साधना का धाम, पूजा का मंदिर, मोक्ष का दरवाजा यही अनमोल मनुष्य शरीर है - सन्त उमाकान्त जी महाराज

  • शरीर छूटने के बाद न तो किसी को भगवान मिला न मिलेगा, जीते जी प्राप्त होते हैं प्रभु
  • मनुष्य पाने की कीमत जो नहीं समझते हैं उनको नर्क और चौरासी में कर्मोंनुसार सजा मिलती है

बदायूं (उत्तर प्रदेश)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 4 नवंबर 2022 प्रातः बदायूं में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कथा भागवत प्रवचन तो लोग सुनते रहते हैं लेकिन सतसंग लोगों को आजकल नहीं मिलता है। पहले के समय में सतसंग जगह-जगह होता रहता था। पहले सतसंग सुनने के लिए सन्त संत महात्माओं के आश्रम पर जाते रहते थे। सतसंग से हर तरह की जानकारी हो जाती थी। विचार भावना कैसी रखी जाए, देवी-देवता कौन है, धर्म-कर्म आत्मा-परमात्मा क्या है आदि इन चीजों की सारी जानकारी सतसंग से होती थी और गृहस्थ आश्रम में जो कर्म बन जाते हैं, यह कटते थे।

कैसे कर्म बनते हैं?

जैसे भोजन के लिए जलती लकड़ी के अंदर के कीड़े नहीं दिखे, जमीन की लिपाई करते समय छोटे कीड़े मकोड़े खत्म हो जाते हैं आदि। इन जान-अनजान में बने कर्मों को काटने के लिए उपाय, नियम बना दिए गए थे। इसी प्रकार जीवात्माओं के कर्म काटने के लिए सन्तों ने रास्ता निकाला।

जीवात्मा किसको कहते हैं? 

इस शरीर को चलाने वाली शक्ति को जीवात्मा कहते हैं। परमात्मा की है यह अंश। इतनी छोटी है कि बाहरी आंखों से इसे देख नहीं सकते हो। आदमी अपने मनुष्य शरीर पाने का मतलब नहीं समझ पाता है। मानव कर्म को नहीं करता है, जो धर्म है उसे समझ नहीं पाता है, नहीं करता है तो आखिर में सजा मिल जाती है।

यही जीवात्मा सजा भोगने के लिए पेड़ पशु पक्षी योनियों में सजा भोगने के लिए डाली जाती है

यही जीवात्मा सजा भोगने के लिए नरकों में, चौरासी लाख योनियों में डाल दी जाती है। कीड़ा मकोड़ा सांप बिच्छू, जमीन पर चलने वाले जानवर, आसमान में उड़ने वाले पक्षी, जल के जीव में। पेड़ एक से दूसरी जगह अपनी इच्छा के अनुसार जा नहीं सकता। 50 साल 100 साल के लिए पेड़ की योनि में डालकर के खड़ा कर दिया जाता है तो सजा मिल जाती है। सूक्ष्म कीड़ों में भी यही जीवात्मा है। मनुष्य शरीर पाने का अर्थ उद्देश्य आदमी समझ नहीं पाता है तब जीवात्मा को सजा मिल जाती है।

केवल भगवान की प्राप्ति के लिए मनुष्य शरीर मिला

ये शरीर केवल खाने पीने मौज मस्ती के लिए ही नहीं मिला है। देवता इस शरीर के लिए 24 घंटा तरसते रहते हैं, प्रभु से मांगते रहते हैं कि थोड़े समय के लिए नर तन मिल जाए, हम अपना काम बना लें, लोक-परलोक बना लें। आपका शरीर जानवरों पक्षियों पेड़ों जैसा तो है नहीं। जैसे पशु-पक्षी खाते-पीते और बच्चा पैदा करके दुनिया से चले जाते हैं उसी काम के लिए ये शरीर तो आपको मिला नहीं है। समझो, ये देवी-देवताओं के दर्शन के लिए, भगवान के प्राप्ति के लिए मिला क्योंकि भगवान इस शरीर में मिलता है। 

जितने भी सन्त महात्मा फकीर आये, सब ने बताया इसी मनुष्य शरीर में प्रभु मिलेगा

सबने यही कहा। जो जानकार पूरे थे, पूरे सन्त सतगुरु कहलाए सब लोग बताये, गुरु महाराज भी बराबर कहते रहे भगवान मिलेगा तो इसी मानव मंदिर में मिलेगा। मनुष्य शरीर छोड़ने के बाद न तो किसी को मिला है न मिलेगा। यहां तक भी कहा, स्वप्न में भी भगवान तुमको नहीं मिलेगा। इसीलिए गोस्वामी जी ने कहा-

बड़े भाग्य मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सद्ग्रंथन गावा॥ 

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा पाय न जेहि परलोक संवारा॥ 

यह साधना का धाम, पूजा का मंदिर है। इसी में से रास्ता गया हुआ है जिससे प्रभु के पास अपनी आत्मा को पहुंचा सकते हैं। यह मनुष्य पाकर करके मुक्ति मोक्ष अगर अपने आत्मा को नहीं दिलाई तो यह नर्कों में चली जायेगी।

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