- व्यापारिक दृष्टिकोण से किसान अनाज के अलावा थोड़ी जड़ी-बूटीयों की भी खेती करो, आगे चलकर इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी
- अध्यात्म से ही सारे विज्ञान निकले हैं, अध्यात्म के जानकार को सब समझ में आ जाता है
उज्जैन (मध्य प्रदेश)। इस समय के त्रिकालदर्शी सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने नव वर्ष के अवसर पर आए हुए व ऑनलाइन सुनने वाले भक्तों को 1 जनवरी 2022 को वर्ष 2022 के बारे में दिए व यूट्यूब चैनल पर प्रसारित संदेश में बताया कि देखो कुछ लोग किसान हो, खेती करते हो। आपके मन में बेईमानी नहीं आनी चाहिए। नीयत आपकी खराब नहीं होनी चाहिए। थोड़ा ही मिलेगा, उसमें बरकत हो जाएगी। ज्यादा लेने की कोशिश मत करो। कोई भी अनाज में मिलावट मत करो।
गुरु के जब वचनों का जब पालन करते हैं, बच्चे उन्ही आदर्शों पर चलते हैं तो तरक्की कर जाते हैं
ऐसे-ऐसे प्रेमी भक्त हुए हैं गुरु महाराज के। कह दिया बच्चा दूध में पानी मत मिलाना तो उनको दूध को जब बर्तन में डालना होता था तो हाथ पोंछ करके दूध को डालते थे। दूध देखना भी होता था, कैसा है तो हाथ धोकर, पोंछकर दूध में हाथ डालते थे कि एक कतरा भी पानी का उसमें न चला जाए। जब वचन का पालन किया तो उनके जो भी लड़के बच्चे रहे, उनके आदर्श पर चलने लग गए, तरक्की कर गए उस लाइन में। थोड़ा ही मिले और बरकत मिल जाए तो आगे बढ़ जाता है।
किसान अनाज के अलावा औऱ भी खेती कर लो, जड़ी-बूटीयों की आगे चलकर भारी जरूरत पड़ेगी
लोभ लालच मत करो। अगर आपको जरूरत है लड़का, बिटिया का ब्याह करना है, लड़के को पढ़ाई-लिखाई करानी है तो आप अनाज के अलावा और भी खेती कर लो जिसमें आपको आमदनी हो जाए। आप जब चारों तरफ नजर दौडाओगे फिर एक भी काम ठीक से पूरा नहीं हो पाएगा। आप जो खेती करते हो उसमें डटकर के खेती करो।
नीम, गिलोह, घृतकुमारी, तुलसी आगे इनकी जरूरत पड़ेगी
लड़के पढ़ लिख गए, नौकरी में चले गए। खाली न बैठाओ, कहीं न कहीं नौकरी करवा दो, काम करवा दो या कोई व्यापारिक दृष्टिकोण से खेती करो। आगे चलकर के जरूरत पड़ेगी- नीम, घृतकुमारी, तुलसी, गिलोय आदि। यही दवाएं आगे काम आएंगी। बाकी अंग्रेजी दवा जो चल रही हैं रुकावट तो इससे आती है लेकिन मर्ज नहीं जाता है।
कोरोना रूप बदल कर फिर से आ रहा है, कुल मिलाकर करके तकलीफ ही है। जो बुद्धिजीवी, डॉक्टर, वैज्ञानिक हो इसको सोचकर के रखना
देखो यह हुआ कि कोरोना खत्म हो गया। कोरोना फिर बढ़ रहा फिर आ रहा है। अब उसी का कई रूप हो गया। अब जिसके मन में जो आता है वही नाम रख देता है। कुल मिलाकर के तकलीफ ही है। तो तकलीफ है अभी बढ़ेंगी लोगों की। इससे बचने का उपाय जितने भी बुद्धिजीवी, डॉक्टर, वैज्ञानिक हो, इसको सोच कर के रखना।
अध्यात्म से ही सारे विज्ञान निकले हैं, अध्यात्म की जिसको जानकारी हो जाती है, सब समझ में आ जाता है
देखो अध्यात्म में सब कुछ समाया हुआ है। आध्यात्मिक विज्ञान की जिनको जानकारी हो जाती है वह सब समझ जाते हैं। जड़ी-बूटियां यह जितनी भी है प्रकृति ने बना कर के रखा है। किसके लिए है? यह सब मनुष्य के लिए ही है लेकिन जानकारी नहीं हो पाती है।
कस्तूरी की खोज वाले मृगा की तरह मनुष्य के अंदर भगवान है पर बाहर भटकता ढूंढता रहता है
तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।
कहा न प्रभु तो इस घट में ही है लेकिन सूझते नहीं। कहा कि दुनिया को क्या हो गया? जैसे मोतियाबिंद हो जाता, बुड्ढा टकर-टकर देखता है लेकिन देख नहीं पाता है। पर्दा आंखों में पड़ जाता है। जब ऐसे न जानकारी में जैसे-
आए मृगा सुगंधी की तलाश में वन-वन घूमता रहता है, कस्तूरी उसके अंदर रहती है। ऐसे आदमी भटकता रह जाता है, जानकारी नहीं हो पाती है देखो जानवर बीमार होने पर जड़ी-बूटी खाते हैं, भोजन बंद कर देते हैं। वह संयमित होते हैं। तो सब जड़ी बूटियों की आगे चलकर जरूरत पड़ेगी।
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