- 17000 करोड बिजली बिल बकाया केवल यूपी के सरकारी विभागों पर
- 04 लाख करोड़ रुपये आवासीय क्षेत्रों पर बकाया है
- 95000 करोड़ रुपये केवल यूपी में बिजली विभाग का घाटा
- 77 करोड़ का घाटा 1977 में था बिजली विभाग का जब विभाग का विघटन हुआ था
- 9-10 लाख करोड़ का घाटा बिजली विभाग का पूरे देश का है
- 77 प्रतिशत सब्सिडी राज्य सरकारें बिजली विबाग का दबाकर बैठी हैं
कर्मचारी उपभोक्ता अनुपात
- 60 लाख जब उपभोक्ता थे तो बिजली विभाग में 1.10 लाख कर्मचारी थे
- 2.84 करोड़ उपभोक्ता इस समय केवल यूपी में हैं तो कर्मचारी मात्र 40 हजार रह गए हैं
- 01 लाख कर्मचारियों की इस समय विभाग में जरूरत है
विवेकानंद त्रिपाठी
लखनऊ। इलेक्ट्रिसिटी एमेंडमेंट बिल 2020 के विरोध में बिजली कर्मचारी से लेकर उपभोक्ता तक लामबंद हैं। कहा जा रहा है कि इस बिल के पास होने के साथ बिजली उत्पादन और वितरण प्राइवेट कंपनियों के हाथ में चला जाएगा, बिजली महंगी तो होगी ही सरकार को निजी कंपिनयों से करार के बाद बिजली की जरूरत न होने के बाद भी बिजली खरीदने की अनिवार्यता होगी। जिन राज्यों में बिजली के निजीकरण को लेकर प्रयोग किए गए वे सब असफल हो गए बावजूद सरकार इस व्यवस्था को अब इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के जरिए जनता पर थोपना चाहती है।
इस बिल से किसान भी बुरी तरह प्रभावित होंगे। इसलिए किसान आंदोलन में बिजली भी एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरा है। ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन इसके देशव्यापी विरोध में खड़ा है। इस फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे बिल को आम शहरी, ग्रामीण उपभोक्ता, किसान और कर्मचारी सबके लिए हाहाकारी मान रहे हैं। नया लुक से विशेष बातचीत में उन्होंने इस बिल के प्रावधानों पर विस्तार में चर्चा की। इधर ऊर्जा मंत्री भी निजीकरण के पक्ष में नहीं लगते।
उन्होंने बीते एक माह से जिस तरह ट्वीट करके अपने विभाग के अफसरों की नाकामी का पर्दाफाश किया है वह काबिलेगौर है। उनकी नजर में बिजली कर्मी सक्षम हैं अफसर अपनी नाकामी के कारण उनसे काम नहीं लेना चाहते हैं और उन्हें नाकारा बताकर खुद निजीकरण के झंडाबरदार बन रहे हैं। आइए सिलसिलेवार इस बिल के बारे में जानते हैं। 17 अप्रैल 2020 को पैंडमिक के बीच इलेक्ट्रिसिटी एमेंडमेंट बिल जारी कया गया। पांच जून तक लोगों की राय मांगी गई थी। सरकार ने इस बिल को संसद से पारित करने की बात कही थी जो नहीं पारित हो सका।
बिल का विरोध क्यों –
ऐसा क्या है इस बिल में कि इसका विरोध हो रहा है। इसके लिए इसके प्रावधानों को जानना जरूरी है।
बिल के प्रावधान ये हैं –
बिजली वितरण का निजीकरण किया जाय
बिजली के क्षेत्र में उपभोक्ताओं को मिलने वाली सरकार की सभी सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी। प्रावधान के मुताबिक सब्सिडी देना है तो उसे टैरिफ के जरिए देने का अधिकार नियामक आयोग को नहीं होगा। डीबीटी (डाइरेक्ट बेनिफिट टैक्स) के जरिए सीधे खाते में भेजे जाने का प्रावधान किया गया है। उसी तरह से जैसे गैस की सब्सिडी उपभोक्ता को खाते में भेजी जाती है। लागत से कम मूल्य पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं मिलेगी। इसके लिए एक नई अथारिटी (प्राधिकरण) इलेक्ट्रिसिटी इनफोर्समेंट अथारिटी के गठन करने का सुझाव है। इस प्राधिकरण को न्यायिक शक्तियां होंगी। बिजली कंपिनयों ने जो करार किए हैं उसका अनुपालन सुनिश्चित कराने का अधिकार प्राधिकरण को होगा।
भारत में बिजली का निजीकरण का प्रयोग कोई पहली बार नहीं हो रहा है लेकिन दुखद यह है कि हर बार इस प्रयोग में विफल होने के बावजूद निजीकरण का प्रयास बंद नहीं हो रहा है। मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद में निजीकरण ब्रिटिशकाल से है। 20 साल से यह प्रयोग दिल्ली में चल रहा है। पर ये प्रयोग जहां हुए हैं वे सभी शहरी क्षेत्र हैं। यहां बिजली की दरें ज्यादा है। दिल्ली आदि में इसलिए यह प्रयोग चलरहा है वहां 200 यूनिट तक बिजली फ्री है। इससे बहुसंख्यक उपभोक्ता को बड़ी राहत है। वैसे बिजली की दर ज्यादा है मगर यहां जो उपभोक्ता 200 यूनिट फ्री बिजली से ऊपर हैं उनकी देने की क्षमता है।
उड़ीसा में भी यह प्रयोग 20 साल पहले हुआ था जो पूरी तरह से विफल हुआ। बिजली की चार कंपनियों का निजीकरण हुआ जो पूरी तरह से विफल हुआ। लाइन लॉस जितना कम करने का दावा किया गया था वह फेल हो गया। आखिरकार रिलायंस पॉवर कार्पोरेशन
जैसी बिजली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पड़े। सरकार को टेकओवर करना पड़ा। इसके बाद निजीकरण में फ्रेंचाइजी का प्रयोग हुआ। सरकार ज्यादा दर पर बिजली खरीदकर कम दर में निजी कंपनियों को दे रही है। इस प्रक्रिया से अकेले आगरा शहर में सालाना चार से पांच हजार करोड़ रुपये की चपत लग रही है। फेडरेशन की नजर में यह एक विफल प्रयोग है।
खास बात यह है कि इस व्यवस्था में सब्सिडी समाप्त हो रही है। इसमें दो श्रेणी के उपभोक्ता हैं। एक वे उपभोक्ता हैं जन्हें लागत से कम मूल्य पर बिजली मिलती है। इसकी भरपाई के लिए क्रास सब्सिडी उद्यमियों को दी जाती है। उनको महंगी दर पर बिजली दी जाती है। यह व्यवस्था भी नए इलेक्ट्रिसिटी बिल में धीरे धीरे तीन साल में समाप्त करने का प्रावधान है। इससे गरीबों की बिजली महंगी हो जाएगी और अमीरों की सस्ती। अब तक की व्यवस्था में सब्सिडी का अधिकार नियामक आयोग को है मगर नए इलेक्ट्रिसिटी एमंडमेंट बिल में यह अधिकार नियामक आयोग से छिन जाएगा।
उत्तर प्रदेश में प्रति यूनिट बिजली की लागत 7.90 रुपये प्रति यूनिट है। पॉवर कारपोरेशन ने नियामक आयोग को लिख कर बताया है। सरकारी कंपनी तो यह घाटा उठा लेगी मगर निजी कंपनी यह घाटा नहीं उठाएगी। बिजली निजीकरण में कंपनी एक्ट के मुताबिक इस टैरिफ में जब कंपनी का मुनाफा 16 फीसदी जुड़ेगा तो बिजली टैरिफ का रेट 9.50 रुपये से 10 रुपये प्रति यूनिट तक होजाएगा। एक उदाहरण काफी है। किसान पर पड़ने वाली महंगी बिजली की मार को बताने के लिए। यही कारण है कि किसान आंदोलन में बिजली भी एक बड़ा मुद्दा उठाया गया है।
इस उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। अगर एक किसान पांच हॉर्स पॉवर का मोटर प्रतिदिन औसत छह घंटे चलाता है तो 9000 यूनिट बिजली एक साल में खर्च होगी। नए टैरिफ के मुताबिक बिजली जब 9.50 रुपये से लेकर दस रुपये हो जाएगी। तब उसे 95 हजार से एक लाख रुपये तक सालना बिल देना होगा। इतना बिल उसे नकद भरना होगा तब कहीं जाकर बाद में उसके खाते में सब्सिडी आएगी।
यही नहीं इस बिल में एकरूपता (यूनिफार्मिटी) भी नहीं होगी अलग अलग राज्यों में इसकी दरें वहां की सरकारें तय करेंगी कि कितना और कब सब्सिडी दे। किसान चाहता है कि उसे एक दर पर पूरे देश में पानी मिले वह बिजली नहीं चाहता। घरेलू उपभोक्ता-अभी घरेलू उपभोक्ता को लागत से कम पर बिजली दी जा रही है। नए बिल में यह सुविधा छीन ली जाएगी। इससे सभी लोग प्रभावित होने जा रहे हैं। कर्मचारी की स्थिति-पॉवर कार्पोरेशन में कोई नई भर्ती नहीं हो रही है। सब काम आउटसोर्सिंग से कराया जा रहा है।
इलेक्ट्रिसिटी कांट्रैक्ट इनफोर्समेंट अथारिटी क्या है इसके बारे में जानें –
तर्क है कि निजी क्षेत्र में बिजली देने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका लाभ उपभोक्ता को होगा जैसा कि मोबाइल फोन के क्षेत्र का उदाहरण दिया जाता है। दरअसल नए एमेंडमेंट बिल में कंपनियों से करार की अवधि 25 साल की है। ऐसे में जब बिजली खरीद का करार ही नहीं बदल सकते तो उसके रेट को कैसे कम कर सकेंगे।
करार की शर्तों के मुताबिक कंपनी को समय समय पर रेट में बढ़ोतरी करने का अधिकार होगा। सबसे चौंकाने वाली बात इस करार की यह है कि बिजली की जरूरत न होने पर भी आपको कंपनी को भुगतान करना ही होगा। उत्तर प्रदेश में बिना एक यूनिट बिजली लिए निजी कंपिनयों को 4500 करोड़ रुपये भुगतान करना पड़ा। मध्य प्रदेश सरकार ने तो ऐसे ही हालात में बिना एक यूनिट बिजली लिए 9500 करोड़ रुपये का भुगतान किया।
गुजरात में तो नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में अंबानी की कंपनी से 15 रुपये प्रति यूनिट बिजली खरीदने का करार किया था। जो नहीं तोड़ सकते क्योंकि यह करार तो 25 साल के लिए है। फेडरेशन अध्यक्ष शैलेंद्र का कहना है कि बाजार में जब सस्ती बिजली उपलब्ध है तो उसे महंगे दर पर खरीदने का जो करार है उसको पुनरिक्षित करने का अधिकार जनहित में बिजली विभाग को हो।
दरअसल सरकार बिजली को निजी क्षेत्र में देकर प्रभावशाली उद्यमियों के हाथ में देश को बेचने का उपक्रम कर रही है। सवाल यह है कि जब बिजली एक आवश्यक आवश्यकता है तो इसे बाजार के भरोले नहीं छोड़ा जा सकता। बिजली की लागत उपभोक्ता की क्षमता पर तय होनी चाहिए या उसे बाजार के ऊपर छोड़ दी जानी चाहिए यह एक बड़ा सवाल है जिसे हर उपभोक्ता जानना चाहता है।
सरकार का पक्ष : इलेक्ट्रीसिटी अमेंडमेंट बिल वक्त की जरूरत- पाण्डेय
यूपी सरकार के प्रतिनिधि और बिजली विभाग के पूर्व अभियंता ओमप्रकाश पाण्डेय इलेक्ट्रीसिटी अमेंडमेंट बिल को वक्त की जरूरत बताते हैं। बिजली के घाटे के सवाल पर कहते हैं। बिजली की चोरी, लाइनलॉस और सिस्टम की कमजोरी ये तीनों फैक्टर बिजली विभाग की अधोगति के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए वे प्रॉपर बिलिंग और वेस्टेज रोकने की बात कहते हैं। वे इस बात से इन्कार करते हैं कि बिजली का निजीकरण सरकार करने जा रही है। हां प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता को जरूरत भर की बिजली देने के लिए इस क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स के आने से गुणवत्ता सुधरेगी लाभ उपभोक्ता को होगा। उनका तर्क है कि गुणवत्तापरक बिजली देने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है।सरकार उसी निवेश को आकर्षित करने के लिए इस सुधार की पक्षधर है। दूरसंचार क्षेत्र इस बात का उदाहरण है। प्राइवेट कंपिनयों के आने से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हुई और उपभोक्ताओं को ढेर सारे विकल्प मिले। कॉल, डॉटा सब सस्ते हुए। लाभ आखिरकार उपभोक्ता को मिल रहा है। नई भर्तियां बंद हैं। बिजली उपभोक्ता ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन का कहना है कि जब 60 लाख उपभोक्ता थे तो बिजली विभाग में 1.10 लाख कर्मचारी थे। अब 2.84 करोड़ उपभोक्ता इस समय केवल यूपी में हैं तो कर्मचारी मात्र 40 हजार रह गए हैं। एक लाख कर्मचारियों की इस समय विभाग में जरूरत है।
इसके जवाब में श्री पाण्डेय कहते हैं कि विजली विभाग का पहले की तुलना में ज्यादा मशीनीकरण हुआ है। जो काम पहले मैनुअल होता था वह टेक्निकल अपग्रेड होने के कारण मैनपॉवर की जरूरत कम हुई है। पर भर्तियां बंद होने की बात उचित नहीं प्रतीत होती। बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर के साथ टेक्निकल विंग की भर्तियां लगातार जारी हैं। जरूरत कम हुई है। भर्ती रुकी नहीं है। नए बिजली बिल में जो बिजली महंगी होने का भय दिखाया जा रहा है वह आधारहीन है। सरकार उसके लिए सब्सिडी देगी और समय पर देगी। किसानों को मिलने वाली बिजली महंगी होने की आशंका को भी वे खारिज करते हैं।
चोरी रोकने को घर के बाहर लगाए जा रहे मीटर
बिजली चोरी रोकने के लिए घरों के बाहर मीटर लगाने का कार्य चल रहा है। मीटर जंपिंग और ज्यादा बिल आने की शिकायत के सवाल को उन्होंने स्वीकार किया। कहा इसकी जांच बडे पैमाने पर चल रही है। लाइन लॉस कम करने के लिए चोरी के लिए बदनाम फीडरों की मॉनीटरिंग चल रही है। पुराने शहरों में बिजली चोरी की शिकायतें ज्यादा हैं उन पर भी निगरानी की जा रही है। बिजली के बारे में वे अपनी सरकार की तारीफ और विपक्षी सपा को कटघरे में खड़े करते हैं। कहते हैं सपा के काल में पांच छह जिलों को ही भरपूर बिजली मिलती थी प्रदेश के बाकी हिस्सों से सौतेला व्यवहार होता था पर आज स्थिति बदल गई है। पूरे प्रदेश में शहर देहात को बराबर बिजली मिल रही है। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। बिजली के घाटे पर कहते हैं करोड़ों कंज्यूमर बढ़ रहे हैं।
उनमें सबकी क्षमता बिजली का बिल देने की नहीं है। बिजली उन्हें भी देनी है सरकार इसलिए घाटा उठा रही है। उन्होंने पॉवर प्लांटों को प्राइवेट प्लेसर्स को देने के सवाल पर कहा कि हमने एक भी पॉवर प्लांट को निजी क्षेत्र में नहीं दिया है। ललितपुर, अनपरा सी, बारा करछना के पॉवर प्लांट सपा के कार्यकाल में निजी क्षेत्रों को दिए गए थे। पनकी, ओबरा, हरदुआगंज, एटा, जवाहरपुर,अनपरा, पारीशा में सरकारी पॉवर प्लांट काम कर रहे हैं। जवाहरपुर, ओबरा पनकी में भाजपा पॉवर प्लांट का निर्माण करा रही है। ऊंचाहार और टांडा बिजलीघर की बिजली 30 साल से नहीं मिल रही है। मगर उसकी कमी एनटीपीसी से पूरी हो रही है। हम एनटीपीसी से बिजली ले रहे हैं।
आगरा की बिजली सुधरी है। जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि नजी क्षेत्रों से बिजली न लेने पर भी उन्हें सरकार पैसे दे रही है यह आरोप बेबुनियाद है। बकौल पाण्डेय एक पॉवर प्लांट लगाने में 5000 करोड़ खर्च होते हैं। उनसे कांट्रैक्ट के करार के मुताबिक बिजली लेने और न लेने दोनों की स्थिति में एक फिक्स चार्ज तो देना ही पड़ेगा।
ऊर्जा मंत्री और पॉवर कार्पोरेशन चेयरमैन की तनातनी में अरविंद कुमार हटाए गए अफसरों की लापरवाही उजागर
पॉवर कार्पोरेशन के चेयरमैन समेत तमाम अफसर पॉवर सेक्टर के निजीकरण पर आमादा हैं। इसके उलट ऊर्जा मंत्री इस निजीकरण के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि अफसरों की नाकामी से इस सेक्टर की दुर्गति हो रही है। वे अपनी कमी छिपाने के लिए निजीकरण के लिए लॉबिंग में जुटे हैं। दरअसल निजीकरण के पीछे केंद्र से सरपरस्त पीयूष गोयल का भी हाथ बताया जा रहा है। अपनी ईमानदारी और पारदर्शी कार्यशैली के लिए विख्यात ऊर्जा मंत्री ने अब इस पूरी लॉबी के खिलाफ सीधे मुचैटा लेना शुरू कर दिया है तो पूरे पॉवर सेक्टर में हड़कंप मच गया है।वे अपनी साफ सुथरी छवि को लेकर बहुत सतर्क हैं और अफसर उन्हें बदनाम करने पर आमादा हैं।
इसके चलते ऊर्जा मंत्री से अपर मुख्य सचिव व पॉवर कार्पोरेशन के चेयरमैन अरविंद कुमार के बीच जबरदस्त ठन गई । ऊर्जा मंत्री ने खुलकर इनके कारनामों की सोशल मीडिया पर पोल खोलनी शुरू की। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडिल पर लिखा है ‘’ उपभोक्ताओं को सही बिल समय पर मिले यह यूपूपूसीएल के चेयरमैन की जिम्मेदारी है। जुलाई 2018 में बिलिंग एजेंसियों से हुए करार के मुताबिक आठ माह में शहरी और 12 माह में ग्रामीण क्षेत्रों में 97 प्रतिशत डाउनलोडेबिल बिलिंग होनी थी लेकिन आज भी 10.64 प्रतिशत ही है। यह घोर लापरवाही है।
अपना यह ट्वीट उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी टैग कर दिया। इसके पहले ऊर्जा मंत्री बिजली सेक्टर के 90 हजार करोड़ रुपये के घाटे में होने का ट्वीट करके भी अरिवंद कुमार पर निशाना साध चुके थे। कुल मिलाकर बिजली कंपनियों के निजीकरण स्मार्ट मीटर, बिलिंग एजेंसियों की मनमानी समेत तमाम मुद्दों पर ऊर्जा मंत्री और पॉवर कार्पोरेशन के चेयरमैन के बीच ढेर सारे मतभेद सतह पर आ चुके हैं। यही कारण है कि अरविंद कुमार की विदाई हो गई।
बिजली की जिन अव्यवस्थाओं और विफलताओं को लेकर विपक्ष और उपभोक्ता को सवाल उठाने चाहिए उसे ऊर्जा मंत्री खुद उठाकर अपनी पारदर्शी कार्यशैली का पुख्ता प्रमाण दे रहे हैं। इन सवालों पर लगातार घिर रहे अरविंद कुमार को आखिर रुखसत ही होना पड़ा। वैसे पॉवर कार्पोरेशन के चेयरमैन का पद संभालने के साथ ही अरविंद कुमार से ऊर्जा मंत्री के मतभेद शुरू हो गए थे। पर कोरोना काल में जैसे ही बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई दोनों के बीच तल्खी सार्वजनिक मंचों पर उजागर हो गई।
निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों और अभियंताओं ने हड़ताल की घोषणा की तो श्रीकांत शर्मा ने फौरन उनकी समस्याएं जानने के लिए 5 अक्तूबर 2020 को उनको वार्ता के लिए आमंत्रित किया। इस वार्ता में जो समझौते का ड्रॉफ्ट तैयार किया गया उस पर अरविंद कुमार ने साइन करने से इन्कार कर दिया। मामला जब मुख्यमंत्री तक पहुंचा और अरविंद कुमार पर दबाव बना तब जाकर कहीं 6 अक्तूबर को अरविंद कमार बैकफुट पर आए और समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस मामले के बाद से दोनों के बीच की तल्खियां सार्वजिनक होने लगीं। मनमुटाव इस कदर बढ़ा कि सोशल मीडिया के जरिए ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा अरविंद कुमार को लगातार कठघरे में खड़ा करने लगे।
विभागीय सूत्रों की मानें तो गत वर्ष अक्तूबर नवंबर में ऊर्जा मंत्री ने स्मार्ट मीटर की गड़बड़ियों, बिलिंग एजेंसियों की मनमानी, आगरा और ग्रेटर नोएडा में बिजली सप्लाई करने वाली निजी कंपनियों के साथ हुए अनुबंध समेत कई मुद्दों पर पॉवर कार्पोरेशन के अध्यक्ष को पत्र लिखे लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। हैरत की बात यह है कि इस साल बीती 11 जनवरी को गोमतीनगर स्थित मंत्री आवास उपकेंद्र के निरीक्षण के दौरान मंत्री को इतनी गड़बड़ियां मिलीं थी कि उन्हें बाकायदे प्रेसनोट जारी करते हुए मुख्यमंत्री से इस मामले की जांच एसटीएफ से कराने की मांग करनी पड़ी। इसके साथ उन्होंने मुख्यमंत्री से यह भी अनुरोध किया कि शासन और पॉवर कार्पोरेशन दोनों शीर्ष पदों पर अलग अलग अफसरों की नियुक्ति की जाय ताकि उनकी जवाबदेही तय हो सके । यहां बता दें कि ये दोनों पद अरविंद कुमार के पास होने के चलते जवाबदेही नहीं तय हो पा रही थी।
ऊर्जा मंत्री के अब तक के ट्वीट उजागर कर रहे हैं तल्खी की गंभीरता
29 जनवरी 2021 :
उपभोक्ता सेवाओं में कोई शिथिलता स्वीकार्य नहीं। यह यूपीपीसीएल चेयरमैन सुनिश्चित करें। सतत निगरानी करें और लापरवाह बिजली कंपनियों के एमडी की जवाबदेही तय करें।
22 जनवरी 2021:
बिजली कंपनियों में पूर्ण जमा योजना के तहत निजी ट्यूबवेल के कनेक्शन के लंबित आवेदनों की संख्या वर्तमान में 18124 है। निजी नलकूप के ये लंबित आवेदन हर हाल में 31 जनवरी तक समाप्त हों। यूपीपीसीएल के चेयरमैन यह सुनिश्चित करें और सभी बिजली कंपनियों के एमडी की जवाबदेही तय करें।
18 जनवरी 2021:
कोविड -19 एकमुश्त समाधान योजना में व्यावसायिक, औद्योगिक और निजी संस्थानों के उपभोक्ताओं को राहत दी जा रही है। अब तक केवल 14 प्रतिशत रजिस्ट्रेशन ही हुए हैं। अंतिम तिथि 31 जनवरी तक इस योजना में 100 प्रतिशत रजिस्ट्रेशन हों। यूपीपीसीएल चेयरमैन यह सुनिश्चित करें।
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