काशी-तमिल संगमम : राजऋषि के पथ पर नरेंद्र मोदी

  • ऋषि अगस्त्य और आदि शंकराचार्य के बाद अखंड भारत को जोड़ने का यह नवीनतम प्रयास

संजय तिवारी

काशी में जो कल हुआ वह सनातन संस्कृति के इतिहास का महानतम पृष्ठ है। प्राचीन सनातन शास्त्रों में वर्णित ऋषि अगस्त्य की यात्रा से लेकर भगवान आदि शंकराचार्य की समूची परंपरा बहुत सलीके से नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत हो रही है। भारत के वर्तमान राजनैतिक सत्ता के स्वामी की राजनीतिक पृष्ठभूमि से बिल्कुल अलग नरेंद्र दामोदर दास मोदी के रूप में हम भारत के उस सनातन राज ऋषि को साक्षात देख रहे हैं जो एक एक कर सनातन प्रतीकों की पुनर्स्थापना कर विश्व की इससे परिचित कराने में पूरी शक्ति से जुटा हुआ है। यह भारत के लिए स्वर्णिम भविष्य के आधार के निर्माण की दिशा में एक ऐसा पाठ है जिसको वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी बड़े सलीके से पढ़ भी रही है और स्वीकार भी कर रही है। यह संयोग ही अद्भुत है।

यह लिखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह केवल एक आयोजन अथवा घटना भर नहीं है। इसके पीछे निश्चित रूप से दैव योग भी है जो 2014 से विश्व की बता रहा है कि सनातन संस्कृति में समय समय पर ऐसे ऋषि योद्धा जन्म लेते हैं और सनातन की यात्रा को और भी प्रभावी बनाकर विश्व के समक्ष रखते हैं। यही यात्रा भारत को सदैव सांस्कृति रूप से अखंड और अक्षुण्य रखती है। आज का भारत उसी दिशा में यात्राशील है। इस यात्रा के महानायक या कहें कि इस संघर्ष के महायोद्धा निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी ही हैं। इसमे कोई एक दो स्थितियों का घटनाक्रम भर नहीं है, इसमे असंख्य दीपमालिका की तरह सनातन के आधार विन्दुओं की बहुत बड़ी माला है जो अभी भी निर्माण की अवस्था मे ही है लेकिन विश्व अभी से इसके आकार, प्रकार और स्वरूप को देख कर आश्चर्यचकित है।

अयोध्या धाम में भव्य श्रीराम मंदिर, श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर, श्रीसोमनाथ, श्री महाकाल उज्जैन, श्री केदार , श्री केदार गुफा, श्रीरामानुजाचार्य की प्रतिमा, श्री शंकराचार्य की प्रतिमा, श्री अम्बा देवी कॉरिडोर, बांग्लादेश में श्री शक्ति पीठ, अरब में भव्य मंदिर , प्रयाग राज  का तीर्थ क्षेत्र और संगम कुम्भ से लेकर सरदार पटेल और नेता जी सुभाष तक की प्रतिमाओं के अलावा ऐसे अनेक प्रकल्प और प्रवाहकल्प हैं जिनको लेकर, देख कर और पाकर सनातन की ध्वजा अत्यंत उर्ध्व गामी लहरों के साथ विश्व को आलोकित और चमत्कृत कर रही है।

इसीलिए इस आलेख में पहले ही लिख दिया कि एक रजानीतिक सत्ता के शिखर स्वामी के रूप में नरेंद्र मोदी से इतर उनके इस स्वरूप से हमें ज्यादा गर्वानुभूति हो रही है क्योंकि यह कार्य रजानीतिक नहीं है। नरेंद्र मोदी के भीतर अवश्य एक ऐसा महान ऋषि है जिसे हम इस काल मे पूरी सक्रियता और तन्मयता से क्रिया भाव मे देख पा रहे हैं। काशी में तमिल संगमम तो मुझे लगता है एक शुरुआत जैसा है। देश मे भारत जोड़ो के नाम से आजकल एक और यात्रा चल रही है जिसको लोग देख रहे हैं। उस यात्रा से भारत कितना जुड़ पाया है यह तो समय बताएगा लेकिन नरेंद्र मोदी की महान सनातन योजनाओं की कड़ी के रूप में काशी तमिल संगमम से जो यात्रा आरंभ हुई है वह निश्चय ही बहुत प्रभकारी होगी , यह सुनिश्चित है। 

यह मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूँ और ऐसा मानता भी हूँ कि नरेंद्र मोदी को सामान्य रूप में डीकोड करना बहुत कठिन है क्योंकि उनकी कोई योजना अचानक नही होती । मोदी जी की प्रत्येक योजना के पीछे समग्र शोध, उसके परिणाम और प्रभाव निहित होते हैं। उनके कार्य योजना में संबंधित संदर्भ के अति पारंगत और प्रभावी अवयव भी निर्दिष्ट रूप से सम्पूर्ण समर्पण के साथ क्रियाशील होते हैं। इसका ताजा उदाहरण काशी तमिल संगमम से ही लेना उचित लगता है। सौराष्ट्र विश्वविद्यालय में विधि के एक आचार्य हैं जो भारतीय शिक्षक शिक्षण संस्थान गुजरात के संस्थापक कुलपति और सौराष्ट्र विश्विद्यालय के भी कुलपति रह चुके हैं। राज्य सुरक्षा आयोग, गुजरात के सदस्य भी है। नाम है प्रो कमलेश जोशीपुरा। 

परिचय से विदित हो रहा है कि वर्तमान भारत के महान शिक्षाविदों में से एक हैं। यह मेरे संज्ञान में है कि नरेंद्र मोदी जी की उत्तर भारत से दक्षिण भारत को जोड़ने के इस सांस्कृतिक, शैक्षिक अभियान में प्रो जोशीपुरा जी पूरे प्राण प्रण से लगे हैं। इस अभियान में निश्चित रूप से और भी अनेक लोग होंगे । प्रो जोशीपुरा जी की पत्नी डॉ भावना जोशीपुरा जी राजकोट की प्रथम महिला मेयर रह चुकी हैं। शिक्षा और समाजसेवा के साथ साथ सनातन संस्कृति के संवर्धन में इस दंपति के कार्यों से लगभग सभी वाकिफ हैं। ऐसी ही समर्पित टीम की शक्ति से मोदी के वे सपने साकार हो रहे हैं जो कल्पना से आकार देने के लिए प्रयोग के रूप में शुरू किए गए हैं। इसीलिए जब नरेंद्र मोदी ऐसे किसी आयोजन को संबोधित करते हैं तो उनके संबोधन के एक एक शब्द स्वयं में लक्ष्य को 

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