सिद्धार्थनगर। बलरामपुर जिले के पचपेड़वा स्थित जे.एस. आई.स्कूल में हर शनिवार को एक श्रृंखला "ज़रा याद उन्हें भी कर लो"की शुरुआत की गई है। जिसके तहत युग पुरुषों और महानायकों के जीवन से बच्चों को रूबरू कराया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है की छात्र छात्राओं के चतुर्मुखी विकास व बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ज़रूरी है कि वो राष्ट्रनायकों,युग पुरुषों के जीवन और उनके संघर्षों से परिचित हों,वो सिद्धांतों, एवं आदर्शों को आत्मसात करके सफलता के नए-नए कीर्तिमान बना सकते हैं। इसी उद्देश्य के तहत बलरामपुर जिले के पचपेड़वा स्थित जे.एस. आई.स्कूल में हर शनिवार को एक श्रृंखला "ज़रा याद उन्हें भी कर लो"की शुरुआत की गई है।
आपको बता दें कि पांच अगस्त (शनिवार) को श्रृंखला की 17वीं कड़ी में 1857 की क्रांति की वीरांगना अवध की महान क्रन्तिकारी बेगम हज़रत महल के अंग्रेज़ों के खिलाफ किये गए संघर्षों की चर्चा की गयी। बतौर मुख्यातिथि श्रीमती साक्षी अग्रवाल ने बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बेगम हज़रत महल 1857 की क्रांति की पहली महिला थीं जिन्होंने सेना की कमान संभाली थी।
अग्रवाल ने कहा कि पहली जंगे आज़ादी के दौर की वीरांगना थीं बेगम हज़रत महल। देश के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 की महान क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों से मोर्चा लिया और अंत तक लड़तीं रहीं। उन्होंने अंग्रेजों के सामने कभी घुटने नहीं टेके और न ही अपना सिर झुकाया। वो चाहतीं तो लाखों रुपये की पेंशन और अपना महल वापस लेकर बाकी ज़िन्दगी आराम से गुज़ार सकतीं थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
जे एस आई स्कूल के फाउंडर प्रबंधक सगीर ए खाकसार ने कहा किनेपाल की राजधानी काठमाण्डू में बेगम हज़रत महल की मजार है. काठमाण्डू के दरबार मार्ग स्थित बाग बाजार का यह इलाका बहुत ही व्यस्त है. यह काठमाण्डू के बिल्कुल मध्य में है. यहीं सुप्रसिद्ध जामा मस्जिद भी है. इसी परिसर के एक कोने में बेगम हजरत महल की मजार है. अगर आपको पहले से मालूम न हो या कोई आपको बताए न तो आसानी से 1857 की महान क्रांति की इस नायिका के मज़ार का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. बताते हैं पहले यह स्थान और भी उपेक्षित था। बाद में इसे जामा मस्जिद की सेंट्रल समिति की निगरानी में रखा गया।
खाकसार ने कहा कि 1857 की क्रांति से नेपाल के तार भी जुड़े हुए हैं. इस महान क्रांति में बेगम हजरत महल के तमाम मददगार नेपाल की तराई से योजनाएं बनाते थे और अंग्रेजों से मोर्चा लेते थे. 1857 की क्रांति में नेपाल के तराई वासियों ने भी अपनी महती भूमिका निभाई थी जिन्हें हम सब मधेशी के नाम से जानते हैं. नेपाल में मधेशी भारतीय मूल के नेपाली नागरिकों को कहा जाता है, जिनके पूर्वजों के तार भारत से जुड़े हुए हैं।
सीमित संसाधन और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद तराई का यह समूचा भूभाग 1857 की महान क्रांति में शामिल था. बहुत से क्रांतिकारियों ने इसी इलाके में गुमनाम शहादत पाई. बहुत से लोग लापता भी हो गए। बेगम हज़रत महल की बहादुरी के किस्से सुनकर बच्चे भाव विभोर हो गए।
इस अवसर पर रवि प्रकाश श्रीवास्तव,किशन श्रीवास्तव, किशोर श्रीवास्तव, सुशील यादव, मुदास्सिर अंसारी, इमरान खान, सचिन मोदनवाल, शमा, नेहा खान, वंदना चौधरी, शारीबा खातून, अंजलि कसौधन, दीपा बाल्मीकि, अंजलि कन्नौजिया, आदि लोग मौजूद रहे।
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