Interesting Story : बैलों की कहानी, आज के तत्वदर्शी की निशानी

 

शंखधर दूबे,  वरिष्ठ लिपिक, केन्द्रीय सचिवालय भारत सरकार


बरदही(बैलमंडी) में बैलों की अपनी जातियां और पहचान होती थी और वे अपने जन्म की दिशा और नदी के नाम से जाने पहचाने जाते थे लेकिन उनकी एक और जाति होती थी जो उनकी खरीद बिक्री में अहम भूमिका निभाती थी वह थी उनके मालिक या गोसयां की जाति, ब्राह्मणों और ठाकुरों के बैल, अगर गोसयां बहुत शौक़ीन न हुआ था तो अक्सर हडियल होते थे पर मजबूत माने जाते थे।

किसान इन बैलों को खरीदने में रूचि रखते थे। दलितों के बैल बीच में कहीं ठरते थे न बहुत मोटे न पतले, ऊँची जाति के लोग इनके बैल खरीदने से हिचकते थे क्योंकि “वे साल भर घास खाते हैं।” सबसे सुन्दर बैल अहीरों और कुर्मियों के होते थे। बाज़ार में उनकी स्थिति सड़क पर चलते बुलेट की तरह थी वे आते थे तो दुनिया रास्ता देती थी और आह भरकर देखती थी। 

ज्यादातर चौधरी लोग बैल बेचने कम और बाज़ार में तारीफ पाने और ईर्ष्या कमाने आते थे। उनके बैलों में एक तरह की अभिजात्य ठसक होती थी जो उनके हड़ियल और मरियल मालिकों में निचाट तौर पर नहीं पायी जाती थी। उल्टे तौर पर देखा जाय तो कई बार यह लगता था कि बैल ही अपने मालिक को बेचने आये हैं और बैल और मालिक के बीच इतना कंट्रास्ट दिखता था कि सौ में नब्बे बार लगता था कि वे मालिक नहीं सजे-धजे बैलों के सहायक हैं।

चौमासे के ठीक पहले दौन्गरे के साथ ही बरदही खुल जाती थी और कीट पतंगों, मक्खी मच्छरों की भरमार हो जाती थी। ऐसे में जहां कथित ऊँची जाति के लोग घर के बच्चों या हरवाहे के साथ बैल छोड़कर चाय का चुक्कड़ लेने निकल जाते थे दलित और चौधरी लोग गमछे से मंक्खियाँ और मच्छर भगाते थे और बैलों के पैर में मालिश करते थे। दोपहर बाद बाज़ार शबाब पर चढ़ता था बाबू भारत सिंह के आदमी रवन्ना लिखते- लिखते थक जाते थे और रूपये से उनके झोले भर जाते थे। ऐसा भी नहीं था कि सभी के बैल बिक ही जाते थे। जिनके बैल नहीं बिकते थे वे आपस में हंसी, कूट-मजाक, निंदा, तम्बाकू और गांजे चिलम का लेन देन करते थे। बिक चुके बैलों के नुक्स बता कर सौदा कैंसिल कराने का सुख भोगते थे।

उस साल अपने गाँव के बैल बेचने वाले जत्थे में स्वर्गीय चंदर काका, कुलदीप, श्यामकांत मैं खुद शामिल था। बैल क्या थे तो टूटरु-टू बैल थे मेरे जैसे ही मड़गिल्ले और हड़ियल। दो हराई चलने में नानी मरती थीं। दरअसल इस जोड़ी में पिता जी ठग लिए गये थे और मेरे यह गौर कर लेने के बाद भी कि बाएं वाले बैल को हत्था लगता है पिता जी ने मामा की सलाह पर बैल खरीद लिया।

मुझे खुद बैलवत स्नेह करने वाले मामा की मेरे बारे में राय थी कि मैं बाज़ार में हिलता-डुलता और बातचीत करता रहूँगा नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि खरीददार तुम्हें ही न बैल समझ लें! मंगलवार को गाँव-गाँव से निकलने वाले झुण्ड के झुण्ड बैलों में हम भी शामिल हो गए। पर उससे पहले बैलों को खूब खिलाया गया इतना कि उनकी हड्डियाँ ढँक जायं पर यह एक दिन में मुमकिन नहीं था। फिर उन्हें धोया गया, उनकी सीन्घें काली की गयीं, पूंछ के बाल काटे गये।

उनकी सींघों में रंगे फुलरे लगाये गये, गले में बढ़िया पट्टे में घुंघरू बांधे गए। लेकिन इन सबका बैलों के सौन्दर्य पर कोई फरक नहीं पड़ा था उलटे और दयनीय लगने लगे थे पर रिवाज़ था इसलिए उनके सौन्दर्य प्रसाधन में कोई कमी नहीं की गयी। कुलदीप का बैल एक बाज़ार के दिन पोंकने लगा। उसका नहलाना धुलाना व्यर्थ गया। वह सुबह-सुबह जुलाब के इलाज के लिए शीमम की पत्तियां खिला रहा था। श्यामकांत का इकलौता भेंडी सींघों वाला बैल था उसका जोड़ीदार पहले ही बिक चुका था।

श्यामकांत के बैल की सर्वाधिक लोकप्रियता इस मामले में थी कि वह रात को कभी भी अपनी पगही तुड़ाकर फरार हो लेता था और दो तीन दिन की तलाशी में फिर मिलता था। दूसरे वह सटीक लतहा था। वह जब भी लात मारता था उसका निशाना कम ही चूकता था। काका के बैल सबसे दयनीय थे। असाढ़ सर पर था इसलिए काका अब इन बूढ़े बैलों को हिल्ले लगाकर कुछ कर्ज कुवाम लेकर नई जोड़ी लेंगे।

खाए अघाये पुलकित होकर कुलाचे भर रहे बैलें के बीच पहुचते ही हमारे बैल भीड़ में और लापता हो गये। सबसे ख़राब स्थिति काका के बैलों की थी वे इतने धीरे-धीरे चल रहे थे कि लग रहा था बाज़ार के उतरने तक पहुंचेंगे। हसोड़ श्यामाकान्त काका की कूट कर रहा था। श्यामाकांत की राय थी कि काका को हाथ में हल्दी की एक गांठ और डूब अछत लेकर इन बैलों को छूकर छोड़ देना चाहिए।

जितनी पूण्य बछिया छूने में होती है उतनी ही बूढ़े बैल को मुक्ति देने में होगी। मुंहजोर काका बैलों और श्यामू दोनों की ऐसी तैसी कर रहे हैं लेकिन बैलों और श्यामू दोनों पर कोई फरक नहीं पड़ रहा है। झुण्ड में दूसरे गाँव के बैल आकर जुड़ते जा रहे हैं। पूरी पगडंडी बैलों से भर गयी है बैलों के खुर से धूल के बादल उड़ गए हैं। एक किलोमीटर से ही बाज़ार के लाउडस्पीकर का एनाउंसमेंट सुनाई दे रहा है। किसानों और बैलों की चाल खुद ब खुद बढ़ गयी।

10 बजते-बजते बाज़ार की रौनक चरम पर थी। चारो तरफ हल्ला था। कोसों चलकर आये हकौपत्त लगे बैलों के मालिक उनके लिए भूसा दाना खरीद रहे थे और भूसे वाले से झगड़ा कर थे क्योंकि वह एक का तीन दाम वसूल कर रहा था। बैल किसी और के हवाले करके प्यास से आकुल व्याकुल लोग कुएं पर टूट पड़े थे। दोपहर तक बाज़ार में किसान खरीदार ज्यादा होते हैं। जहाँ विक्रेता बैलों के गुण गाता है।

वहीं, खरीददार एक साँस में तेरह कमी गिना देता है। कुशल खरीददार हुआ तो बैलों की इतनी कमी बता देता है कि मालिक घबरा जाता है और जो मिलता है उसी में पगहिया छोड़कर और रवन्ना लिखवाकर लापता हो लेता है। दोपहर बाद बाहर के व्यापारी आते हैं वे पहली ही बार में बैलों का इतना कम दाम लगाते हैं कि मालिक का आत्मविश्वास ही टूट जाता है। एक बार टकोरा मारकर वे चले जाते हैं फिर अचानक शाम को आते हैं और सौ- पचास रुपये और देकर बैल हड़प लेते हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ खरीदार ही ठगते हैं विक्रेता भी ठगते हैं। कई बार वे अपने बीमार, सूरत हराम और गादर बैल को धोखे में टिकाकर गलत नाम पता बताकर रफूचक्कर हो जाते हैं। उम्मीद के मुताबिक ही कोई हमारे बैलों की तरफ झाकने भी नहीं आया। एक व्यापारी श्यामाकांत के बैल का इतना कम भाव लगाया कि कि बैल और श्यामाकांत दोनों  बेईज्ज़त महसूस कर रहे थे।

लिहाज़ा जब व्यापारी महोदय उसके पीछे झुक कर उसके पेट का पेशेवर आंकलन कर रहे थे कि श्यामाकांत ने आगे से बैल के पीछे एक बजरी फेंकी बैल ने अचूक किक लगाया और हलके फुल्के व्यापारी महोदय हवा में गुलाटी खाते हुए 4 फीट दूर गिरे। हाहाकार मच गया और बैल बदनाम हो गया बिकने की सम्भावना निः शेष होते थी श्यामाकांत उसका उपयोग कैनन की तरह कर रहा था और शाम तक बैल ने खासे लोगों का शिकार किया। श्यामाकांत जानवर है हें हें हें क्या किया जा सकता है कि स्थाई मुद्रा में खड़ा रहा।

काका के बैल ने न सिर्फ ग्राहक लग गए बल्कि अंतिम रूप से बयाना भी हो गया।यह बाद मुझे और कुलदीप को गवारा न थी। लिहाज़ा हम दोनों इस खेल में लग गये कि पहली ही बाज़ार में काका के बैल बिक जाने से हम एक भरोसेमंद गुइंयाँ खो देंगे लिहाज़ा बैल बिकने नहीं देना है। हमने काका के इस आशय का सन्देश दिया कि असाढ़ मूड पर खड़ा गरज रहा है और तुम इतने सस्ते में अपने कमाऊँ बेच रहे हो कि कोई भी आदमी तुम्हें मूर्ख कहेगा।

इतने पैसे लेकर तुम जिसके खूंटे पर जाओगे तो वह तुम हंसेगा और यह भी कि इतने कम पैसे में बैल के पूँछ के बाल भी कोई न देगा। काका पर कोई असर न था। काका कि राय थी कि इस असाढ़ में दोनों बैल बैठक ले लेंगे लिहाज़ा इनको रखना परले दर्जे की मूर्खता होगी। कुलदीप ने मामले को  खासा इमोशनल बनाते हुए दांव देखा कि जिन बैलें ने तुम्हारे साथ अपनी जवानी गला दी।

उन्हें बुढ़ापे में तुम कसाई को बेच दोगे, वाह काका वाह! यह दांव काम कर गया और काका ने साफ इंकार कर दिया कि वे किसी भी कीमत पर बैल नहीं बेचेंगे। शाम को काका जैसे-जैसे बरदही से दूर जा रहे थे उन्हें अपनी गलती का अहसास होता जा रहा कि उनके साथ धोखा हुआ है और जितना वे नहीं समझ रहे थे उससे ज्यादा श्यामाकांत उन्हें समझा रहा था।

काका रास्ते भर मुझे और कुलदीप को गरियाते रहे और जो नहीं गरिया पाए वह असाढ़ के एन मौके पर दहिनवा बैल के बैठक लेने के बाद गरियाते रहे और इस घटना के बाद तब तक गरियाते रहे जब तक कि बैल मर नहीं गया और उसके बाद भी यदा कदा जब तक कि खुद पिछले साल नहीं रहे।

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