अधिक उत्पादन के लिए बीज बदलाव आवश्यक हैं : कुलपति

अधिक उत्पादन के लिए बीज बदलाव आवश्यक हैं : कुलपति

अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ

बांदा। कृषि में अधिक उत्पादन के लिए बीज एक प्रमुख घटक है। बीज का प्रमाणीकरण ही नही बल्कि शुद्धता भी आवश्यक है। क्षेंत्रानुकूल प्रजातियों का चुनाव करते समय कृषक जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उत्पादन के विभिन्न घटकों का भी ध्यान रखें। अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों जोकि 10 वर्ष से पुरानी न हो उन्हें ही प्रथम पक्ति प्रदर्शन में सम्मिलित किया जाये। 89 कृषि विज्ञान केन्द्रों के रिपोर्ट एवं मंथन से यह ज्ञात हुआ कि प्रर्दशन प्रक्षेत्र का उपज सामान्य से 15-20 प्रतिशत अधिक है। इससे यह ज्ञात होता है कि तकनीकी का सही उपयोग कृषक आय में वृद्धि कर सकता है। 

वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का असर फसलों के दाने बनने एवं कुल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है। यह शोध का विषय है कि हम बुवाई के समय पर परिवर्तन कर उपज को बढा सकते है क्या। यह बाते कृषि विष्वविद्यालय, बाँदा के मा0 कुलपति प्रो0 नरेन्द्र प्रताप सिंह ने प्रसार निदेशालय, कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा एवं कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संस्थान (अटारी) जोन-3, कानपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय ‘‘समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन-दलहन/तिलहन एवं सीड हब परियोजना’’ की कार्यशाला के समापन अवसर पर दिया।  

प्रो0 सिंह ने वैज्ञानिकों से यह अपील कि कृषकों का आय दोगुनी करने के लिए हमें उत्पाद के साथ-साथ मूल्य संवर्द्धन पर जोर देना पडेगा। चना और चने से बने विभिन्न उपभोग की वस्तुओं में मूल्य में कई गुना अन्तर आ जाता है, जैसे- बेसन, सत्तू, मिठाई व अन्य। दलहन फसल के विशेषज्ञ एवं रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के अधिष्ठाता डा0 एस0के0 चतुर्वेदी ने कहा कि कई क्षेत्रों में दलहन का उत्पादन अभी भी राष्ट्रीय औसत उत्पादन के बराबर नही है। बुन्देलखण्ड को दाल का कटोरा कहा जाता है पर यहां भी औसत उपज काफी कम है।

अधिक उत्पादन के लिए बीज बदलाव आवश्यक हैं : कुलपति

कम उत्पादन के लिए सजीव व अजीव कारको को हमें देखना होगा कि किसका प्रभाव उत्पादन पर ज्यादा पड रहा है। वर्तमान में बहुत सारे तरल उर्वरक बाजार पर उपलब्ध है। संस्तुति के अनुसार दलहन एवं तिलहन में शुष्क क्षेत्रों मे भी अधिक उत्पादन के लिए तरल उर्वरक का समय से छिड़काव कर अधिक उत्पादन अर्जित कर सकते है।  

समापन समारोह के दौरान कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा के निदेषक प्रसार, प्रो0 एन0के0 बाजपेयी ने उपस्थित सभी वैज्ञानिकों से यह अपील की कि जलवायु परिवर्तन का फसल पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन अवश्य करें। उपलब्ध आंकडों के अनुसार बीज बदलाव व बुवाई समय में परिवर्तन कर सफलता पायी गई है। हमें इस पर गहन चिंतन एवं विचार करना होगा। कृषक प्रक्षेत्र पर समूह प्रथम पक्ति प्रदर्षन कृषको में तकनीकि के प्रति विश्वास पैदा कराता है। 

प्रो0 बाजपेयी ने कहा कि कार्यशाला में यह निर्णय लिया गया कि सभी सीड हब परियोजनार्न्तगत 1000 कु0 बीज उत्पादन का लक्ष्य पूर्ण करें। प्रजनक बीज के साथ-साथ आधारीय बीज के उत्पादन पर भी हमें ध्यान देना होगा। कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संस्थान (अटारी) जोन-3, कानपुर के प्रधान वैज्ञानिक डा0 साधना पाण्डेय ने उपस्थिति सभी वैज्ञानिकों से यह अपील कि की केन्द्र पर संचालित विभिन्न गतिविधियों की सूचना एवं रिर्पोंट उचित प्रारूप पर भरकर समय से प्रेषित करें। 

ऐसा करने से हमे समय से आंकडे प्राप्त होगें और विभिन्न संस्थानों को उचित कार्यवाही हेतु प्रेषित किये जा सकेगें। कार्यक्रम में प्रो0 बाजपेयी ने प्रदेश के कोने-कोने से आये हुए सभी वैज्ञानिकों का कार्यषाला को सफल बनाने हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन सह-निदेशक प्रसार डा0 नरेन्द्र सिंह ने किया।

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