सूरज सिंह, विशेष संवाददाता
बाराबंकी। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती...यह धुनी सम्पूर्ण देश के लिए सत्य व यथार्थ है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, कच्छ से लेकर कामरूम तक मिट्टी में भी विविधता है। कहीं पठार,कहीं पहाड़, कहीं काली, कहीं दोमट, कहीं बलुई, कहीं कंक्रीट युक्त पाई जाती है। उपरोक्त विविधताओं के होते हुए भी लखनऊ से सटे जिला बाराबंकी के किसान कृषि क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखते हैं। कभी यह जनपद सरकार द्वारा प्रदत्त लाइसेंस से "काला सोना " की खेती के माध्यम से पहचान रही व इसके अपने गुण-दोष आर्थिक विकास का माध्यम रहा। किन्तु समय के साथ परंपरागत खेती धान,गेहूं गन्ना आदि के साथ किसानों ने अपने परिश्रम के बल पर कृषि क्षेत्र में नवीन प्रयोग किये।
दलहन की खेती से नीलगायो की अधिकता से मुह मोड़ा।कुछ रकबे में आज भी तिलहन की खेती होती है। इस जिले में मेंथा की खेती किसानों ने बड़े स्तर पर आरम्भ किया, किन्तु बढ़ते हुए डीजल के दाम व पेराई के समय टंकी आदि फटने से लगाव कम हुआ किंतु नगदी फसल होने के कारण आज भी बड़े क्षेत्रफल में मेंथा की खेती होती। वर्तमान समय में इस जिले में नवीन परिवर्तन देखे गए रामशरण वर्मा दौलतपुर के किसान जहां किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने तो किसानों ने अपनी मेहनत के आधार पर केला, तरबूज, खरबूजा, बागवानी, फूल,पपीता, मशरूम की खेती करना आरंभ किया। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि परंपरागत धान गेहूं आदि की बिक्री सरकारी रेट पर आम किसानों के लिए एक जटिल प्रक्रिया है।
आज भी धान गेहूं यह मूल्य जो सरकार द्वारा नियत है, उनका लाभ सामान्य किसान नहीं पा पा रहा है । क्योंकि राइस मिलर्स नौकरशाह आदि रास्ता निकाल कर कमाई का आधार बनाएं। इस जिले के किसान अपने सम्मान तथा आय में वृद्धि के लिए केले की खेती को एक विकल्प के रूप में बड़े स्तर पर आरंभ किया है। कृषि विभाग के सरकारी आंकड़ों पर ध्यान दे तो 2019-2020 में 2000 हेक्टेयर, 2020-2021 में 2750 हेक्टेयर, 2021-2022 में 3100 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर केला लगा जबकि आम लोगों की मानें तो यह रकबा इससे अधिक है। जनपद में प्रगतिशील किसान रामशरण वर्मा जी से भी अग्रणी किसान हैं जो केले की अच्छी पैदावार कर रहे हैं।
केले के प्रति रुझान का कारण है कि बिक्री में मण्डी कर से छूट है तथा कुछ किसानों को कृषि विभाग से सब्सिडी आदि प्राप्त हो जा रही जबकि अधिकांश किसान इससे वंचित है क्योंकि इस विभाग में भी जो पूर्व में अपनी पहुंच बना रखे हैं व जानकारी रखते हैं, उन्हें ही मिल पा रही। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए जो "किसान सम्मान" शब्द का प्रयोग किया है आज जनपद के मेहनती किसान "सम्मान"को बनाया तथा किसानों की दुगुना आय की अवधारणा को प्रत्यक्ष दिखा रहे हैं। जनपद केला की खेती के माध्यम से संपन्नता की ओर बढ़ेगा ऐसी आशा है। किन्तु केले के क्षेत्रफल की बढ़ोत्तरी मूल्य को कम कर सकते हैं इस स्थिति में केंद्र व राज्य सरकार बाहर सप्लाई हो सके इसकी गारण्टी सुनिश्चित करावे। किसान अन्न फल, देवता होता है अतैव इसकी चिंता भी करना सरकार का परम पुनीत दायित्व है।
जैसा कि खरबूजा, तरबूज की फसल की आपूर्ति लॉकडाउन के कारण नहीं हो सकी इसलिए किसान उचित मूल्य नहीं प्राप्त कर सके। अनेक किसान केले की खेती इस बार पहली बार कर रहे हैं जिसमें 1 हेक्टेयर मे पवन मिश्रा सम्मिलित है। कुछ किसान जैसे विकास सिंह रघुवंशी कुशफर निवासी जो 1 हेक्टेयर करते थे आज उनके पास 8 हेक्टेयर केले का रकबा है वहीं इटोरा के विजय मिश्र 2 हेक्टेयर से 3 हेक्टेयर केले की खेती आरंभ की है। विनीत सिंह, दीपू वर्मा, गोपाल वर्मा, राघवेंद्र प्रताप सिंह जी, मनोज सिंह, राम नारायन सिंह, रघुनाथ यादव, कुशफर समीर सिंह, श्यामू वर्मा मन्नूलाल पुर केले की खेती के विशिष्ट किसान हैं। केले की फसल का निरीक्षण किया गया तो मन प्रफुल्लित हो गया। केले के खेत बहुत ही सुन्दर विकास सिंह से पूछने पर बताया की कि प्रत्येक घार 30 किलो से अधिक ही हैं। एक हेक्टेयर मे औसत 5लाख से छ लाख रूपये सब कुछ ठीक रहा तो बच जाते हैं।मन की बात में मा0मोदी जी ने भी जनपद की तहसील फतेहपुर की "केलों" के पत्तों को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ा।
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