जिन देशों में आप थोड़े प्रेमी हो, आप मिलकर के उन देशों में रहने वाले लोगों को सुखी बनाने के लिए मानवता की सेवा का प्रचार-प्रसार करो : बाबा उमाकान्त जी महाराज

  • जैसे गृहस्थी चलाने में अपनी ताकत लगाते हो ऐसे ही गुरु के अधूरे मिशन को पूरा करने में तन, मन, धन को लगाओ, ये तीनों काम बिरले ही कोई कर सकते हैं 
  • तन, मन, धन जिसको भी परमार्थ में लगाओगे उसी में आराम, बरकत, सुख-शान्ति मिलेगी, गुरु कई गुना करके वापिस करते हैं

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। सतगुरु की महिमा बताते हुए उज्जैन के पूरे सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने एनआरआई संगत में जुड़े चीन, हांगकांग, मलेशिया, अमेरिका, लंदन, ब्रिटेन, दुबई, कतर, ओमान, सिंगापुर, रूस, नेपाल आदि कई देशों में रहने वाले अपने भक्तों को ऑनलाइन वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से 25 जनवरी 2022 को उज्जैन आश्रम से दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सतसंग में बताया कि आदमी की इच्छा की तृप्ति कभी होती ही नहीं है। इच्छाएं अनंत होती हैं। इच्छा, मन कभी भरता ही नहीं है। कहा गया है- जब आवे संतोष धन, सब धन धूल समान। संतोष तो ऐसे आसानी से आता नहीं है कि सोच लो और संतोष आ जाए। संतोष तो तब आता है जब नाम की कमाई करोगे, सुमिरन, ध्यान, भजन करोगे तब ये काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ढ़ीले पड़ेंगे। सुमिरन ध्यान भजन में आप बराबर समय दो, बराबर नाम ध्वनि बोलते रहो। 

गुरु महाराज का मिशन जब पूरा हो जाएगा तो जो सुख-शांति खोजते हो वह आगे अपने आप मिलेगी 

गुरु महाराज का मिशन जब पूरा हो जाएगा तो जिस चीज को खोजते रहते हो, धन-दौलत, सुख, शान्ति, वह अपने आप मिल जाएगी। व्यवस्था सही हो जाएगी। जिन देशों में थोड़े प्रेमी लोग हो, आप मिलकर के उन देशों में रहने वाले लोगों को सुखी बनाने के लिए अपनी योजना बनाकर काम करने की कोशिश करो, आपसी राय मिलाकर के मानवता की सेवा का प्रचार-प्रसार करो। 

भाव भक्ति में कमी न होने पावे, चैनलों पर सतसंग देखते, बच्चों को दिखाते और उनको महापुरुषों का इतिहास सुनाते रहो 

भाव भक्ति बनी रहे इसके लिए बराबर सन्तमत की किताबों को पढ़ते रहो। चैनलों पर सतसंग को देखते-सुनते रहो, बच्चों को भी दिखाते रहो। बच्चों को महापुरुषों के इतिहास के बारे में बताते रहो। उनको महापुरुषों के किस्सा-कहानी सुनाते रहो। 

गुरु के अधूरे मिशन को जल्दी से पूरा करो, इसमे तन, मन, धन लगाओ तो जो सुख-शांति खोजते हो वह आगे अपने आप मिलेगी 

आप सब लोग सब काम नहीं कर सकते हो। कोई शरीर से सेवा ज्यादा कर सकता है, कोई मन लगाकर योजना बना देता है, मन लगाकर के अपने विचार के द्वारा काम को बढ़ा देता है। कोई धन खर्च करके काम को बढ़ाता है, गुरु के आदेश का पालन करता है। तो जितना भी आप कर सको, तन, मन, धन से गुरु महाराज के अधूरे मिशन को आप जल्दी से पूरा करो। गुरु महाराज जो काम छोड़ कर के गए वो काम अगर हो गया तो फिर आपको - जैसे कहा गया है चित आवे बरीआई, सुख-शांति धन-दौलत, जिस चीज को आप खोजते रहते हो वह अपने आप मिलेगी, अपने आप मिलेगी, व्यवस्था सही हो जाएगी। इसलिए जरूरत है कि आप लोग काम में लगो। अपनी व्यवस्था बना लो। आप लोग जिस तरह की सेवा कर सकते हो, काम कर सकते हो, वह काम आप करो। 

रचनात्मक कार्यों में धन खर्च करते रहो, उससे आपका और बढ़ेगा; दसवां अंश जब निकालते थे तो गुरु महाराज कई गुना करके वापस देते थे 

आप लोगों के यहां जो योजनाएं, रचनात्मक कार्य चल रहे हैं जैसे भोजन प्रसाद वितरण करने का या पानी शरबत पिलाने का या अन्य, इसको चलाते रहो। इससे आपको बरकत मिलेगी। जो धन खर्च होगा, उसमें बरकत मिलेगी। उसका कई गुना करके गुरु महाराज देते हैं। 


आप बहुत से लोगों को इस बात का अनुभव है इसीलिए पहले के समय में गुरु का दसवां अंश निकाल देते थे कि 90% जो बचे वो बरकत के रूप में दिखाई पड़े, जहां भी लगे वहां अच्छा दिखे। इसलिए पहले खर्च किया करते थे। बहुत से लोगों की अभी भी आदत है (परमार्थ में) खर्च करने की। तो खर्च करते रहो, उससे आपका धन और बढ़ेगा। 

जान-अनजान में बने बुरे कर्मों को काटने के लिये करो शरीर से सेवा तो होगा शरीर स्वस्थ 

और अगर शरीर से रोगी रहते हो, शरीर में कोई तकलीफ रहती है तो आप लोग शरीर से सेवा करना शुरू कर दो। जान-अनजान मे बने पाप, बुरे कर्म सेवा करने से कटेंगे। जब कटेंगे तो शरीर आपका स्वस्थ होगा। दवा किसमें काम करती है?  मौसम की बीमारी में या खाने-पीने की बदपरहेजी से असावधानी में जो रोग हो जाता है उसमें तो दवा फायदा करती है लेकिन जो कर्म रोग होता है उसमें दवा फायदा नहीं करती। मैं तो देख रहा हूं कि पहले जब लोग बुड्ढे होते थे तब लोगों में रोग आता था, गर्मी-ठंडी का असर ज्यादा होता था और अब तो छोटे-छोटे बच्चों, जवानों में भी बीमारियां आ गई। आपको समझने की जरूरत है शरीर से सेवा करने से कर्म कटेंगे और शरीर स्वस्थ होगा। 

मन को गुरु के आदेश के पालन में लगाओ तो इससे पवित्र होगा मन 

मन क्यों गंदा होता है? गंदा चिंतन क्यूँ करता है? गंदी सोच क्यूँ सोचता रहता है? जब मन खाली रहता है तब ये गंदा चिंतन, गंदी सोच सोचता है। तो मन को इधर लगाओ, अच्छे सोच में लगाओ, परमार्थ में लगाओ, गुरु के आदेश के पालन में मन को लगाओ। उधर का सोचो ही नहीं, इधर का ही सोचो। मन इधर लगा रहेगा तो मन पवित्र हो जाएगा।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ