Navratri 2021 : आइए जानें, मां दुर्गा के नौ रूपों में से दो रूपों का संक्षिप्त वर्णन

maa durga

नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत 7 अक्टूबर, 2021  से हुई है। यह पर्व में नौ दिनों तक बड़े ही धूम-धाम से मनाय जाता है। इन नौ दिनों में लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की करते हैं। अगर हम इसके इतिहास की बात करें तो यह रामजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारद ने श्रीराम से इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था। इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया। तब से इस व्रत को कार्यसिद्धि के लिए किया जाता रहा है।

मां शैलपुत्री

मां शैलपुत्री

नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा- अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री सौभाग्य की देवी हैं। उनकी पूजा से सभी सुख प्राप्त होते हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां को वृषारूढ़ा, उमा नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है। आइए जाने मां शैलपुत्री की आरती, जो इस प्रकार है-

आरती

शैलपुत्री मां बैल सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस जा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रृद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

मंत्र

वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।


मां ब्रह्मचारिणी

मां ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। ब्रह्मचारिणी मां, ब्रह्म अर्थात तपस्या का आचरण करने वाली हैं। इसलिए इन्हें तपस्चारिणी भी कहा जाता है। उनके एक हाथ में कमण्डल है तो दूसरे हाथ में अक्ष माला। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान और तप की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करने से भक्त को धैर्य, ज्ञान और कठोर परिश्रम करने का गुण प्राप्त होता है। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है।

मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

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