अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ
बांदा। प्राकृति की सुंदरता जल, जंगल और जमीन से होती है और इसी को बचाए रखना हम सभी का कर्तव्य है। यही इंसान के सभी जरूरतों को पूरा भी करते हैं। लेकिन वर्तमान समय में प्रकृति की सुंदरता में कमी आने लगी है इसका मुख्य कारण है कि जनसंख्या वृद्धि से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक से अधिक चीजों का इस्तेमाल किया जाना। प्रकृति की सुंदरता कायम रखी जा सके और अच्छे जीवन निर्वाह करने के लिए हमें जल, जंगल और जमीन के बार में गौर करना चाहिए। इसीलिए वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से जल, जंगल और जमीन विषय पर संवाद रखा गया। जिस पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. टीवी कट्टीमनी (वाइस चांसलर केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश) ने अपने वक्तव्य में कहा कि जल जंगल जमीन के साथ एक और तत्व जोड़ने की बात की जो है- 'जन'।
जनजातीय समुदायों ने कभी भी प्रकृति या प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं किया, बल्कि संरक्षण को महत्व दिया। स्वयं प्रकृति के नजदीक निवास करते हुए भी प्राकृतिक संसाधनों का मालिक नहीं समझा बल्कि आवश्यकता अनुरूप ही प्रयोग को महत्व दिया। अधिक उपभोग की संस्कृति, आराम प्रिय जीवनशैली जनजातीय जीवन शैली का अंग नहीं रही। संग्रहण करना, अधिक की और उपभोग करना, संरक्षण ना करना कभी भी भारतीय परंपरा का या जनजातीय परंपरा का तत्व नहीं रहा।
उन्होंने अपनी बात को आगे बढा़ते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल नदी जंगल आदि का सम्मान करना है भारतीय समाज की मूलभूत परंपरा रही है। इसके अतिरिक्त जनजातीय शोध केंद्रों की स्थापना व शोधों को बढ़ावा देने पर बल दिया। साथ ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग की दिशा में भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने व साथ खड़े रहने का भरोसा दिलाया।
वहीं, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र बांदा जनपद के अधांव गांव निवासी रामबाबू तिवारी ने कहा कि बुंदेलखंड में कोल आदिवासी समुदाय की संख्या अधिक है जो मध्य प्रदेश में जन जाति कैटेगरी में आते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में यह समुदाय अनुसूचित जाति के समुदाय में आता है। जिस कारण से इस समुदाय को जनजाति का लाभ नहीं मिल पाता है। जल जंगल जमीन पर अधिकार नहीं मिल पाता है। अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने जल संरक्षण पर अधिक से अधिक जोर दिया बारिश की एक-एक बूंद कुछ सहेजने की बात कही, बारिश के पानी को रोकना होगा। उससे भू-जल रिचार्ज करना होगा। इसके लिए खेत का पानी खेत में गांव का पानी गांव में मिशन के तहत जल का संरक्षण करना होगा। बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी संरक्षण को लेकर व्यापक स्तर में जल साक्षरता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
"जल साक्षरता के माध्यम से गांव-गांव लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है जब किसान गांव के लोग जागरूक होंगे निश्चित ही बुंदेलखंड पानीदार बनेगा।"
- शरद सिंह कुमरे, समाज सुधारक, पर्यावरणविद, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
इन्होंने टाइगर बचाओ की तर्ज पर ट्राईबल्स बचाओ के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। जनजातीय जीवन शैली से वर्तमान सभ्य समाज को सीख लेने की आवश्यकता पर बल दिया। आधुनिक जीवन शैली जहां उपभोक्तावादी संस्कृति है जो कि प्रकृति के दोहन पर बल देती है, वही जनजातीय जीवनशैली प्रकृति के निकट होते हुए भी प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के आधार पर संतुष्ट रहने की ओर बल देती है।
जनजातियों द्वारा अपनाए जाने वाले मूल्यों, व्यवहारों की अपनी वैज्ञानिक उपयोगिता रहती है, जिसे समझे जाने कि व इस पर शोध किए जाने की आवश्यकता है अनेक जनजातीय कथानको को मुख्यधारा में सम्मिलित करने की आवश्यकता पर इन्होंने बल दिया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. धर्मेंद्र कुमार मिश्र, डॉक्टर दिनेश यादव, डॉ स्मृति, डॉ संजय कुमार वर्मा, डॉ अश्विनी कुमार द्विवेदी, डॉ धर्मेंद्र प्रकाश, डॉ कृपाशंकर, डॉ धर्मराज प्रजापति, डॉ देव आंजना, विजय कोल, दिव्या शुक्ला, स्नेहा, हरिशंकर, ज्ञान प्रकाश पटेल, रजनीश अवस्थी, मुलायम यादव, कृष्ण कुमार तिवारी, सुशांत मिश्रा, संजू मनीष आदि लोग थे।
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