भारतीय परमाणु आयोग ने अपना पहला भूमिगत परिक्षण 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में अपने पहले भूमिगत परमाणु बम का परीक्षण किया था। इस परीक्षण के साथ भारत दुनिया के उन छह देशों में शामिल हो गया जो परमाणु शक्ति संपन्न देश थे। पहले पांच देश अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन और फ्रांस के पास परमाणु शक्ति थी। परीक्षण से पहले दुनिया को भनक तक नहीं लगी थी और जब सबको इस बारे में पता चला तो दुनिया हैरान रह गई थी। लेकिन उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किया गया है।
आपको बता दें कि परमाणु परीक्षण वाले दिन बुद्ध पूर्णिमा भी पड़ रही थी। इसको ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा रखने का सुझाव दिया और मिसाइल पर स्माइलिंग बुद्धा का फोटो भी बनाया गया था। इसीलिए इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा था। परमाणु परीक्षण टीम में 75 वैज्ञानिक शामिल थे। सुबह आठ बज कर पांच मिनट पर भारत ने अपने पहले परमाणु बम पोखरण का सफल टेस्ट कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया था। उस बम की गोलाई करीब 1.2 मीटर थी और वजन 1400 किलोग्राम था। इसकी वास्तविक विस्फोटक शक्ति 8 से 12 किलोटन टीएनटी थी।
आप चाहे उस समय की बात करें या इस समय की, वह पल भारत की एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि दुनिया की महाशक्तियों को भनक तक नहीं लगी और भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया। साथ ही यह दुनिया भर में मशहूर अमेरिकी खुफिया एजेंसी की यह बड़ी असफलता भी थी। हालांकि अमेरिका को संकेत मिल गया था कि भारत परमाणु परीक्षण कर सकता है लेकिन तत्कालीन निक्सन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को कम करके आंका। इसका श्रेय भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड अनैलिसिस विंग(रॉ) को भी जाता है। हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने भारत को किसी भी परमाणु परीक्षण के परिणाम को लेकर चेताया था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी परवाह नहीं की और परमाणु कार्यक्रम को रुकने नहीं दिया।
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यह परीक्षण आजादी से कुछ साल पहले(वर्ष 1944) में ही शुरू हो गया था। इसका नेतृत्व महान भौतिक वैज्ञानिक होमी जे. भाभा ने किया था। होमी जे. भाभा के ही निर्देशन में भारत ने अपने इतिहास में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। होमी भाभा ने भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ परमाणु कार्यक्रम पर काम करना शुरू किया। इसके बाद कई और बड़े वैज्ञानिक इस मुहिम से जुड़े। परमाणु कार्यक्रम ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में रफ्तार पकड़ी थी। जब यह सफल कार्यक्रम अंत तक पहुंचा तब देश की कमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में थी। उन्होंने भी देश के परमाणु कार्यक्रम को पूरा समर्थन दिया। वैज्ञानिकों ने भी इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसका नतीजा यह हुआ कि 1974 के आते-आते भारतीय वैज्ञानिकों का दल भारत को एक परमाणु बम देने में कामयाब हो गया।
BARC और DRDO के टीम के लीडर की रही अहम भूमिका
टीम के लीडर भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना थे जो भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के निदेशक थे। उन्होंने सिस्टम डिवेलपमेंट के काम में समन्वय के लिए डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) के तत्कालीन निदेशक और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. बसंती दुलाल नाग चौधरी के साथ मिलकर काम किया। PK आयंगर ने डिवेलपमेंट के प्रयास में निर्देशन में अहम भूमिका निभाई और आर.चिदंबरम ने न्यूक्लियर सिस्टम डिजाइन का नेतृत्व किया। डॉ. नगापट्टिनम संबासिवा वेंकटेशन ने चंडीगढ़ स्थित डीआरडीओ टर्मिनल रिसर्च लैबरेट्री का निर्देशन किया जहां सिस्टम को बनाया गया।
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