ग्लोबल स्नो लियोपार्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम के को-ऑर्डिनेटर कौस्तुभ शर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि नौजवान लोगों की मदद के बिना हिम तेंदुओं का संरक्षण और उन पर शोध करना नामुमकिन है। फ़ील्डवर्क के लिए हमें एशिया के ऊंचे पहाड़ों वाले कठिन इलाकों और कठोर मौसम में काम करना होता है। हमें बार-बार वहां मॉनिटरिंग और सर्वे के लिए जाना होता है। विशेषज्ञ यह अकेले नहीं कर सकते हैं। इसलिए हम वाकई में मदद के लिए इन स्थानीय नौजवानों पर निर्भर हैं। बीबीसी ने भारत, मंगोलिया और रूस में युवा संरक्षणवादियों से बात की है और यह समझना चाहा है कि वे इन हिम तेंदुओं को बचाने और उन्हें ट्रैक करने के लिए क्या कुछ कर रहे हैं।
रूस- एरकीन ने पार्क में गाइड के तौर पर काम करना किया शुरू
फरवरी में संरक्षण विशेषज्ञों ने दोबारा कोशिश की लेकिन तब अप्रत्याशित रूप से हुई बारिश की वजह से वो ऐसा नहीं कर सके। लेकिन मौसम की यह बाधा पार्क में काम करने वाले 23 साल के एरकीन ताडिरोव को नहीं रोक पाई। सेल्युग्मेस्की नेशनल पार्क के डायरेक्टर डेनिस मैकिलोव ने बताया कि हमारे इलाके में हिम तेंदुओं की गिनती और उन पर नज़र तभी रखी जा सकती है जब एरकीन जैसे स्थानीय युवा जो इस जगह और तेंदुए को अच्छे से जानते हैं, इस काम में शामिल हों।
एरकीन अपने काम के अलावा ग़ैर-क़ानूनी तरीके से शिकार करने वाले संदिग्धों को लेकर भी पार्क रेंजर्स को चौकन्ना करते हैं। वो खुद एक चरवाहे के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता एक शिकारी थे। लेकिन साल 2010 में जब जैव-विविधताओं वाले इस इलाके को नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया तब उनके पिता को पार्क के गेस्ट सेंटर में गार्ड की नौकरी करनी पड़ी। यह इलाका मंगोलिया, चीन और काज़ाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ है।
2015 में उनके पिता के रिटायर होने के बाद एरकीन ने पार्क में गाइड के तौर पर काम करना शुरू कर किया। एरकीन का कहना है कि उन्हें अक्सर पार्क में स्थानीय लोगों और शिकारियों के रखे फंदे मिलते हैं। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल भेड़ियों को पकड़ने और उनसे अपने पशुओं को बचाने के लिए करते हैं लेकिन हिम तेंदुए भी उनके इस जाल में फंस जाते हैं। "मैं उन जालों को हटाना चाहता हूँ और स्थानीय लोगों और शिकारियों को ऐसा करने से रोकना चाहता हूँ। लेकिन इसके लिए मुझे और अधिकार चाहिए होंगे। मैं रेंजर बनना चाहता हूँ ताकि मैं और बेहतर स्थिति में पहुँच कर हिम तेंदुओं को बचा सकूँ।
चरवाहे के रास्ते की ट्रैकिंग कर 26 साल की जानकी एम ने हिम तेंदुओं के लिए लगाया है कैमरा
भारत के अरुणाचल प्रदेश में 26 साल की जानकी एम ने कई दिनों तक चरवाहे के रास्ते की ट्रैकिंग कर हिम तेंदुओं के लिए कैमरा लगाया है। यह इलाका जैव-विविधता के हिसाब से वैश्विक पैमाने पर महत्वपूर्ण है। इस सुदूर इलाके में जानकी बौद्ध धर्म मानने वाली घुमंतू जनजाति मोनपा के साथ मिलकर काम कर चुकी हैं। यह जनजाति जानवरों का शिकार धार्मिक और सांस्कृतिक वजहों से नहीं करती है। जानकी बताती हैं, "हालांकि हिम तेंदुए और जंगली कुत्ते उनके कई पालतू जानवरों को मार चुके हैं। वो इसे रोकने के लिए ज़रूर इन्हें मारते हैं और फंदे लगाकर उन्हें फंसाते हैं। वो मरे हुए जानवरों के अवशेष में ज़हर मिलाकर भी हिम तेंदुओं और जंगली कुत्तों को मारने का प्रयास करते हैं। यहां तक कि पूरे गांव में हिम तेंदुओं और जंगली कुत्तों को मार कर सबूत के तौर पर लाने वालों को ईनाम देने का भी प्रचलन है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़रवेशन ऑफ़ नेचर के एक अनुमान के मुताबिक भारत के हिमालय क्षेत्र में 500 से थोड़ा अधिक हिम तेंदुओं की आबादी है। केरल में जन्मी और चेन्नई में पली-बढ़ी जानकी ने 2017 में डब्लूडब्लूएफ़-इंडिया के साथ हिम तेंदुओं के संरक्षण में प्रशिक्षण प्राप्त किया हुआ है। इसके बाद उन्होंने स्थानीय युवाओं के एक दल को लेकर पूरे अरुणाचल प्रदेश में इकोलॉजिकल और सोशल सर्वे शुरू किया।
उन्हें दूर-दराज़ के इलाकों में लोगों को अपनी आजीविका से जूझने की चुनौतियों के बारे में सुनने को मिलता है। ऐसी ही एक कहानी एक गांव की है जहाँ करीब 200 भैसों को हिम तेंदुओं ने मार दिया था। वो कहती हैं कि गांव के एक गड़ेरिए ने हताश होकर मुझ से कहा था कि ये हिम तेंदुए कभी-कभी एक ही वक्त में 20 भैंसों को मार देते हैं लेकिन उनमें से एक का भी मांस पूरा नहीं खाते हैं।
"जब मैं बैठकर उसकी बातें सुन रही थी तब मुझे अचानक से इस बात का एहसास हुआ कि अक्सर इंसानों और जंगली जानवरों की बीच संघर्ष को 'हम बनाम वो' के नज़रिए से देखा जाता है, इससे अक्सर स्थानीय समुदायों और संरक्षण की वकालत करने वालों के बीच एक विभाजनकारी लाइन खड़ी हो जाती है। इस बात को समझने के बाद जानकी अब स्थानीय समुदायों की मदद से संरक्षण के काम को अंजाम देने के प्रोग्राम पर काम कर रही हैं। इसे वो सोशल इकोलॉजिकल सिस्टम कहती हैं।
हिम तेंदुओं को अब भी स्थानीय लोगों और शिकारियों से खतरा है : बायर्मा चुलुनबत
बायर्मा मंगोलिया में खोवड प्रांत के पर्वतीय क्षेत्र का दौरा कर स्थानीय लोगों को इस बात के लिए मनाती हैं कि वे तेंदुओं के साथ रह सकते हैं। यह वही इलाका है जहाँ कुछ साल पहले वो और उनके साथियों ने मिलकर हिम तेंदुओं को पकड़ने के लिए लगाए गए करीब 250 से ज़्यादा फंदे हटाए थे। 20 साल की बायर्मा चुलुनबत कहती हैं, "इस इलाके में हिम तेंदुओं को अब भी स्थानीय लोगों और शिकारियों से खतरा है। हम अब भी कई जगहों पर फंदे लगे हुए देख सकते हैं। मैं इसे लेकर बहुत दुखी हूँ। "भले ही मैं शिकारियों को लेकर बहुत कुछ नहीं कर पाऊं लेकिन मैं स्थानीय लोगों को जरूर यह समझाने की कोशिश कर सकती हूँ कि इस जानवर को बचाकर रखना कैसे उनके हित में ही है।"
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़रवेशन ऑफ़ नेचर के एक हालिया अनुमान के मुताबिक मंगोलिया में करीब 1,000 हिम तेंदुए हैं। चीन के बाद यहाँ हिम तेंदुओं की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। संरक्षणवादियों का कहना है कि इस इलाके में पालतू पशुओं की बढ़ती हुई संख्या इस बात का संकेत देते हैं कि यहाँ हिम तेंदुओं के साथ संघर्ष में इज़ाफा हुआ है।
बायर्मा बहुत कम उम्र से हिम तेंदुओं को बचाने में लगी हुई हैं। एक तेंदुए का पैर फंदे में लटके हुए देखकर उन्हें सबसे पहले इन तेंदुओं को बचाने का ख्याल आया था। वो कहती हैं, "मैं उस रात सो नहीं सकी थी। वो तस्वीर बार-बार मेरे दिमाग में आ रही थी, खसकर फंदे में फंसे हुए हिम तेंदुए के पैर की। मैं उसकी कोई मदद नहीं कर सकी थी। कितना दर्द भरा एहसास होगा, वो उस हिम तेंदुए के लिए।
"मैं बहुत दुखी थी। जब मैं छोटी थी तब मेरे पिता अक्सर मुझे पहाड़ियों में ले जाकर हिम तेंदुए दिखाया करते थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि यह शांति के प्रतीक हैं। वो कहा करते थे कि ये अगर सुरक्षित हैं तब हम भी सुरक्षित हैं। बायर्मा हिम तेंदुओं के लिए कुछ करना चाहती थीं। 15 साल की उम्र में ही उन्होंने इकोक्लब में अपने दोस्तों को इकट्ठा करना शुरू किया ताकि पहाड़ियों में जाकर उन फंदों को हटा सकें।
यूनिवर्सिटी ऑफ मंगोलिया में वो इकोलॉजी की पढ़ाई कर रही हैं और साथ ही साथ गांवों और शहरों में हिम तेंदुओं को बचाने को लेकर संदेश देने का भी काम कर रही हैं। डब्लूडब्लूएफ़ मंगोलिया के सेलेंजे गंटुमुर का कहना है कि हमने उन्हें स्कूल के बच्चों को उनके अपने काम के बारे में बताने के लिए बुलाया है। वो कई युवा लोगों को अब तक प्रभावित कर चुकी हैं।
दुनिया में हिम तेंदुओं की संख्या का आकलन करने का मकशद क्या है, आइए जाने
आपको बता दें कि ग्लोबल स्नो लियोपार्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम हिमालयी क्षेत्र और मध्य एशिया के 12 देशों में चल रहा है। इसका मकसद दुनिया में हिम तेंदुओं की संख्या का आकलन करना है। यह शोध 100 से अधिक जगहों पर हो रहा है क्योंकि फिलहाल वैज्ञानिक इस बात को लेकर सहमत नहीं हैं कि दुनिया भर में वाकई में हिम तेंदुओं की कितनी संख्या है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़रवेशन ऑफ़ नेचर ने साल 2018 में अनुमान लगाया था कि पूरी दुनिया में करीब 7,000 से लेकर 8,000 के बीच हिम तेंदुए हैं लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अनुमान थोड़ा ज़्यादा है। हिम तेंदुओं की रहने की जगह बीस लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है और वो अविश्वसनीय तरीके से काफी लंबी दूरी तय करते हैं जो शोधकर्ताओं के लिए काफी चुनौती पेश करती है।
हिम तेंदुओं को शिकार, किसानों की ओर से बदले की भावना के साथ मारे जाने और जलवायु परिवर्तन की वजह से उनकी रहने की जगह सिकुड़ते जाने से खतरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर उन्हें बचाया नहीं गया तो वो विलुप्त होने के खतरे का सामना कर सकते हैं। डब्लूडब्लूएफ़ इंटरनेशन में हिम तेंदुओं के संरक्षण कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाले ऋषि कुमार शर्मा बीबीसी को बताते हैं, "धरती पर हिम तेंदुओं का घर जिन पर्वतीय इलाकों में हैं उनमें हिमालय का क्षेत्र भी शामिल है। वे धरती के पर्यावरण के संतुलित रहने के संकेतक हैं। हिम तेंदुओं को बचाना इस इको सिस्टम को संतुलित रखने के प्रयास का हिस्सा है।
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