Morning Special News : नए हिंदू संवत्सर से क्यों जुड़ा है राक्षस नाम, आइए जाने क्या है इसका कारण


  • तकरीबन 90 वर्ष बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा।

राजेश शास्त्री,
संवाददाता

हिंदू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है। संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा। इस संवत्सर के दौरान रोग बढ़ेंगे भय और राक्षस प्रवृत्ति लोगों में पाई जाएगी। यदा-कदा दुर्भिक्ष अकाल तथा संक्रामक रोगों से संपूर्ण देश प्रभावित रहेगा। हिंदू धर्म के अनुयायी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर यानी नववर्ष मनाते हैं। माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था। तकरीबन 90 वर्ष बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा। जबकि संवत्सर के क्रमानुसार नाम की गणना में प्रमादी संवत्सर के बाद आनंद और उसके बाद राक्षस संवत्सर आता है। 

संवत्सर 2077 का नाम प्रमादी था। ऐसे में लोगों के मन में ये प्रश्न उठ रहा है कि इसके बाद का संवत्सर जो 2078 के रूप में आ रहा है वह आनंद के नाम से न होकर राक्षस क्यों कहला रहा है?हिंदू ग्रंथों में 60 संवत्सरों का उल्लेख किया गया है। जो क्रमवार चलते हैं। ऐसे में प्रमादी (संवत 2077 प्रमादी के नाम से था) के बाद वाला संवत आनंद नाम से जाना जाता है। लेकिन, इसके बावजूद संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा।


क्रमवार ये हैं हिंदू संवत्सरों के नाम


(1) प्रभव, (2) विभव, (3) शुक्ल, (4) प्रमोद, (5) प्रजापति, (6) अंगिरा, (7) श्रीमुख, (8) भाव, (9) युवा, (10) धाता, (11) ईश्वर, (12) बहुधान्य, (13) प्रमाथी, (14) विक्रम, (15) विषु, (16) चित्रभानु, (17) स्वभानु, (18) तारण, (19) पार्थिव, (20) व्यय, (21) सर्वजित्, (22) सर्वधारी, (23) विरोधी, (24) विकृति, (25) खर, (26) नंदन, (27) विजय,(28) जय, (29) मन्मथ, (30) दुर्मुख, (31) हेमलम्ब, (32) विलम्ब, (33) विकारी, (34) शर्वरी, (35) प्लव, (36) शुभकृत्, (37) शोभन, (38) क्रोधी, (39) विश्वावसु, (40) पराभव, (41) प्लवंग, (42) कीलक, (43) सौम्य, (44) साधारण, (45) विरोधकृत्, (46) परिधावी, (47) प्रमादी, (48) आनन्द, (49) राक्षस, (50) नल, (51) पिंगल, (52) काल, (53) सिद्धार्थ, (54) रौद्रि, (55) दुर्मति, (56) दुंदुभि, (57) रुधिरोद्गारी, (58) रक्ताक्ष, (59) क्रोधन और (60) अक्षय।

बदलाव का यह है कारण


दरअसल निर्णय सिंधु के संवत्सर प्रकरण में यह उल्लेख किया गया है कि संवत्सर क्रमानुसार चलते हैं। ऐसे में 89 वर्ष का प्रमादी संवत्सर अपना पूरा वर्ष व्यतीत नहीं कर रहा। इसे अपूर्ण संवत्सर के नाम से जाना जाएगा। जिसके कारण 90 वर्ष में पड़ने वाला संवत्सर विलुप्त नाम का संवत्सर आनंद का उच्चारण नहीं किया जाएगा। इस निर्णय के अनुसार 28 मार्च 2021 के बाद पड़ने वाला आनंद नाम का विलुप्त संवत्सर पूर्ण वत्सरी अमावस्या तक रहेगा। जबकि आगामी संवत्सर संवत 2078 जो राक्षस नाम का होगा वह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ हुआ। यह संवत्सर 31 गते चैत्र तद अनुसार 13 अप्रैल 2021 से प्रारंभ हुआ।


राक्षत्र संवत्सर का देश-दुनिया पर असर


इस संवत्सर के दौरान रोग बढ़ेंगे, भय और राक्षस प्रवृत्ति लोगों में पाई जाएगी। यदा-कदा दुर्भिक्ष, अकाल तथा संक्रामक रोगों से संपूर्ण देश प्रभावित रहेगा। गुरु के पास वित्त विभाग रहेगा, जिसके चलते धन की कमी नही होने दी जाएगी। वहीं बुध देव कृषि मंत्री हैं जिससे अनाज की कमी नहीं आएगी। चंद्रमा पर देश रक्षा का भार रहेगा मंगल ही राजा, मंगल ही मंत्री इस संवत्सर के राजा व मंत्री दोनों ही मंगल यानी भौमदेव होंगे। ऐसे में मंगल जहां शरीर में रक्त के कारक है, वहीं ये जमीन के भी कारक है। जिसके चलते जमीनी सीमा के मामले में देश को लाभ होगा।

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