दुःखों के इस संसार में जो कोई आया, सबको एक दिन खाली हाथ जाना पड़ा इसलिए मरने के बाद जो काम आवे, वह कुछ काम करना चाहिए : बाबा उमाकान्त

  • दुनिया भी कमा लो लेकिन इसमें फंसो मत, समय निकलने के बाद सिर्फ पछतावा हाथ आता है

देवास (मध्य प्रदेश)। पानी के बुलबुले के समान इस दुनिया की क्षण भंगुरता को विभिन्न तरीकों से स्पष्ट करने वाले, इस अल्प समय के लिए मिले अनमोल मानव जीवन में इसके असली उद्देश्य जीते जी प्रभु प्राप्ति की याद दिलाने वाले इस समय के पूरे सन्त उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज जी ने 7 जनवरी 2022 को देवास (म.प्र.) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि बच्चा जब पैदा होता हैं, मुट्ठी में लेकर तो आता है अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष लेकिन जब अपना असला काम नहीं करते हैं तो बस हाथ फैलाकर के ऐसे चला जाना पड़ता है। कहते हैं-

 क्या लेकर तू आया जग में, क्या लेकर तू जाएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा ।

इस यह दुनिया से कुछ ले तो जा ही नहीं सकते। क्योंकि बहुत पतले रास्ते से यह जीवात्मा डाली गई है और उसी पतले रास्ते से निकलती है। तो यहां इन बाहरी आंखों से देखने वाली कोई भी चीज ले तो जा ही नहीं सकते। जैसे कहा गया रोते हुए पैदा हुए और रोते हुए ही जाते हैं। पैदा हुए तो रोए, दूध नहीं मिले तब रोए, स्कूल जाने को हुआ तब रोए, जब लड़कों से झगड़ा हुआ स्कूल में खेल-खेल में तब रोए, पढ़ नहीं पाए तो रोए, पढ़ ले गए तो नौकरी मिली तो रोये, नौकरी से जब निकाल दिए गए, छूट गई नौकरी तो रोए, शादी नहीं हुई तो रोए, शादी हुई तो रो रहे, हार गये इलेक्शन तो रोए, इलेक्शन जीत गए तो रोए- रात में नींद नहीं आती है, रोते ही रोते चले जाना पड़ता हैं इस दुनिया संसार से। तौर तरीका नहीं सीख पाए तो नोट कमाने वाला दीन और ईमान को ही बेच देते हैं। 

कोई सुखी है? जिसके बच्चे नहीं है वह तो रो ही रहा है, जिसके चार-चार बच्चे, वह भी रो रहा है। कहते हैं मर जाते तो ठीक था। क्योंकि उनको मालूम ही नहीं है गृहस्थ आश्रम का धर्म क्या है। जब मालूम था लोगों को गृहस्थ धर्म का पालन करना, मर्यादा का पालन करना तो पिता के आदेश पर राम गद्दी पर ठोकर मार कर के जंगल चले गए थे और अब धन-संपत्ति के लिए बाप का कत्ल कर रहा है। मर्यादा का पालन कर रहा है? अरे वो कर्तव्य को समझ रहा है? नहीं समझ रहा।

ये दुःखों का संसार है, बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लो

ये दु:ख का ही है संसार है। जब तक सुख के सागर में नहीं पहुंचोगे तब तक अपने वतन, अपने मालिक के पास नहीं पहुंचेंगे। तब तक इसी दु:खों के समुद्र में ऐसे डूबते रहोगे। प्रेमियों मौका आपको मिला है बाहर जाने का। इस दु:ख के संसार से निकलने का रास्ता है, सीमा है, बॉर्डर जिसको कहते हैं, उसके लिए आपको मौका मिला है। यह मनुष्य शरीर आपको मिला है तो आप इसकी कीमत लगाओ।

दुनिया भी कमा लो लेकिन इसमें फंसो मत

इसको स्वस्थ रखने के लिए खाने का, गर्मी-ठंडी से बचने के लिए कपड़े का इंतजाम कर लो, बरसात से बचने के लिए घर मकान बना लो। यह सब काम कर लो लेकिन फंसो नहीं इसमें। जो एक-दूसरे का संबंध जो हो गया है, शादी-ब्याह हो गया है, बच्चे हो गए हैं, आप यह समझो उसका पालन करो, कर्तव्य का पालन करो। कर्तव्य का पालन क्या है? जो आपको रोटी बनाकर खिलाता है, उसको कमा करके आपको लाकर के देना है। जिन बच्चों से आपको उम्मीद है कि हमारे बुढ़ापे में दो रोटी का सहारा बनेंगे, उनको पढ़ाना-लिखाना, योग्य बनाना, अपने से अच्छे ओहदे पर पहुंचाना, अपने से ज्यादा मान-सम्मान दिलाना यह आपका कर्तव्य भी है। लेकिन इसी में मत फंसे रहो नहीं तो यह समय निकल जाएगा।

समय निकलने के बाद सिर्फ पछतावा हाथ आता है

अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत। खेत को चिड़िया चुग जाए तब रखवाली करो, बैठे रहो, डंडा पटकते रहो, क्या मतलब है? जब फसल सूख गई, आग लग गई तो कुआं खोदने से क्या मतलब है? तो कहा गया समय पर चेतो। उमर का जितना समय आप लोगों का निकल गया वह तो वापस आना नहीं है लेकिन जो बचा है उसमें अपना असली काम कर लो। यह जो भी काम आप कर रहे हो घर-मकान, रुपया-पैसा इकट्ठा कर रहे हो, मान-प्रतिष्ठा इज्जत कमा रहे हो, यह दूसरों के लिए है। आंख बंद होने पर दुनिया से बाकी सब लोगों की तरह आपको भी जाना पड़ेगा क्योंकि मनुष्य शरीर में हो।

जो मरने के बाद काम आवे, वह कुछ काम करना चाहिए

जो पेड़ फलता है- झड़ता है, जो आग जलती है- बुझती है और जो पैदा होता है- मरता है। तो आपको भी जाना पड़ेगा इस संसार को छोड़कर। तो यहां की चीजें आपके कोई काम नहीं आएगी, दूसरे के काम आएगी। आपके शरीर को कोई सम्मान-प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, यह धन-दौलत आपके काम नहीं आएगी। तो जो मरने के बाद काम आवे, वह कुछ काम करना चाहिए। तो वह काम क्या है? ऐसी दौलत प्राप्त करना कि जो कभी खत्म न हो। दुनिया की सारी दौलत, विद्या जहां खत्म होती है वहां से आध्यात्मिक दौलत, विद्या की शुरुआत होती है। तो वह आध्यात्मिक ज्ञान भी थोड़ा प्राप्त करो। अब आध्यात्मिक ज्ञान क्या है? यही है कि यह मनुष्य शरीर किराए के मकान की तरह है। एक दिन उसको खाली करना पड़ेगा। इसमें जो बैठी हुई जीवात्मा है, उसको जगाओ। वह परमात्मा की अंश है, उसको वहां तक पहुंचाओ। जब यह वहां पहुंचने लग जाएगी तो सारी विद्या, दौलत आपके पास आ जाएगी, इच्छा आपकी पूरी हो जाएगी।

बाबा उमाकान्त जी के वचन :

  • जब आप का आखिरी समय आएगा उस वक्त पर घर में ये नहीं रहने देंगे।
  • मास्टर, डॉक्टर, वकील, ड्राइवर, रसोईया काबिल रखना चाहिए, ये सब भविष्य को बनाने वाले एवं जान के रक्षक होते हैं। 
  • मन लगाकर एवं मनोबल ऊंचा करके कार्य करने पर सफलता मिल जाती है।
  • त्याग करने वालों का ही नाम होता है।
  • पद, पैसा, परनारी से बचना चाहिए।

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