बाबा जयगुरुदेव के प्रसंग से समझाया की महापुरुष सबको समान दृष्टि से देखते हैं, कोई भेदभाव नहीं करते

 

  • गुरु को अपने घर ले चलने के लिए कहने की बजाय कहो कि हमें अपने घर ले चलो
  • गुरु ऋण, प्रभु ऋण को नहीं चुका सकते, उसे भी इन्ही की दया ले करके चुका दो

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 मई 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज के अंदर कोई भेदभाव नहीं था। आप बहुत से लोगों के अंदर बहुत भेदभाव है। मुंह पर भले कुछ न कहो लेकिन अंदर में तो भरा हुआ है। गुरु महाराज सबको समान दृष्टि से देखते थे।

बजाये यह कहने के कि गुरूजी हमारे घर चलो, यह कहना चाहिए कि गुरु महाराज! हमको, हमारे घर ले चलो

आगरा जिले में एक गांव में गुरु महाराज के साथ हम लोग गए। उस समय संगत में संख्या कम होने से लोग गुरु महाराज को अपने घरों में ले जाते थे और जाते भी थे। हम भी शुरू में लोगों के यहां जाते थे लेकिन अब बहुत लोग हो गए। कहां-कहां जाए? उमर भी हो गई, नहीं जा सकते तो हमने तो अब घरों में जाना बंद कर दिया। हाथ जोड़ लेते हैं। गुरु महाराज जाते थे हालांकि महापुरुषों को परेशान नहीं करना चाहिए। बजाये यह कहने के कि आप हमारे घर चलो, यह कहना चाहिए कि गुरु महाराज! हमको, हमारे घर ले चलो।

गुरु महाराज के प्रसंग से समझाया किसी भी तरह का भेदभाव मत करो

तो गुरु महाराज को मैं स्कूटर पर बैठा कर ले जा रहा था। सबके घरों में गए। तो गांव के बाहर कोने में एक हरिजन का घर था। तो वह हट गया अपने दरवाजे से कि बाबा जी आवे तो हमारा मुंह न देखें। कई साल पहले की बात है। पहले कोई बड़ा प्रतिष्ठित आदमी आ रहा हो तो गांव के, जिनको छोटे कहते हैं, छोटे लोग हट जाते थे। सफाई का काम वही करते हैं। सेवा उनका असला यही है। पैर को शुद्र बताया गया लेकिन पैर अगर स्ट्राइक हड़ताल कर दे, चले ने तो जिस सिर को ब्राह्मण, हृदय को क्षत्रिय, पेट को वैश्य बताया गया है ये चल पाएंगे? रुक जाएंगे। सेवा करने वाले का ज्यादा महत्व होता है। लेकिन लोगों की सोच ऐसी बन गई कि यह छोटे हैं। जब ब्राह्मण कहलाने वालों का आचार-विचार, खान-पान, आहार-व्यवहार सही रहता था, अपने अंदर प्रभु की प्राप्ति कर लेते थे, ज्ञान उनके अंदर जब हो जाता था तो लोग उनकी पूजा करते थे। 

अन्य को इतनी शिक्षा ज्ञान नहीं हो पाता था, खान-पान भी संग दोष से गलत, परिवार व समाज के हिसाब से हो जाया करता था तो इनको लोग शुद्र समझते थे। शुद्र यानी इनको छूना ठीक नहीं। ये मुर्गा भैसा चूहा बिल्ली खा जाते हैं, पापी हैं, गलत काम करते हैं। तो वो खुद बचते थे। अभी तो वह बात नहीं रही। अब तो हम कहना नहीं चाहते हैं कि अब कौन-कौन लोग इन कामों को करते हैं। लेकिन उस समय ऐसा करने वालों को लोग शुद्र कहते थे। तो वो खुद हट जाते थे। तो गुरु महाराज जब वहां पहुंचे तो हमारे पीठ पर हाथ रखे कि रुक जाओ। इशारे में बता देते थे। खुद गए गुरु महाराज और उसका जंजीर खोल करके उसके भी घर में हो आए। अब उस चीज का बहुत अच्छा असर पड़ा। आस पास उस जाति के बहुत लोग थे। कहे कि मान गए कि यह महापुरुष है। समझ गए कि सभी महापुरुषों ने सबको एक दृष्टि से देखा, कोई भेदभाव नहीं रखा तो बाबा के यहां चलना चाहिए। पूरा गांव का गांव उमड़ कर आ गया, खबर दूर तक फैल गई और सतसंग में इतनी भीड़ हुई कि जगह छोटी पड़ गई।

गुरु ऋण, प्रभु ऋण को नहीं चुका सकते, उसे भी इन्ही की दया ले करके चुका दो

गुरु महाराज की इन बातों से हमको शिक्षा लेनी चाहिए, गुरु के वचन का पालन करना चाहिए और गुरु के बताए आदर्श पर, रास्ते पर चलकर के अपना जीवन सफल करना चाहिए, लोक-परलोक दोनों बना लेना चाहिए। नहीं तो यह समय किसी का इंतजार नहीं करता। समय से सब काम होता है। आपका काम भले ही समय से न हो पावे लेकिन उसका आटोमेटिक चक्र कभी नहीं रुकता। उसकी व्यवस्था के अंतर्गत अगर हम चलेंगे तब तो अपना काम बन जाएगा नहीं तो पीछे छूट जाएंगे तो पता नहीं फिर कब मनुष्य शरीर मिले? और मनुष्य शरीर भी मिल जाए लेकिन सतगुरु न मिले, रास्ता बताने वाले न मिले तो भटक-भटक सब भटका खाया, तो भटकते रह जाएंगे।

इसलिए चेतो, जागो और अपना असला काम बनाओ। नकली मिथ्या बेकार की चीजों को इकट्ठा करने में मत लगो। इनसे मोह मत रखो। रखो भी तो उतना ही जितना शरीर को, गृहस्थी को चलाने के लिए जरूरत है। प्रेम उतना ही करो जिसमें आप फंस न जाओ और अपना काम शरीर के रहते-रहते बना लो। सेवा भी कर लो। परिवार वालों का, बाल-बच्चों का, एक-दूसरे का कर्जा है, लेना-देना है, उसको भी अदा कर लो। बाल-बच्चे नहीं है तो माता-पिता की सेवा करके उनके कर्जे से मुक्त हो जाओ। लेकिन अपने गुरु ऋण को और उस प्रभु के ऋण को जिसको आप चुका नहीं सकते हो, उसको भी आप इन्हीं (गुरु से) से दया ले करके चुका लो। बोलो जयगुरुदेव।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ