जयगुरुदेव बाबा उमाकान्त जी ने बताया की आने वाला सतयुग कौन नहीं देख पाएगा

  • अवतारी शक्ति राम मर्यादा पुरुषोत्तम, भगवान कब कहलाये
  • स्वयं करोगे, स्वयं सतयुग देखने लायक बनोगे  तब तो आपका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा

बदायूं (उ.प्र.) । बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 4 नवम्बर 2022 प्रात: बदायूं (उ.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मन तू भजो गुरु का नाम। गुरु के दिए हुए नाम को भजो। महाराज जी ने 5 अक्टूबर 2022 प्रातः जयपुर में बताया कि अवतारी शक्ति के रूप में राम आए थे। जब पैदा हुए थे तब राम भगवान नहीं थे और न मर्यादा पुरुषोत्तम थे। जब विश्वामित्र के आश्रम से ज्ञान शिक्षा लेकर के आए और पिता के आदेश से राजगद्दी पर ठोकर मारे। किसकी शिक्षा से? यानी गुरु की शिक्षा से, की मातृ पितृ देवो भव: यानी माता-पिता देवता तुल्य होते हैं। जब यह दिमाग में भर गया तब बोले कि देवता के आदेश का पालन कैसे नहीं किया जाए तो राजगद्दी पर ठोकर मार दिया और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। जब छोटे-छोटे लोगों को इकट्ठा करके रावण जैसे को परास्त कर दिए तब वह भगवान राम कहलाए।

सतयुग कौन नहीं देख पाएगा 

महाराज जी ने 3 अक्टूबर 2022 प्रातः सीकर (राजस्थान) में दिए सन्देश में बताया कि सतयुग में कैसे लोग थे? सतयुग में ईमानदार, सत्य बोलने वाले, सेवाभावी, भजनानंदी, ईश्वरवादी, परोपकारी लोग थे। पापी कुकर्मी नहीं थे। ऐसे लोग आने वाला सतयुग नहीं देख पाएंगे। लेकिन अब सब मर ही जाए और सतयुग आ जाए तो देखेगा कौन? आनंद कौन लेगा? इसलिए आप सन्त के बंदे हो, दयाल के जीव हो। आप प्रचार करो, लोगों को समझाओ शाकाहारी नशामुक्त बनाओ। अभी जरुरत है। हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी। ब्रह्म में, उपरी दिव्य लोकों में विचरण करने वाला ब्रह्मचारी। 

मन खराब करने वाले मनमुख से, मनमुखता से दूर हो जाओ

जीवात्मा के उद्धार में दया लेने के लिए आपको गुरु की बातों को पकड़ना पड़ेगा। गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति होती है। उसमें मनमुखता मत लाओ। मन को कोई खराब करे तो उससे दूर हो जाओ। कहते हैं- साध संग मोहे देव नित, परम गुरु दातार। या मेरे मालिक! मुझे साध का संग दो। भक्ति तो मनमुख भी करता है लेकिन मन के हिसाब से। और वो ऐसी होती है कि लोगों को अपना बना करके उनको भी मनमुख कर दिया जाए। तो मनमुखता दूर होने के लिए गुरुमुख बनो, गुरु के एक आदेश का पालन करो कि सुमिरन ध्यान भजन हमको रोज करना है। जो ये नहीं करते हैं, अंदर में गुरु की पहचान जिनको नहीं हो पाई है उन्हीं की मनमुखता नहीं जा रही है। इसीलिए गुरु का जब अंतर में दर्शन कर लोगे, गुरु से जब आपको प्रेम हो जाएगा तब तो आप गुरु के आदेश पर मरने मिटने, कुर्बान होने के लिए तैयार हो जाओगे। तब तो जो कुछ है गुरु महाराज सब आप ही का है। तन मन धन संतन को सर्वस्व। फिर यह मनमुख लोग आपका कुछ नहीं कर पाएंगे। और यदि मनमुखता लाओगे, कहोगे सब कुछ गुरूजी आपका है लेकिन आप छू नहीं सकते, ले नहीं सकते हो बस केवल कहने को और देखने भर को है तब कैसे बात बनेगी? 

सुमिरन ध्यान भजन रोज करने से आपके वो कर्म कटेंगे जो

जो आपको आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं, जो आपको गुरु आदेश के पालन में बाधा डाल रहे हैं, प्रचार प्रसार में, गुरु की महिमा गरिमा नाम काम को बढ़ाने के अभियान में आपका मन नहीं लगने देते हैं और आप दुनिया की थोथी दिखावटी चीजों में, माया के पसारे में मस्त हो जाते हो। तो यह क्या है? यह मनमुखता क्यों आई? कर्मों की वजह से आई। कर्म कटेंगे तब आप सब आदेश का पालन करने लग जाओगे। तो रोज सुमिरन ध्यान भजन रोज करो, प्रचार-प्रसार करो, शाकाहारी नशामुक्त लोगों को बनाओ, लोगों को सतयुग आने का संदेश दो और सतयुगी बनने का करो प्रयास, सतयुगी बन जाओ।

स्वयं करोगे, स्वयं सतयुग देखने लायक बनोगे तब तो आपका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा

तो प्रभाव किसका पड़ेगा? जो खुद सतयुगी बनेगा, बनने की कोशिश करेगा उसी की बातों का प्रभाव पड़ेगा। इसीलिए पहले अपने को उसमें ढालो और यह सोचो हम भी सतयुग को देख ले। कहीं कलयुग जाने लगे तो हमको भी चपेट में न ले ले, लेकर के चला जाये और यदि न भी नरकों में जाना पड़े तो मनुष्य शरीर में ही जन्मने-मरने की पीड़ा बर्दाश्त करनी पड़ जाए तो ऐसा आप न करो कि जिससे फिर आपको तकलीफ़ हो।

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