परोपकारी सोहनलाल दुग्गल के प्रसंग से समझाया प्रभु पर विश्वास करने की जरूरत को

  • शराब में एक हजार बुराई, इससे बचो और बचाओ
  • सन्त उमाकान्त जी ने बताया मुसीबत में मदद किस नाम से होगी

भरूच (गुजरात) । इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 3 सितम्बर 2022 दोपहर भरुच (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मुसीबत में मदद कैसे होगी।

मुसीबत में कौन मदद करेगा?

यह जो जयगुरुदेव नाम है मुंह से लेना। इसमें इस समय भगवान की पूरी शक्ति है ताकत है। आपको किसी को शंका हो जाए, कभी मुसीबत में पड़ जाओ तो जयगुरुदेव नाम बोलना तो आपकी मदद हो जाएगी। बहुत से लोगों की मदद हो गई। बहुत से लोगों की तकलीफों में कमी आ गई, तकलीफें खत्म भी हो गई। जब से यह बताया गया  कि जयगुरुदेव नाम की ध्वनी सुबह शाम एक घंटा बोलना शुरू कर दो और लोग बोलने लगे और ध्यान भजन नामदानी लोग करने लग गए तब से तकलीफें बहुत कम हो गई, दुःख कम हो गया।

शराब में एक हजार बुराई

मांस मछली अंडा मत खाना और शराब मत पीना। शराब में एक हजार बुराई। जो शराब पीता मांस खाता, व्यभिचार करता खून कत्ल करता बाल बच्चों को मारता जमीन जायदाद को बेचता, क्या-क्या बुरा कर्म नहीं करता। शराबी को कोई पहचान होती है? शराब पीकर के अपनी बहन चाची बुआ मां का हाथ पकड़ लेता, गलत काम कर बैठता है, जबरदस्ती कर डालता है। ऐसा भी समाचार में आया कि मां ने रिपोर्ट लिखाया हमारे साथ हमारे लड़के ने शराब के नशे में ऐसा कर डाला, इसको जेल भेजा जाए। नशे में कत्ल कर देते हैं। अपनी औरत का कत्ल कर दिया बाद में होश आया, लाश पर पड़ करके रोने लगा लेकिन अब क्या हो सकता है? 

जिंदा तो कर नहीं सकता, मार तो दिया। ऐसे नशे का सेवन मत करना कि जिससे बुद्धि काम न करे, सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाए। मां बहन पत्नी, औरत ही होती है लेकिन सोचने की समझने की शक्ति, बुद्धि लगाने की होती है कि यह हमारी मां है इसका दूध हमने पिया है, इसके साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए। एक ही मां के गर्भ में दोनों रहे हैं, यह हमारी बहन है हमको इसके साथ बहन का व्यवहार करना चाहिए। और यह हमारी पत्नी है इसके साथ हमको वैसा व्यवहार करना चाहिए। बुद्धि ही तो काम करती है इसमें। 

बुद्धि ही जब खराब हो जाएगी तो कोई क्या कर पाएगा? बुद्धिहीन मंद बुद्धि कोई भी काम में तरक्की नहीं कर पाता है और तेज बुद्धि वाले के पास ज्यादा पैसा न हो, थोड़ा बहुत ही हो तो छोटा व्यापार शुरू करता है, उसी से बढ़ जाता है, करोड़पति बन जाता है। तो बुद्धि बड़ी खास चीज होती है। बुद्धि सही रखनी चाहिए। खान पान से ही बुद्धि भी बढ़ती है। बुद्धि किसमें हैं? शरीर में ही है। जो खाते हो नसों से जाता है तब उसी से बुद्धि काम करती है तो यह खून बेमेल मत करो। अब मत खाना। मांस मछली अंडा मत खाना, शराब मत पीना और शराब जैसा तेज नशा जिसमें भी हो चाहे गोली हो, चाहे पीने वाली दवाई हो, चाहे पीने वाला नशा हो, चाहे जड़ी बूटियों का नशा हो, उसका सेवन अब आप मत करना।

दानवीर सोहनलाल दुग्गल का प्रसंग

महाराज जी ने 26 अगस्त 2022 प्रातः रायगढ़ (छत्तीसगढ़) में दिए गए संदेश में फतेहपुर तहसील सीकर (राजस्थान) के विख्यात परोपकारी सोहनलाल दुग्गल के बारे में बताया कि वो बहुत दान करता था। तो पूछा उससे

ऐसी देनी देन को कित सीखे हो सैन। ज्यों ज्यों कर ऊंचो उठे, त्यों त्यों नीचो नैन।।

जैसे-जैसे दान कर रहा है, दे रहा है तैसे तैसे तेरा सिर नीचे झुकता चला जा रहा है। तो यह देनी तुमने कहां से सीखी? किसने यह सिखाया। तब बोला-

देनहार कोई और है, देत रहत दिन रेन। लोग भरम मुझ पर करे, तासो नीचो नैन।।

उसने कहा देने वाला (प्रभु) दे रहा है तो मैं तो केवल बांट रहा हूं लेकिन लोग भ्रम मुझ पर करते हैं कि सोहनलाल दे रहा है तो मैं शर्म के मारे सिर को नीचे किए हुए रहता हूं।प्रेमियों! जिसके अंदर कुछ रहता है, जिसके पास कुछ रहता है, जो कुछ करता है, जो दूसरों को फायदा दिला सकता है, वह हमेशा छोटा रहता है, नम रहता है, मुट्टी बांध कर देता है। कोई तारीफ करता है तो हाथ जोड़ देता है, गुरु के ऊपर, प्रभु के ऊपर डाल देता है, जो वह कर रहे, जो वह करवा रहे हैं, वह मैं कर रहा हूं।

सन्त इच्छानुसार अपने प्राणों को निकाल लेते हैं

महाराज जी ने 2 अप्रैल 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए गए संदेश में बताया कि सन्तों को मालूम हो जाता है। वह अपनी इच्छा के अनुसार अपने प्राणों को निकाल लेते हैं। उनको जानकारी रहती है कि अब हमारा काम पूरा हो गया, अब हमको चलना है। यह हमारा शरीर अब काम नहीं दे रहा है, दूसरे को काम दे दिया जाए और अब यहां से चला जाए। क्योंकि यह हमेशा सन्तों का इतिहास बता रहा है कि सन्त हमेशा कर्मशील रहे। एक जगह पर नहीं बैठे। जिस काम के लिए आए, पूरा तन मन उसमें लगाया। यही कारण है कि अपने गुरु महाराज जिस काम के लिए आए थे उस काम में आखिरी वक्त तक लगे रहे। उन्होंने शरीर खाने-पीने सोने की कोई परवाह नहीं किया और बराबर जीवों की भलाई में, जीवों को चेताने में लगे रहे।

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