सख्त सजा मिलेगी जो गुरु का नाम बदनाम किये, संपत्ति पर कब्ज़ा किये, उनका रूप धारण किये, जिन्दा-मुर्दा के भ्रम में लोगों को डाल रहे

 

  • अपनी पूर्व की सेवा का फल पा रहे हैं, फल ख़तम होते ही सजा मिलनी शुरू हो जाएगी
  • सतगुरु संसारी इच्छाओं की भी पूर्ति कराते हैं क्यूंकि इच्छा बाकी रहने पर इस म्रत्युलोक में दुबारा आना पड़ता है

गोरखपुर (उ.प्र)। बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 30अक्टूबर 2022 प्रातः गोरखपुर में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि समरथ गुरु जिन जीवों को अपनाते हैं, छोड़ते नहीं। उनकी इच्छा की पूर्ति कराते हैं। जिन दुनिया की चीजों कि इच्छा रहती है वह भी मिल जाती है क्यूँ? क्योंकि- 'लौट-लौट चौरासी आया'।

अगर वह इच्छा पूरी नहीं होगी तो बार-बार (इसी मृत्युलोक में) आना पड़ेगा। जिसकी जैसी इच्छा होती है, उसको वह चीज सतगुरु दे देते हैं। कर्जा किसी का नहीं रखते हैं। एक गिलास पानी का भी, कोई सतगुरु को कुछ खिला-पिला दे, उसका भी कर्जा नहीं रखते। इसीलिए कहा जाता है दूसरे की खाने की कोशिश मत करो बल्कि दूसरों को खिला दो। पता नहीं है आपको कि इसका कर्जा हम अदा कर रहे हैं या हम इसके कर्जे से दब रहे हैं। अपने बल पौरुष पर भरोसा रखो। दूसरों का सहारा मत लो। दूसरों की कमाई खाने की इच्छा, धन हड़प करने की इच्छा मत रखो।

यदि त्रिदेव, उनकी माता आद्या महाशक्ति आदि का दर्शन नहीं हो रहा तो ऐसे समरथ गुरु को खोजो जो करवा दें 

सन्त सतगुरु संसारी इच्छाओं की भी पूर्ति कराते हैं

गुरु महाराज ने बहुत से लोगों की इच्छाओं की पूर्ति किया, जो जिस तरह की इच्छा लेकर आए। लेकिन अब जब उसी तरह से उनको लाभ नहीं मिला, उसी लाभ की तलाश में इधर-उधर लोग भटक गए। अब भी बेचारे भटक रहे हैं क्योंकि जड़ की बजाय पत्ते को सींच रहे हैं। जो लोग भजन को छोड़ दिए, मूल मंत्र मूल उपदेश को छोड़ दिया, वे आज दु:खी हो गए, लोगों के भटकाव में आ गए।

दुःख तकलीफ में भगवान भी जल्दी याद नहीं आते इसलिए इनमें दुरुस्ती जरुरी है, जयगुरुदेव नाम ध्वनि बोलने से हो जायेगा 

जो गुरु का रूप बनाकर के जिंदा-मुर्दा बता रहे हैं, उनको सख्त सजा मिलेगी

गुरु महाराज को ऐसे लोग मनुष्य ही समझने लग गए थे और अब भी मनुष्य ही समझ रहे हैं, जो उनके शरीर का आज भी उपयोग करके उन्हीं को जिंदा-मुर्दा बता करके, उन्हीं का रूप बना करके लोगों को भ्रम-भूल में डाल रहे हैं, जनहित के लिए गुरु महाराज द्वारा इकठ्ठा धन संपत्ति पर कब्जा करके गुरु के नाम को खराब तक कर दे रहे हैं। सन्तों ने ही कहा है-

गुरु को मानुष जानते, ते नर कहिए अंध, महादु:खी संसार में, आगे यम का फंद

आप तो कहोगे गाड़ी घोड़ा मिल गया, गुरु महाराज की जगह पर बैठ गए, सब कुछ उनको मिल गया, वह दु;खी नहीं हैं। लेकिन उन्होंने जो कर्म सेवा किया था, जैसा फल चाहते थे वो उनको मिला। जैसे ही वह खत्म होगा तैसे ही उनको सजा तो मिलनी ही मिलनी है। कर्मों की सजा तो मिलती ही मिलती है। कहा गया-

गृहस्तों के टुकड़े नौ-नौ अंगुल के दाँत, भजन करे सो ऊबरे, नहीं तो फाडे आँत।।

बहुत से गृहस्त लोग तमाम तरह की इच्छा लेकर सन्तों के पास आश्रमों में जाते हैं, हमारी तकलीफ कष्ट दूर हो जाए, बिगड़ा काम बन जाए आदि और कुछ देते हैं। अब जो उसे खाता है और अदा कर नहीं पाता है तो उसको भोगना ही भोगना पड़ता है। इसलिए लोग भ्रम में पड़े हुए हैं। आप भ्रम में मत पड़ो। गुरु ने जो नाम रूपी अजब जड़ी दी है, उसकी रगड़ करके वक्त के सतगुरु की पहचान कर लो।

सृष्टि और प्रकृति के आभार का लोकमहापर्व 

सतगुरु मनुष्य शरीर में ही रहते हैं लेकिन परमात्मा की पूरी शक्ति पावर उनके अंदर रहती है

मोटी बात समझो। हाड मांस के शरीर में गुरु की पहचान नहीं हो पाती है। पैदा मां के पेट में ही बन पल करके बाहर इस दुनिया में आते हैं। इसी धरती पर चलते, इसी आसमान के नीचे रहते, इसी हवा पानी का इस्तेमाल करते, टट्टी पेशाब मनुष्य जैसा ही करते हैं लेकिन शक्ति अलग होती है क्योंकि वो उस वक्त के जो महापुरुष सतगुरु होते हैं उनके पास पहुंच जाते हैं, चाहे भटक के, चाहे सीधे-सीधे, चाहे गुरु अपनी तरफ खींच ले। यह सब इतिहास आप पुराने लोग पढ़े हो। गुरु महाराज को भी कितना भटकना पड़ा था लेकिन दादा गुरु ने उनको बुला लिया था। उनके पास पहुंच करके नाम ले करके नाम की कमाई करते हैं। और जब जीवात्मा उस मालिक के पास तक पहुंच जाती है-

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई, जानत तुम्हहि तुम्हइ होई जाई

परोपकारी सोहनलाल दुग्गल के प्रसंग से समझाया प्रभु पर विश्वास करने की जरूरत को 

जीवात्मा जब उन्ही जैसी हो जाती है, जब गुरु यह देख लेते हैं कि यह जीवों की संभाल, जीवों को रास्ता बता सकता है तो हुकुम दे देते हैं कि जाओ अब तुम जीवों को मुक्ति मोक्ष दिलाने का काम करो, अब उनको नाम बांटो, संभाल करो, लोगों को सत्य अहिंसा परोपकार सेवा रूपी धर्म के बारे में बताओ, हमारी अंश जीवात्मा बहुत दिनों से भटक गई, वहीं (मृत्युलोक में) रम गई, उसको यहां की याद दिलाओ तो वह अपना काम शुरू कर देते हैं। इस प्रकार वक़्त के गुरु की पहचान महाराज जी ने अपने सतसंग में कराई।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ