राजेश शास्त्री, संवाददाता, ईस्ट न्यूज
भगवान सूर्य नारायण के इस व्रत कथा की विधि इस प्रकार है। सुबह उठकर नित्य क्रिया, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सुर्य भगवान को जल चढ़ायें और रविवार की कथा सुने या सुनायें। दिन में उपवास रखें सूर्य अस्त होने के पहले हीं भोजन अथवा फलाहार कर लें। पूजा समाप्ति के बाद रात को भगवान सूर्य को याद करते हुए तेल रहित (बिना नमक के) भोजन करना चाहिए।
निराहार रहने पर अगले दिन सुर्य को जल देने के बाद हीं भोजन करें। पांच वर्ष तक इसी प्रकार रविवार व्रत करने के बाद इस का उद्यापन करना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति जीवन के सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के बाद सूर्यलोक जाता है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से सूर्यनारायण का व्रत प्रारम्भ होता है। शुक्ल पक्ष में जिस दिन पहला रविवार पड़े, उसी दिन से व्रत आरम्भ करना चाहिए। व्रतकर्ता को दिनभर निराहार रहकर सायंकाल सूर्यास्त होने से पूर्व, सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए।
पूजन में कंडेल (कनइल) का फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्र, गुलाल और गुड़ आदि वस्तुएँ लेनी चाहिए। घर को स्वच्छ जल से साफकर, पूजाघर या पूजास्थान में ताम्रनिर्मित भगवान सूर्य की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजन करे । पूजन के अंत में घी मिले गुड़ से हवन करें। व्रत के दिन नमक, खट्टा भोजन या खट्टाई, तेल आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इसी प्रकार निरंतर पाँच वर्षों तक व्रत रहकर सूर्य की पूजा करनी चाहिये। व्रत्काल में प्रति वर्ष एक-एक धान्य / अनाज का परित्याग करे, जैसे- प्रथम वर्ष- जौ, द्वीतिय वर्ष में गेहूँ, तृतीय में चना, चतुर्थ में तिल और पंचम मे उड़द ग्रहण नहीं करना चाहिए।
व्रत की समाप्ति पर ये हीं परित्याग अनाज 12 सेर (किलो) के परिमाण में ब्राह्मण को दान दें। अंत में, 15 ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें वस्त्र तथा दक्षिणा दें।
रविवार व्रत का महत्व -
इस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विधान है। सुर्य-व्रत विधानपूर्वक करने से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है। नारद पुराण में रविवार व्रत को सम्पूर्ण पापों को नाश करने वाला, आरोग्यदायक और अत्यधिक शुभ फल देने वाला माना जाता है।
भगवान सूर्यदेव के प्रकोप से मनुष्य नाना प्रकार के रोगों से ग्रस्त एवं पीड़ीत होता है। अत: प्रत्येक नर-नारी को रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा एवं प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य-नमस्कार करना चाहिए। हमारे देश के सम्पूर्ण उत्तर-भारत में कार्तिक शुक्ल पक्ष के छठी तिथि को “सूर्यषष्ठी” या “ छठ” व्रत का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अनेक नर-नारियाँ व्रत रहकर अर्घ्य द्वारा सूर्य की पूजा करती है।
रविवार व्रत पूजा की सामग्री -
कंडेल का फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्र, गुलाल और गुड़
सूर्य-पूजा की मासिक विधि -
- चैत्र- इस महीने में पूड़ी, हलुवा आदि का नैवैद्य, मिष्ठान्न का दान एवं खीर का भोजन करना उत्तम है।
- वैशाख- इस मास मे उड़द से बनी हुई इमरती चढ़ाना और दान देना चाहिए। भोजन में दूध का सेवन सर्वोत्तम है।
- ज्येष्ठ- जेठ मास में दही, सत्तु आदि का अर्पण एवं दही, चावल आदि का दान तथा भोजन करना चाहिए।
- आषाढ़- इस महीने में दही-चिड्वा का नैवैद्य, फलों का दान एवं दही-चिवड़ा भोजन करना चाहिए।
- श्रावण- सावन के महीने में लड्डु-पूड़ी का भोग सूर्यदेव को लगाना चाहिए। ब्राह्मणों को लड्डु का दान एवं भोजन में मालपुआ श्रेष्ठ है।
- भाद्रपद- इस महीने में घी, चावल, चीनी आदि का नैवैद्य, गुलगुला का दान एवं भोजन करना उचित है।
- आश्विन- इस मास में रविवार के दिन चने से बने लड्डु का भोग लगाना, खीर का दान एवं लड्डु ही भोजन में ग्रहण करना चाहिए।
- कार्तिक- इस महीने में अनेक पकवानों का नैवैद्य, गोदान एवं कलाकंद का सेवन करना श्रेष्ठ माना गया है।
- मार्गशीर्ष- अगहन मास के रविवार के दिन मीठी खिचड़ी (मीठी भात ) का भोग लगाना, गुड, तिल आदि का दान करना एवं तिल के लड्डु का भोजन करना सर्वश्रेष्ठ है।
- पौष- पौष के महीने में चावल और मूँग चढ़ाकर सूर्यदेव की पूजा करे। दान में घी एवं भोजन में खीर पूड़ी लेना चाहिए।
- माघ- इस महीने में चूरमा का भोग, मलाई, रबड़ी आदि का दान एवं उसी पदार्थ का भोजन भी करे।
- फाल्गुन- इस महीने में गुझिया, मठरी आदि का भोग, खाजा आदि मिठाई का दान एवं बूंदी के लड्डु का भोजन करना उचित है।
दिये हुए विधि से जो लोग सूर्यदेव की पूजा करते है, उन लोगों पर भगवान् सूर्यदेव की महान कृपा होती है।


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