गुरु नानक के जीवन प्रसंगों से समझाया वक़्त के जीवित पूरे सन्त सतगुरु को खोजो, उनसे नामदान लेकर अपनी जीवात्मा का उद्धार कर लो

  • सन्त अपने अपनाए हुए सभी जीवों की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं- बाबा उमाकान्त जी महाराज

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 12 फरवरी 2021 को राजनन्दगांव (छत्तीसगढ़) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में सन्तों की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि नाम दान देने वाले इस धरती पर एक ही सन्त रहते हैं, मौजूदा जिनको आदेश होता है, वही देते हैं। यह सन्तों की वंशावली बता रही है। इस कलयुग में कबीर साहब से सन्तों की वंशावली शुरू हुई। आत्मा परमात्मा, मुक्ति-मोक्ष आदि का सब भेद सन्तों ने ही खोला। कबीर साहब के बहुत से शिष्य थे लेकिन उन्होंने नानक जी को (आगे जीवों को नाम दान देने का) अधिकार दिया। नानक जी ने रावी नदी के तट पर नामदान लिया था, कम उम्र में परम गति प्राप्ति कर ली थी। जब उन्होंने गुरु के रूप को, जलवा को अंतर में देखा तब बोल पड़े वाहेगुरु वाहेगुरु वाह रे मेरे गुरु वाह रे मेरे गुरु, हमारे गुरु का इतना जलवा हैं। नानक जी ने बहुतों को नाम दान दिया लेकिन अधिकार एक को ही दिया। ये दसों गुरु एक दुसरे को अधिकार देते चले गए।

बन्दहुँ सन्त समाज - इस कलयुग में सन्त वंशावली

आखरी गुरु गोविंद सिंह जी ने दक्षिण भारत पुणे (महाराष्ट्र) में मराठा परिवार के रतन राव जी को नामदान दिया। उन्होंने अधिकार श्याम राव जी को दिया। महाराज जी ने 28 फरवरी 2021 को पटना में बताया कि श्याम राव जी को वहां लोगों ने परेशान करना शुरू कर दिया। अक्सर यह देखा गया है सन्तों को परेशानी बहुत झेलनी पड़ती है। तो इधर आए बनारस में कुछ दिन रहे। फिर हाथरस चले गए। फिर उन्होंने गरीब साहब को नामदान दिया, अधिकार दिया। उन्होंने अधिकार शिव दयाल जी को दिया जिन्होंने राधास्वामी मत चलाया। उन्होंने विष्णु दयाल जी को, उन्होंने घूरेलाल जी को, उन्होंने हमारे गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) को अधिकार दिया। इनके सबके शिष्य बहुत हुए लेकिन अधिकार एक को ही को मिलता है। गुरु नाम दान देने के अधिकार के साथ अपनी पावर भी देते हैं। गुरु शरीर का नाम नहीं, गुरु एक पावर है, शक्ति है। जाने से पहले गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) मुझ नाचीज के लिए (2007 में खुले मंच से) बता कर गए थे कि ये नयों को नामदान देंगे और पुरानों की संभाल करेंगे। (महाराज जी भी अपने गुरु के आदेश में देश-विदेश घूम-घूम कर सतसंग व नामदान लुटाते हुए प्रेमियों का लोक-परलोक दोनों बना रहे हैं।)

नानक जी और काजी के प्रसंग से समझाया वर्तमान के पूरे फ़क़ीर को खोजो

महाराज जी ने 10 अगस्त 2022 प्रात: बवाल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि नानक साहब का दौरा बहुत दूर-दूर हुआ करता था। मुसलमानों की आबादी थी। कहे कि काफ़िर नमाज का वक्त हो गया है, तू किधर घूम रहा है? पकड़ करके ले गए और खड़ा कर दिया। मस्जिद में सब लोग उठक बैठक करें और नानक जी हाथ बांधे खड़े रहे। पूछा तुमने नमाज क्यों नहीं पढ़ा? बोले पढ़ाने वाला यहाँ नहीं था। कहा काजी साहब पढ़ा तो रहे थे। बोले वो यहाँ थे ही नहीं। कहा हम सबने उन्हें देखा। बोले वह यहां कहां थे? वो तो अपनी बच्चा देने वाली घोड़ी के पास थे। काजी बोले हां बात तो सही है, हम वहीं थे। नानक जी बोले यही सोच रहे थे कि वहां हमारा रहना जरूरी है। बच्चा देगी तो कैसे कैसे करेगी। इनका मन यहां नहीं, वहां था तो हम कैसे नमाज पढ़ते। लोगों ने कहा यह तो इंसानी जामे (शरीर) में पूरे फकीर हैं। इनकी रूह ऐसी रुह है कि हमारी रूह को भी निजात दिला सकते हैं, 14 तबक की भी सैर करा सकते है। यह शुरुआत हुई थी कि तब तक नानक साहब आगे बढ़ गए।

शराब आदि अस्थाई नशों की बजाय नाम का रूहानी नशा करो जो कभी नहीं उतरता

महाराज जी ने इंदौर आश्रम पर 29 मार्च 2022 शाम बताया कि आजकल नशे की तमाम गोलियां चल गई। ये नशा क्षणिक है। शाम को करते, सुबह उतर जाता। लेकिन वह नशा जिसके लिए नानक साहब ने कहा- भांग भखूरी सुरापान, उतर जाए प्रभात। नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात।। नानक जी ने कहा उस (नाम के) नशे का सेवन करो जो रूहानी नशा है। जब तुमको मिल जाएगा तो वह कभी नहीं खत्म होगा।

नानक जी ने कहा- मांसाहारी राक्षस तुल्य है

नानक जी ने बहुत कड़े शब्दों में कहा जो मांस खाता है वह राक्षस तुल्य है। बौद्ध धर्म में लिखा मिलता है जो मांस खाता है अपने बच्चे का मांस खा रहा है। तरह-तरह से लिखा लेकिन अब उन किताबों को लोग पढ़ते नहीं, समझ नहीं पाते, मनमानी करते हैं।

मेहनत ईमानदारी की कमाई से घर में टेंशन की बजाय सुख शांति बरकत बचत रहती है

नानक जी ने एक भक्त किसान की मेहनत की कमाई की साग रोटी को दबाया तो दूध निकला और राजा की बिना मेहनत की कमाई की पुआ पकोड़ी को दबाया तो खून निकला। तो समझो मेहनत, ईमानदारी का धन दूध की तरह और दिल दु:खाकर लाया हुआ धन खून की तरह से, खून पीने जैसा होता है। इसलिए मेहनत ईमानदारी की कमाई करो।

गुरु नानक जी द्वारा एक भक्त के लिए पूरे नरक को खाली करने का प्रसंग

महाराज जी ने 27 जनवरी 2019 को उघना, सूरत (गुजरात) में बताया कि जहर चाहे जान में खाओ या अनजान मे, असर करता ही है। ऐसे ही शरीर से जब बुरे कर्म बन जाते हैं तो जीवों को नर्क भी जाना पड़ जाता है। नानक जी का एक जीव नरक में चला गया। गए निकालने के लिए, पैर लटकाया, कहा मेरे पैर का अंगूठा पकड़ के बाहर आजा। वह जीव परमार्थी था। जो दूसरों के काम आवे वो परमार्थी और जो अपने लिए ही सब कुछ करें, वो स्वार्थी। परमार्थी की फिक्र मालिक करता है। उस परमार्थी जीव ने आवाज लगाया, तुम एक-दूसरे के अंगूठे को पकड़ो और मेरा अंगूठा पकड़ो और मैं गुरु जी का अंगूठा पकड़ने जा रहा हूं। निकल चलो नरक से, मौका अच्छा है। नानक जी ने एतराज किया, कहा तू यह क्या कर रहा है? मैं तो तेरे लिए आया, तू सबका ठेका ले रहा है? तब उसने कहा आप तो समरथ हो, आप यहां पर आए, ये जीव कैसे पार होंगे? इसलिए मेरे साथ आप इन पर भी दया करो तो- नानक जाए अंगूठा बोरा, सब जीवों का किया निबेरा। जितने भी जीव नर्क में थे, उन्होंने सब को पार कर दिया। सन्तों की महिमा जितनी कही जाय, कम है। आप भी वक़्त के सन्त सतगुरु को खोजो जो इस मनुष्य शरीर में मौजूद है और अपना असला काम बना लो।

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