हजारों साल की पीढ़ियों के लिए बाबा जयगुरुदेव जी निर्माणाधीन मंदिर में तन, मन, धन की सेवा से जो चूकेंगे, वह पछताएंगे


बावल में बन रहे बाबा जयगुरुदेव मंदिर से बहुत से जीवों के दु:ख कष्ट होंगे दूर

गुरु को खुश करने और काल के जाल से बचने का मौका

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। बार-बार इशारे में समय के अति महत्वपूर्ण सेवा के मौके का महत्त्व समझाने वाले, अपने गुरु के पक्के भक्त, गुरु के ऋण को चुकाने का तरीका बताने वाले, जिनको खुश करने पर काल, कर्म, माया, विधान आदि-आदि किसी का भी कोई जोर नहीं चल पाता है, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 15 जुलाई 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कोई भी हो, जब भी आते हैं तो दुनिया का भी कुछ न कुछ काम करते-कराते हैं। जैसे गुरु महाराज ने अपने गुरु महाराज का मंदिर बनवाया, जगह जगह पर यज्ञ किए तमाम गाड़ियों, साइकिल की यात्राएं निकाली, तमाम सम्मेलन करवाये। इस तरह के कुछ न कुछ काम महात्मा जीवों को खींचने, कल्याण के लिए करते रहते हैं।

समय परिस्थिति अपनी औकात के अनुसार योजना लागू करो

जैसे बड़े लोग जो अपने को सम्मानित मानते हैं, जब भोजन भंडारा करते थे, उसमें नहीं आते थे। अब जब आप सम्मान भोज जगह-जगह पर आयोजित कर रहे हो, तो वे लोग भी आ रहे हैं, सुन, समझ, देख कर के प्रभावित हो रहे हैं, उनके ऊपर असर पड़ रहा है। आपने उनको सुबह बुलाया, शाम को होने वाले सतसंग व नामदान कार्यक्रम में भी आये, बहुत से लोग नामदान लेकर के गए। इस तरह की कोई योजना जब लागू की जाती है तो उसमें बहुत से जीवों की भलाई होती है। मान लो नामदान न भी ले पावे, लेकिन आपने बता दिया कि जयगुरुदेव नाम का जाप ही, नाम ध्वनि ही बोलना शुरू कर दो, उससे आपको दु:ख तकलीफ में फायदा होगा, वे बोलने लग जाते हैं तो फायदा तो होने लगता है। आपकी मेहनत बेकार नहीं जाती है। इसलिए ऐसी योजना, जो चले, उनको लागू करना चाहिए। समय परिस्थिति, अपनी औकात के अनुसार योजनायें लागू करना चाहिए।

गुरु महाराज का लक्ष्य जीवों को निज घर पहुंचाने का था

गुरु महाराज ने अपने गुरु का चिन्ह बनाया था। उसी तरह से अपने लोगों के गुरु का चिन्ह बावल रेवाड़ी हरियाणा में हाइवे के नजदीक बन रहा है। वह अगर जल्दी से बनकर तैयार हो जाए, दया-दुआ अभी लोगों को गुरु महाराज के उस स्थान से मिलने लग जाए तो बहुत से जीवों का भला हो जाएगा। बहुत से लोगों के दु:ख कष्ट जब दूर होंगे, उनके शरीर को सुख मिलेगा तब आत्म सुख की भी इच्छा करेंगे कि आत्मा को भी सुख मिल जाए तो वह भी (अपने आत्म कल्याण का) काम करने लग जाएंगे, नामदान लेकर के सुमिरन, ध्यान, भजन करने लग जाएंगे। गुरु महाराज का जो लक्ष्य रहा है, जीवों को पार करने का- हम आये वही देश से जहां तुम्हारा धाम। तुमको घर पहुंचावना एक हमारा काम।। जीवों को अपने घर पहुंचाने का जो लक्ष्य गुरु महाराज का रहा है, प्रेमियों वो पूरा हो जाएगा।

गुरु का बहुत बड़ा ऋण होता है

हमारा-आपका गुरु का जो ऋण है, वह भी अदा हो जाएगा। गुरु का बहुत बड़ा ऋण होता है। गुरु का ऋण कोई अदा कर ही नहीं सकता। जैसे माता-पिता बच्चे को जन्म देते, संभालते, बड़ा करते, लायक बना करके समाज देश की सेवा, रक्षा कराते हैं। तो जैसे माता-पिता का योगदान, उसी तरह से गुरु का योगदान होता है। माता-पिता जिस चीज को नहीं कर सकते हैं, वह काम गुरु करते हैं क्योंकि गुरु के अंदर परमात्मा की शक्ति होती है। शक्ति तो हर माता-पिता में होती है लेकिन अलग-अलग होता है। जैसे एक पानी का बहाव नाली में होता है और एक धारा नदी की होती है। सन्तों की दया की धार समुद्र की तरह से होती है इसलिए गुरु के ऋण से तो कोई अदा हो ही नहीं सकता।

अगर गुरु को खुश कर ले गए तो काल के जाल से बच जाओगे

कभी ऐसा भी होता है जैसे कोई किसी का कर्जदार है। कर्जा इतना अधिक हो गया कि दे नहीं सकते और उसके लिए आप समर्पित हो जाओ कि कह दो आप जो भी आपका काम करने के लिए हमको कहो, हम करेंगे, आपकी गुलामी करेंगे, हमारा कर्जा माफ कर दो तो कर्जा माफ कर सकता है। जब वह खुश हो जाता है तब दस-बीस-पचास करोड़ माफ कर सकता है। ऐसे ही गुरु को अगर खुश कर लिया जाए तो- गुरु राजी तो करता राजी, काल कर्म की चले न बाजी। फिर काल कर्म की, किसी की भी बाजी नहीं चलेगी। कहा है- तन मन से सांचा रहे, पकड़े सतगुरु बांह, काल कभी रोके नहीं देवे राह बताय। अगर गुरु का बांह न छोड़ा जाए, मिशन अगर पकड़े रह जाए, उनका नाम-काम बढ़ाने में अगर लगे रहा जाए तो काल भी अपना दांव नहीं लगा सकता है, चाहे दुनिया में विकास करने या अंदर में साधना में (आगे बढ़ने का हो)। इसलिए गुरु का ऋण बहुत बड़ा होता है। गुरु की दया के घाट पर बैठना पड़ता है। यही भजन, सेवा और सतसंग, गुरु की दया का घाट हुआ करता है। कहने का मतलब है कि इससे चूकना नहीं चाहिए।

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