ये फागुन महीना में अंदर में रंग चढ़ाने का महीना है : बाबा उमाकान्त जी

बाबा उमाकान्त जी ने बताया कब कोई बाल बांका कर ही नहीं सकता है
    सतसंगी साधकों को संकल्पित भोजन नहीं खाना चाहिए, खराब अन्न का असर 40 दिनों तक रहता है

    उज्जैन (म.प्र.)। कर्मों की छुआछूत से बचाने वाले, साधना में नुक्सान न हो उसके उपाय बताने वाले, जिनके वचनों को याद रखा जाय, अमल किया जाय तो काल, माया, कर्मों का विधान आदि आदि सब मिल कर भी पूरा जोर लगा लें तब भी भगत के एक बाल को भी बांका नहीं कर सकते, ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे सभी प्रकार से समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली कार्यक्रम में 5 मार्च 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जहां आशा तहां वासा। जो प्रेमी हर साल की तरह कार्यक्रम में आने की इच्छा आशा रखे, वो आ गए। ये फागुन महिना अंदर में रंग चढाने का महिना है। उसके लिए ऐसा रंगरेज चाहिए तो अंतर में स्थाई ख़ुशी दे सके। फागुन में शरीर के बारे में समझने की जरुरत है कि इसे चलाने वाली जीवात्मा इसमें जीते जी प्रभू प्राप्ति के लिए डाली गयी है।

    संकल्पित भोजन नहीं खाना चाहिए

    महाराज जी ने 7 अक्टूबर 2021 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि स्थान और संग कभी-कभी बदलता है लेकिन अन्न तो रोज चाहिए। अन्ने प्राण: कलयुगे, कलयुग में अन्न में ही प्राण बसते हैं। अब यदि इधर-उधर से बिना मेहनत का दूषित अन्न आ गया तो खाने पर बुद्धि तो भ्रष्ट होनी ही होनी है। आश्रमों पर रहने वालों को सावधान रहना चाहिए क्योंकि आने वाला अन्न तरह-तरह के लोग देते हैं। कुछ तो आमदनी, पैदावार का कुछ अंश देते हैं कि ये शुद्ध हो जाये। जिस भी परिवारजन पर लगे तो उसकी बुद्धि शुद्ध रहे। कुछ लोग तकलीफ, बीमारी, कोई बात हो गयी, मुकदमेबाजी आदि को दूर करने के लिए संकल्पित धन देते हैं। हवन, पूजा-पाठ, अनुष्ठान आदि लोग ज्यादातर संकल्प बनाकर के करते हैं। जैसे पितृ पक्ष में लोग भोजन कराते हैं कि हमारे जो कोई पितृ प्रेत आत्माओं में चले गए हो तो उनको खिलाएंगे। जो ये लोग खाएंगे, वह उनको (पितरों को) मिलेगा। तो यह संकल्पित धन होता है। इसलिए साधकों को भैरव पूजा, देवी-देवता पूजा आदि, उस पर चढ़ा हुआ, संकल्पित भोज नहीं खाना चाहिए। जो सतसंगी साधना करते हैं, जो परमात्मा सत्य है उसका संग करना चाहते हैं, उनको नहीं खाना चाहिए क्योंकि संकल्पित धन का असर खाने वाले पर आता है।

    कोई बाल बांका कर ही नहीं सकता है

    सन्तों ने श्रमदान का, शारीरिक सेवा का विधान बनाया। गुरु महाराज भी, जो भी जाए, सबसे सेवा करवाते थे। अच्छे सम्पन्न घर के लोग मिट्टी को डलिया में सिर पर रख कर के ढो कर ले जा रहे हैं, गड्ढे को पाट रहे हैं। लोग देख कर खड़े हो जाते थे। उस समय दो-दो हजार की साड़ीया पहनी हुई देवियां सिर पर डलिया रख कर के मिट्टी डालती थी। रोड़ पर खड़े होकर लोग देखते थे कि भाई यह कौन है, क्या है? बहुत पुरानी बात है। सेवा श्रमदान इसलिए कराते हैं ताकि इधर-उधर से आये अन्न को खाने पर जो उसका लेना-देना है, वह अदा हो जाएगा, खत्म हो जाएगा। एक बार संयोग से हमारा रेल का भाड़ा दूसरे आदमी ने दिया। तो मैं उसके नाम से 5-7 डालिया डाल देता, फावड़ा चलाता तो 10-20 डलिया उसके नाम से भर कर जाता कि उसके दिए भाड़े का कर्जा अदा हो जाए। यह सब ज्ञान सतसंग से हुआ। आप लोग गुरु महाराज की बातों को याद करो, पकड़ो। अगर वचनों को पकड़ लोगे तो आप तो ऐसे समरथ गुरु के शिष्य हो कि आपका तो कोई बाल बांका कर ही नहीं सकता है।

    महात्मा किसी का रखते नहीं है

    गुरु महाराज की सेवा जिसने भी किया, एक गिलास पानी भी जिसने गुरु महाराज को पिला दिया, उसका भी कर्जा गुरु महाराज नहीं रखे। जैसी जो इच्छा थी, जिसकी जैसी भावना थी, उसको वैसा उन्होंने दिया। जो इच्छा किन्ही मन माही, गुरु प्रताप कछु दुर्लभ नाही। जो धन चाहा, उसे धन दिया, जो मान प्रतिष्ठा चाहा उसे मान प्रतिष्ठा दिया, जो फकीरी चाहा, दरबदर की ठोकरें खाना चाहा, मेरे जैसे को, उसको वह भी दिया। रखते नहीं है किसी का। किसी न किसी तरह से उसको चुका देते हैं, अदा कर देते हैं। दो शब्द सुना कर के मन को बदल देते हैं, जिससे भारी नुकसान होने को होता है, उसी में अदा हो जाता है।

    खराब अन्न का असर 40 दिनों तक रहता है

    मेहनत की कमाई करके लाते हैं तो उनका अन्न दूषित नहीं होता है। दूषित उसका होता है जो मेहनत नहीं करता। जितना मिलना चाहिए, उससे ज्यादा ले आते हैं। कैसे भी ठग करके, धोखा देकर के, गलत बोल करके, मुंह से धोखा देकर के, वह (धन) दूषित हो जाता है। सहज मिले सो दूध सम, मांगे मिले सो पान, कहे कबीर वा रक्त सम, जामे खींचातान। जो खींचातान से, मार करके, गाली देकर के, दिल दुखा करके लाते हैं वह रक्त समान होता है।  यदि ज्यादा खराब अन्न कोई खा ले तो उसका असर 40 दिनों तक रहता है। यदि उसे भजन, सेवा के द्वारा खत्म न किया जाए तो उसका असर बराबर होता है, वह चीज दिमाग से हटेगी नहीं, बुद्धि खराब करने वाली चीजें बराबर आती रहेंगी।

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