मा के पास पहुँच जाने पर मिलती है जो केवल समर्थ गुरु ही दिला सकते हैं।

कोटि जन्मों के पुण्य जब इकट्ठा होते हैं तब सन्त दर्शन, सतसंग और नामदान का लाभ मिलता है। सन्त-सतगुरु किसी दाढ़ी, बाल या वेशभूषा का नाम नहीं होता। शिव नेत्र सबके पास है। समरथ गुरु की दया से खुल सकता है फिर खुदा, भगवान, गोड एक ही नजर आते हैं। सन्तों की दया से अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। सन्त के दर्शन, सतसंग व नामदान लेकर उनके बताए रास्ते पर चलने से लोक-परलोक बनता, समस्याओं का समाधान होता, जीवन जीने का तरीका तो मालूम होता ही है, साथ ही बीमारियों का इलाज भी प्रकृति से मिल जाता है। महात्माओं के दरबार में जाति-पाती ऊंच-नीच के भेदभाव को कोई स्थान नहीं दिया जाता है।

पहले जानकारी न होने से लोग प्रभु प्राप्ति के लिए अष्टांगयोग, हठयोग, कुंडलियों को जगाते, शरीर को तपाते-गलाते, इस समय यह सब करने की जरूरत नहीं। बहुत खराब समय आ रहा है, बचत का रास्ता ले लीजिए। इस समय कलयुग में सीधा सरल प्रभु प्राप्ति का रास्ता पांच नाम के नामदान का है जो आदि से चला आ रहा और अंत तक रहेगा। सन्तमत की साधना सभी लोगों के लिए सरल है। नाम की कमाई करो। इसी से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की ज्वाला बुझेगी।

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