लखनऊ में डॉ० अंबेडकर की 132 वीं जयंती संकल्प दिवस के रूप में धूमधाम के साथ मनायी गयी

डॉ अम्बेडकर का बौद्ध होना हिंदू धर्म के विरुद्ध विद्रोह था - कौशल किशोर 

आज़ादी के 75 साल बाद बाबा साहब की मूर्ति सुरक्षित नहीं तो  दलित क्या सुरक्षित होंगे - मीना सिंह 

दलित-पिछड़े को दोस्त और दुश्मन को पहचानने की जरूरत - राकेश कुमार सैनी 

लोकतान्त्रिक ताकतों की व्यापक एकता बनाकर  शिकस्त दी जाय - ओमप्रकाश राज

विशेष संवाददाता 

लखनऊ, 15 अप्रैल। डॉ बी आर अंबेडकर के 132 वीं जयंती के अवसर पर पुलिस सुरक्षा के बीच सरोजिनी नगर क्षेत्र के दरोगा खेड़ा, हुल्ली खेड़ा और प्रसाद खेड़ा गांवों में इंसाफ मंच की ओर से जयंती कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस दिन को बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं के साथ लोकतंत्र पर्व और संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया। इसके तहत डॉक्टर अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण, जनसभा, व्याख्यान, बाल प्रतियोगिता, कविता पाठ तथा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन किए गए। समापन कार्यक्रम रानीपुर में हुआ, जिसके मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध कवि, जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर थे तथा विशिष्ट अतिथि प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (एपवा) लखनऊ की संयोजक मीना सिंह थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामनरेश रावत ने की तथा संचालन किया इंसाफ़ मंच के संयोजक ओमप्रकाश राज ने।

डॉक्टर अंबेडकर के जीवन और संघर्ष पर बोलते हुए कौशल किशोर ने कहा कि शहीद भगत सिंह और बाबा साहब दो ऐसे राष्ट्र नायक हैं जिनके पास शोषण मुक्त तथा बराबरी के भारत का स्वप्न था। उनका संघर्ष इसी को समर्पित था। डॉ आंबेडकर की चिंता, चिंतन और संघर्ष के केंद्र में दलित समाज का उन्नयन अवश्य था पर उनका मूल उद्देश्य समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित लोकतांत्रिक समाज की स्थापना था। उनके लिए लोकतंत्र राजनीति तक सीमित ना होकर इसे वे आर्थिक और सामाजिक विस्तार में देखते थे।

कौशल किशोर का आगे कहना था कि डॉक्टर अंबेडकर धर्म और जाति को विषमता का आधार मानते थे। उनका मानना था कि हिंदू धर्म के अंदर यह सबसे विकराल रूप में मौजूद है। इसीलिए उन्होंने हिंदू राष्ट्र को एक बड़ी विपत्ति के रूप में देखा। उनकी दृष्टि में मनुस्मृति भेदभाव पूर्ण और गुलाम बनाकर रखने वाला ग्रंथ था। 1930 के दशक में ही उनका हिंदू धर्म से मोहभंग हो गया था। जीवन के अंतिम दिनों में अपने अनुयायियों के साथ वे बौद्ध हुए। यह उनका हिंदू धर्म के विरुद्ध विद्रोह था।

एपवा की नेता मीना सिंह ने कई जनसभाओं को संबोधित किया। उनका कहना था कि आज़ादी के 75 साल बाद जब बाबा साहब की मूर्ति सुरक्षित नहीं तो  दलित क्या सुरक्षित होंगे ? वे जातिविहीन व समतामूलक समाज बनाना चाहते थे।लेकिन आज उन्हें जाति विशेष का नेता बनाने की होड़ मची हुई है। बाबा साहब को पढ़ने-पढ़ाने, उनके विचारों को ग्रहण करने की बजाय उन्हें भगवान बनाने की होड़ लगी हुई है। इस काम में जाति विशेष के ' ठेकेदार ' नेता ही नहीं, बल्कि सत्ता-प्रतिष्ठान भी लगा हुआ है। 

मीना सिंह ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जिन सामाजिक मूल्यों -  स्वतंत्रता, समानता व भाईचारा के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष किये, उन्हें आज मिटाने की कोशिश हो रही है। आज़ादी के 75 साल बाद भी जब अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, देश में न सिर्फ भीषण सामाजिक और आर्थिक गैर- बराबरी बरकरार है, बल्कि वह और बढ़ती जा रही है। डॉ आंबेडकर का जो सपना था- राजनीतिक ही नहीं सामाजिक और आर्थिक लोकतन्त्र का - वह तो नहीं ही पूरा हो सका है, उल्टे दलितों-वंचितों के संवैधानिक अधिकारों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर राज में सबसे ज्यादा दलित -गरीब असुरक्षित है क्योंकि बुलडोजर की मार सबसे ज्यादा भूमिहीन गरीबों पर ही पड़ेंगी। 

जसम लखनऊ के सह सचिव राकेश कुमार सैनी ने कहा कि बाबा साहेब ने कहा था कि शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो। मेरी पूजा मत करो। बीजेपी सरकार निजीकरण करके दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर रही है। जो दलित और पिछड़े अपना कीमती वोट देकर भाजपा की सरकार बनवाते हैं, वही भाजपा दलितों और पिछड़ों के लिए निजीकरण के द्वारा आरक्षण खत्म करके सरकारी नौकरियों में उनके भविष्य को समाप्त करने का काम कर रही है। ये बात दलित और पिछड़ों को समझने की जरूरत है। दलित और पिछड़े नौजवानों को अपने दोस्त और दुश्मन को पहचानने की जरूरत है। तभी वो अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।

सभा का संचालन करते हुए इंसाफ मंच के संयोजक  ओमप्रकाश राज ने कहा कि आखिरी पायदान पर खड़े दलित समुदाय की सामाजिक-राजनीतिक हैसियत में इस दौर में भारी गिरावट आई है और उनका बड़ा हिस्सा जो अभी भी मुख्यतः मजदूर, भूमिहीन-गरीब किसान है, वह हर तरह के बदतरीन सामाजिक अन्याय  और दबंगों तथा पुलिस के जुल्म और दमन का शिकार हो रहा है।आइए आज हम संकल्प लें कि डॉ0 आंबेडकर ने जिस हिन्दूराष्ट्र को दलितों-पीड़ितों के लिए सबसे बड़ी विपदा के रूप में देखा था और उसे किसी भी कीमत पर रोकने का आह्वान किया था, उसे सभी लोकतान्त्रिक ताकतों की व्यापक एकता बनाकर संसद से सड़क तक शिकस्त दी जाय। ताकि हमारा लोकतन्त्र व संविधान जिंदा रहे और दलितों - महिलाओं मेहनतकशों के अधिकारों की लड़ाई आगे बढ़ सके।

इस मौके पर कार्यक्रम के अध्यक्ष रामनरेश रावत के द्वारा बच्चों को पुरस्कार दिया गया। उन्होंने कहा कि बच्चों को शिक्षित करिए। शिक्षा के ही जरिए बच्चे संघर्ष करेंगे और समाज में प्रतिष्ठा पाएंगे। बाबा साहब का मिशन यही था कि उनके समाज के वंचित बच्चे शिक्षित हो। बाबा साहेब के जीवन पर आधारित प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में काजल रावत को प्रथम, संध्या रावत को द्वितीय तथा प्रिंस को तृतीय पुरस्कार मिला। पोस्टर प्रतियोगिता में फर्स्ट सोनाली रावत, सेकंड काजल रावत तथा थर्ड सपना रावत आईं। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बच्चे शामिल थे। उनका उत्साह देखते बनता था। कार्यक्रम में शामिल प्रमुख लोग थे इंसाफ मंच के राजेश, एम यू सिद्दीकी, प्रद्दुम्न, आकाश, नूर मोहम्मद , सुरेश, सचिन, मीना, अनिता, भाकपा (माले) ब्रांच सचिव आर बी सिंह, वी के झा, रामनरेश, अमरपाल, मनीष, मोहनलाल, चंद्रपाल, लक्ष्मी नारायण, श्यामसुंदर, रामनरेश, देशराज , नीरज , सर्वेश आदि प्रमुख रुप से शामिल था।

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