''अनोखी दुनिया का हालात अब धीरे-धीरे बहुत बुरा होता जा रहा है। आपको बता दें जैसे-जैसे पृथ्वी की आयु बढ़ती रहेगी, उसी तरह से पृथ्वी पर अनेक प्रकार की समस्याओं का उदय होगा। पृथ्वी पर होने वाली आपदाओं का सामना करना दुनिया के किसी भी जीव में नहीं है। लेकिन उसके बाद भी इंसान गलतियों पे गलती करते हुए आगे बढ़ रहें है। हाल ही में रिसर्च में पता चला है कि पृथ्वी की कक्षा में 75 फीसदी मलबे कहा से आ गए तो उस मलबे के जिम्मेदार भी वैज्ञानिक है। क्योंकि आम नागरिक अंतरिक्ष में तो जाता नहीं है तब फिर कहा से आया मलबा। यह वैज्ञानिकों के लिए चुनौती भरा प्रश्न है....''
हाल ही हुए एक नए शोध में पृथ्वी की ऊपरी कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष मजबे को लेकर एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। शोध के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में मौजूद उपग्रहों के मलबे को सही तरीके से ट्रैक नहीं किया जा रहा है। नए शोध के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा कर रहे 75 फीसदी मौजूदा अंतरिक्ष मलबे की अब तक पहचान नहीं हो सकी है। वर्तमान में यूएस स्ट्रैटेजिक कमांड डेटाबेस 30 वेधशालाओं और 6 उपग्रहों से ऐसे मलबे का सटीक रेकॉर्ड रखता है। उन्नत दूरबीनों से कमांड एक मीटर (3 फुट) व्यास के मलबे के टुकड़े को भी ट्रैक कर सकती है। शोध ब्रिटेन के वारविक विश्वविद्यालय और डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेबोरेट्री का है।
संचार और मौसम संबंधी आकलन हो रहे हैं प्रभावित
यह शोध ब्रिटेन में वारविक विश्वविद्यालय और डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेब्रोरेट्री के बीच 'डेब्रिसवॉच' प्रोजेक्ट का हिस्सा है जो पृथ्वी की ऊपरी कक्षा में चक्कर काट रहे बहुत छोटे कबाड़ की पहचान करता है। नए शोध में पृथ्वी की सतह से लगभग 36 हजार किमी ऊपर मौजूद जियोसिंक्रोनस स्पेस के मलबे पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह क्षेत्र पर ही हमारी महत्वपूर्ण नेविगेशन, संचार और मौसम संबंधी पूर्वानुमान आधारित होते हैं।
लेकिन अंतरिक्ष में तेजी से बढ़ते सैटेलाइट और अंतरिक्ष यानों के मलबे के चलते इस क्षेत्र में लगातार व्यवधान उत्पन्न हो रहा है जिससे संचार और मौसम संबंधी आकलन प्रभावित हो रहे हैं। यहां मौजूद मलबे के टुकड़े इतने छोटे हैं कि उन्हें आसानी से ट्रैक कर पाना मुश्किल है। शोधकर्ताओं ने मलबे के छोटे और प्रकाशमान विखंडों का अध्ययन किया।
मोरक्को के ला पाल्मा द्वीप पर स्थित 2.54 मीटर (8.3 फीट) बड़ी आइजैक न्यूटन टेलीस्कोप से शोध के दौरान ली गई अंतरिक्ष मलबे की तस्वीरों को पहचानने वाले एक खास सॉफ्टवेयर से पता चला कि हमारे पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद कणों के प्रतिरोध से धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा में कम चक्कर लगाते हुए ये अंतरिक्ष कचरा धीमा हो जाता है और अंतत: डी-ऑर्बिट में चला जाता है।
मलबे के टुकड़ों का आकार लगभग एक मीटर या उससे कम होने का है अनुमान, वैज्ञानिकों को उन्हें पहचानने में हो रही है परेशानी
शोध में पता चला कि लगभग 95 प्रतिशत मलबे के टुकड़ों का आकार लगभग 1 मीटर या उससे कम होने का अनुमान है। इसलिए वैज्ञानिकों को उन्हें पहचानने में परेशानी हो रही है। इन सूक्ष्म टुकड़ों की यूएस स्ट्रैटेजिक कमांड डेटाबेस में मौजूद किसी भी अंतरिक्षीय वस्तु से मेल नहीं किया जा सका। सर्वेक्षण में सूचीबद्ध की गईं सभी 1 मीटर से अधिक वस्तुओं के लेखा-जोखा के अनुसार इस मलबे में 75 प्रतिशत से अधिक वस्तुएं अज्ञात थीं।
इस अध्ययन के बाद अब टीम और ज्यादा बड़े स्तर पर इन ऑब्जेक्ट्स का सर्वे करने के लिए दुनियाभर से विशेषज्ञों को आमंत्रित कर रही है। नए अध्ययन के डेटा से वैज्ञानिकों को दूर अंतरिक्ष में इस मलबे की पहचान करने के लिए ज्यादा सटीक एल्गोरिदम विकसित करने और उन्नत तकनीक बनाने में में मदद मिलेगी।
भविष्य में पृथ्वी के लिए मलबा बन सकता है खतरा
भविष्य में यह अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी के लिए खतरा न बन जाए। इसलिए 75 फीसदी से ज्यादा इस अज्ञात मलबे की वास्तविक पहचान, यह कैसे व्यवहार करता है और यह हमारे ग्रह के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है, इन सब के बारे में अधिक समझ हासिल करना जरूरी है। हालांकि, रॉकेट प्रौद्योगिकी के प्रसार का मतलब है कि आने वाले दशकों में इस अंतरिक्ष कबाड़ में और वृद्धि देखने को मिलेगी। यह शोध पेपर जर्नल एडवांस इन स्पेस रिसर्च में प्रकाशित किया गया है।


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