प्रेम पयोधि से सृजन का उपसंहार करने में जुटे प्रो. रामदेव शुक्ल



विवेकानंद त्रिपाठी

85 साल की उम्र। कृश काया। चश्में के भीतर से झांकती और हमेशा नए सृजन के लक्ष्य को संधान करती स्नेहिलआंखें। प्रोफेसर रामदेव शुक्ल के लिए उम्र एक गिनती भर है। इस उम्र में चिंता का लेश नहीं। प्रशांत चेहरा। चेहरे पर मंद मंद स्मिति मानों वह हमेशा परमानंद में रहते हों। जी यह परमानंद उसी को मिलता है जिसके अंतस में उजास हो। उनका अंतस इस उजास से भरा है तभी तो उम्र की गहराती इस सांध्यवेला में सृजन की अविरल निर्झरिणी बह रही है। वही उनका परमानंद है। सृजन की इसी अविरल ऊर्जा के चलते उन्होंने विश्वविद्यालय की शिक्षण सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद इतना कुछ रच डाला है जितना जीवन के पूर्वार्ध में नहीं कर सके। 

अपने कालजयी उपन्यास ग्रामदेवता से साहित्य सृजन के आकाश पर धूमकेतु की तरह उभरे प्रोफेसर रामदेव शुक्ल अपने साहित्य सृजन का उपसंहार योगेश्वर कृष्ण के जीवन पर आधारित कथ्य प्रेम पयोधि से करने की मनोभूमि बना रहे हैं। जीवन का उपसंहार प्रेमपयोधि से हो यह सौभाग्य बिरलों को मिलता है। इसी रचना का अंकुरण प्रोफेसर रामदेव के मानस में हो चुका है। इसकी ऋचाएं अक्षरों के शक्ल में जल्द ही उतरने वाली हैं। 

दरअस्ल प्रोफेसर शुक्ल अपने इस नवसृजन को अभी अपने मनोमष्तिष्क में ही रखना चाहते थे मगर बातों का सिलसिला चला तो उनके मन दर्पण में इसकी झलक दिखी। उनका अंतस उजास है इसलिए छिपा भी न सके। अपनी इस मानस रचना के कथ्य पर किए सवाल पर उन्होंने कृष्ण के उस उदात्त प्रेम पर आधारित रीतिकालीन महाकवि घनानंद की घनाक्षरी सुनाकर अपने कथ्य का विस्तार बताया। आप भी सुनिए।

प्रेम को महोदधि अपार हेरि कै विचार ।  
बापुरो हहरि वार ही ते फिरि आयो है। 
ताहि एक रस ह्वै बिबस अवगाहे दोऊ 
नेही हरि राधा जिन्हें देखि सरसायो है 
ताकी कोऊ तरल तरंग संग छूट्यों कन 
पूरि लोक लोकनि उमंगि अफनायो हैं 
सोई घनआनंद सुजान लागि हेत होत 
ऐसो मथि मन पर सरूप ठहरायो है।

घनानंद उनके सबसे प्रिय कवि रहे हैं उन पर लिखी अपनी समालोचनाओं से उन्होंने यश और ऐश्वर्य दोनों अर्जित किया है। उनके अंकुरित हो रहे नए महाग्रंथ के सृजन की पृष्ठभूमि में कृष्ण राधा का यही विराट प्रेम है। यह प्रेम कितना विराट है इसकी एक झलक की अनुभूति करिए। घनानंद कहते हैं योगेश्वर कृष्ण और राधा प्रेम के असीम सागर में अवगाहन कर रहे हैं। इस प्रेम के सागर की लहरों की एक बूंद की एक फुहार भी मानव मात्र पर पड़ जाए तो वह ऐसे आनंदातिरेक से भर उठेगा जिसका कोई ओर छोर ही नहीं है। सचमुच कमाल हैं कृष्ण अपने तमाम अवतारों में सबसे ज्यादा मानवीय कृष्ण ही लगते हैं। 

अजीब पैराडॉक्स है कृष्ण में शायद ही कोई अवतार इतना मनुष्य लगता हो और दूसरी तरफ शायद ही कोई अवतार हो जो इस कदर देवता लगता हो। दैवत्व और मनुष्यत्व कृष्ण में इतने घुले मिले हैं कि कब कौन किसकी सीमा पार कर जाय कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। एक पिंड से ब्रह्मांड तक की यात्रा कृष्ण ही करते हैं। कृष्ण के काम काज को महसूस कीजिए। उसकी शुरुआत तो बहुत मामूली ढंग से होती है लेकिन अंत भव्य होता है। यही कृष्ण की खूबी है। वह छोटी से छोटी चीज को भव्य बना देते हैं। वह हर काम को इतना मगन होकर करते हैं कि कहीं कुछ नहीं छूटता। 

वह उसको समग्रता में नाप लेते हैं। कभी लगता है कि वह पल में जी रहे हैं। पल में जीते हैं वह लेकिन उनका हर पल पूरा होता है। वह अपने हर काम हर रिश्ते को पूर्णता तक पहुंचाते हैं और खुद एक पूर्णता तक पहुंचते हैं। बड़े से बड़ा काम करते हुए भी वह खेलते हुए नजर आते हैं। महज बौद्धिक नहीं होते। कोई बात कहते हैं तो वह महज उपदेश नहीं अपितु आचरित सत्य लगती है। कृष्ण के इसी विराट स्वरूप को प्रेम पयोधि नाम से उकेरने का जतन इस समय प्रोफेसर रामदेव शुक्ल के मनोमष्तिष्क में चल रहा है। बहुत सहज भाव से वे सृजन के अपने इस संकल्प के ताने बाने बुनने में जुटे हैं। 

अगर सब कुछ ठीक रहा तो सृजन के विराट क्षितिज पर एक कालजयी कृति फिर प्रकट होगी। प्रोफेसर रामदेव शुक्ल का रचना संसार बहुत विराट है। अपने आस पास और परिवेश की सूक्ष्म से सूक्ष्म घटनाओं पर पैनी नजर रखने के साथ उसे आधुनिक संदर्भों से जोड़ने में उन्हें महारत हासिल है। भोजपुरी भाषा की संप्रेषणीयता को उन्होंने कितना विराट क्षितिज प्रदान किया है इसकी झलक उनके कालजयी उपन्यास ग्राम देवता में दिखती है। उसका अब अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। इसके अनुवादक लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. धर्मपाल सिंह किस कदर ग्रामदेवता ओर भोजपुरी भाषा से अभिभूत हैं इसकी बानगी उन्हीं के शब्दों में - कथाकार प्रोफेसर रामदेव के उपन्यास ग्राम देवता का अंग्रेजी में विलेज ग़ॉड नाम से अनुवाद करते समय भोजपुरी भाषा की छुअन, सिहरन कचोट से एकाकार होते हुए एक नई साहित्यिक अनुभूति प्राप्त की। यद्यपि ग्राम देवता पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्राम्यांचल को आधार बनाते हुए लिखा गया है लेकिन यह भारत वर्ष के सभी गांवों को जीवंत शैली में मूर्त कर देता है।

प्रोफेसर रामदेव शिक्षक होना अपना पैशन मानते हैं और लेखन को मनस्वी मन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति। लिखने के लिए उन्हें मूड का इंतजार नहीं करना होता। एक सिद्ध योगी पद्मासन लगाते ही जिस सहजता से समाधिस्थ होकर परमानंद में लीन हो जाता कुछ उसी तरह उनके लिए लेखन है। विचारों के अथाह सागर में निरंतर निमग्न रहने वाला उनका मन बहुत सहजता से उन्हें लेखन की ओर प्रवृत्त कर देता है। 16 उपन्यास, आठ आलोचना, कहानी संग्रह, 25 से ज्यादा ग्रंथों का संपादन सौ से अधिक ग्रंथों में सहलेखन। आधा दर्जन से अधिक देशों की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में विशेषज्ञ के रूप में व्याख्यान उनकी अजस्र चिंतन मनन का दस्तावेज हैं। उनके लेखन की यात्रा अप्रतिहत गति से जारी है।

प्रोफेसर रामदेव शुक्ल एक परिचय -

कुशीनगर के गांव शाहपुर कुरमौटा की विथियों पले बढ़े प्रोफेसर रामदेव शुक्ल ग्रामीण जीवन के कुशल चितेरे हैं। यूं कहें कि मुक्त गगन की हदें छू लेने के बाद भी वे अपने परिवेश और जड़ों से कटे नहीं हैं। उनकी कालजयी कृति ग्राम देवता में इसके अक्स देखे जा सकते हैं। गांव और अपनी सोंधी मिट्टी की सुगंध उनकी आत्मा में रची बसी है। सौम्यता उनके संस्कारों में है मगर गलत के खिलाफ न केवल खड़े होना बल्कि उसे उसकी हदें भी बता देने का उनका तेवर इस मामले में उन्हें विद्रोही भी बनाता है। 

परंपरा के वे वहीं तक पोषक हैं जहां तक वह प्रवहमान रहती है जब वह विगलित रूढ़ियों में बदलने लगती है तो वे उसका कुशल शल्य चिकित्सक की तरह ऑपरेशन भी करने में हिचकते नहीं। इसके लिए उन्हें चाहे कितना भी वरोध झेलना पड़े फिर वे पीछे नहीं हटते। घर, परिवार कार्यस्थल सब जगह वे इसी फौलादी इरादे के साथ खड़े रहे हैं। विश्वविद्यालय में 26 साल तक हिंदी विभाग में अध्यापन किया। जितनी कुशलता से उन्होंने अपने शिक्षण दायित्व का आत्मसम्मान के साथ निर्वहन किया उतनी ही कुशलता और सख्त अनुशासन के साथ विश्वविद्यालय के प्रशासनिक दायित्वों को भी संभाला।

  • विभागाध्यक्ष पद से 1998 में सेवानिवृत्त होने के बाद प्रकृति के सुरम्य दिगंचल में स्थित गोरखपुर में उनका साहित्य सृजन अहर्निश जारी है।
  • उनके पास उपलब्धियों और सम्मानों की एक लंबी फेहरिश्त है। - यूजीसी मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट समन्वयक और इमेरिटस फेलो रहे।
  • भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों एवं यूरोप के ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, रोमानिया लंदन विश्वविद्यालय में ब्रज भाषा अवधी और भोजपुरी विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने पूरी दुनिया में हिंदी और गोरखपुर दोनों को अलहदा पहचान दी है।
  • प्रमुख पुस्तकें - ग्रामदेवता, मनदर्पन, विकल्प, गिद्धलोक समेत 16 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उजली हंसी की वापसी, पतिव्रता, नीलाम घर, अपहरण समेत छह कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। इसके अलावा घनानंद का श्रृंगार काव्य, निराला के कथा गद्य का आस्वादन, बिहारी सतसई का पुनर्पाठ, सामंती जीवन का यथार्थ और बिहारी का काव्य के साथ आलोचना की आठ पुस्तकें उनके रचना संसार की व्यापकता की बानगी भर हैं।
  • भोजपुरी रचनाएं – ग्रामदेवता, कविता और कुदाल (उपन्यास), सुग्गी (कहानी संग्रह) ग्रामदेवता और बेघर बादशाह के अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित।
  • 25 ग्रंथों का संपादन ।
  • सम्मान – दो स्वर्ण पदक, विद्याभूषण और हिंदी गौरव के साथ अनेक शिखर सम्मान के साथ उन्हें ढेर और सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

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