- नए युग के निर्माण के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता की आवश्यकता : एके बिंदुसार, संस्थापक, भारतीय मीडिया फाउंडेशन
भारतीय अखबारों के संदर्भ में डॉ. आंबेडकर के कथनों का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि इसमें उन्होंने भारतीय अखबारों (मीडिया) के लिए कुछ मानक प्रस्तुत किए हैं जो निम्न हैं–
- पत्रकारिता को पक्षपात और पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए।
- भारत में इसका विशेष संदर्भ जातीय पक्षपात और पूर्वाग्रह है।
- पत्रकारिता तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, मनोगत धारणाओं पर नहीं।
- पत्रकारिता मिशन होना चाहिए, व्यवसाय नहीं।
- पत्रकारिता और पत्रकारों की अपनी नैतिकता होनी चाहिए।
- निर्भीकता पत्रकारिता और पत्रकार का अनिवार्य लक्षण है।
- सामाजिक हितों का पक्षपोषण करना पत्रकारिता और पत्रकार का कर्तव्य है।
- पत्रकारिता में व्यक्ति पूजा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
- सनसनीखेज खबरों की जगह पत्रकारिता का कार्य वस्तुगत रिपोर्टिंग है।
- जनता की भावनाओं को भड़काने की जगह, उसके तर्क एवं विवेक को जाग्रत करना पत्रकारिता और पत्रकार का दायित्व है।
- अधिकार वंचित समाज के लिए अखबार की कितनी अहमियत, आंबेडकर साहब महसूस करते थे इसका अंदाजा उनके इस कथन से लगाया जा सकता है।
एक तरफ वे अधिकार वंचित समाज के लिए अखबार की सख्त जरूरत महूसस कर रहे थे, दूसरी तरफ अखबार निकालने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी से चिंतित एवं निराश थे। अपनी चिंता और निराशा को उन्होंने इन शब्दों में प्रकट किया–
“यह निराशाजनक है कि इस कार्य (समाचार–पत्र) के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। हमारे पास पैसा नहीं है, हमारे पास समाचार–पत्र नहीं है। पूरे भारत में प्रतिदिन अधिकार वंचित लोग अधिनायकवादी लोगों के बेहरहमी और भेदभाव का शिकार होते हैं लेकिन इन सारी बातों को कोई अखबार जगह नहीं देते हैं। एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत तमाम तरीकों से सामाजिक–राजनीतिक मसलों पर हमारे विचारों को रोकने में शामिल हैं।”
- डॉ. आंबेडकर, 1993
डॉ. आंबेडकर ने 65 वर्ष 7 महीने 22 दिन के अपनी जिंदगी में करीब 36 वर्ष तक पत्रकारिता की। हां, बीच–बीच में कुछ अंतराल आते रहें। उनकी पत्रकारिता का काल 1920 से 1956 तक विस्तारित है। ‘मूकनायक’ का पहला अंक 31 जनवरी 1920 को निकला, जबकि अंतिम अखबार ‘प्रबुद्ध भारत’ का पहला अंक 4 फरवरी, 1956 को प्रकाशित हुआ।
इस तरह बाबासाहेब आंबेडकर ने पत्रकारिता के स्वरूप को प्रस्तुत करते हुए आजीवन संघर्ष किया उनका संघर्ष एक जाति के लिए नहीं था एक धर्म के लिए नहीं था एक संप्रदाय के लिए नहीं था।
साभार : (समय-समय पर देश सभी महान महापुरुषों के विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जिससे नए युग का निर्माण हो सके)
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