जीवात्मा को नरक, चौरासी से छुटकारा दिलाकर अपने वतन सतलोक पहुँचाने के लिए गुरु करना जरूरी है : Baba Umakant Ji Maharaj

  • पानी पियो छान कर, गुरु करो जान कर

हमीरपुर( उ.प्र.)। इस जीवात्मा को इस मृत्युलोक में बार-बार आने, जन्मने-मरने के चक्कर यानी चौरासी से छुटकारा दिलाने का उपाय बताने वाले, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूरे सभी तरह से समर्थ गुरु की खोज करने, उन्हें मानने से पहले उनकी परीक्षा लेकर पूर्ण रूप से संतुष्ट होने की बात बताने वाले इस समय के सर्व समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 19 दिसंबर 2021 को हमीरपुर ( उ.प्र.) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि-

माँ के पेट में बच्चे को पूर्व जन्म का सब याद रहता है 

माँ के पेट में बच्चे को उम्मीद रहती है कि जब हम बाहर निकलेंगे, हमारा शरीर बन जाएगा तब हम समरथ गुरु की तलाश करेंगे। रास्ता ले करके उस रास्ते पर चलेंगे और प्रभु को प्राप्त कर लेंगे। प्रभु की झलक मां के पेट में बच्चे को मिलती रहती है तभी वो उसमे जिंदा रहता है। नहीं तो मां के पेट की गर्मी, मां के खाने-पीने वाली चीजों के लगने से उसको इतना दर्द, तकलीफ होती है कि बेचैन हो जाता है। अपने पूर्व जन्मों को जब देखता है कि पहले जन्म में कीड़ा थे, मकोड़ा, सांप, गोजर, छछूंदर थे। देखो सांप ने पकड़ लिया, न निगल रहा है, न छोड़ रहा है, दबा रहा है फ़िर ढीला कर रहा है, मैं चूँ चूँ चूँ कर रहा हूँ, मैं निगला जा रहा हूं तो देखते ही रूह कांप जाती है। नरकों में जब देखा मार पड रही है, चिल्ला रहे है, कोई सहारा नहीं है, ये देखो हाथ काट रहे फिर जोड़ दे रहे है फिर काट रहे, जला रहे है फिर अच्छे कर दे रहे है फिर जला रहे है, बहुत सजा दे रहे।

माँ के पेट में परमात्मा से वादा किया था बाहर निकल कर समरथ गुरु की खोज कर, रास्ता लेकर भजन करेंगे 

यानी तकलीफ़ बराबर रहती है। जब देखता था तब प्रार्थना करता था कि-

अब प्रभु कृपा करो यही भांति, सब तजि भजन करूं दिन राति।

है प्रभु मेरे ऊपर दया, कृपा, मेहरबानी करो। मुझको जल्दी से बाहर निकालो। मैं समरथ गुरु की तलाश करूंगा। जानकारी रहती है मां के पेट में। बाहर आने के बाद भूल जाता है कि जब समरथ गुरु मिलेंगे तब हमारा उद्धार होगा। गर्भ में यह जानकारी रहती है कि मनुष्य शरीर के अंदर ही ऐसा रास्ता है जिससे हमारा उद्धार, कल्याण हो सकता है तो उम्मीद माँ के पेट में रही। 

समरथ सन्त वो वादा याद दिलाते है 

जब सन्त आते हैं, याद दिलाते हैं कि तुम यहाँ के नहीं हो, ये तुम्हारा घर नहीं है। जिस घर में रहते हो उसी घर में बाप-दादा भी रहते थे। वह भी कहते-कहते चले गए कि यह घर मेरा, यह घर मेरा। यह घर उनका नहीं हुआ तो तुम्हारा कैसे होगा? तो जब याद दिलाते है कि-

तुम सतलोक के वासी हो, यहां आकर के फंस गए 

याद करो, चलो अपने देश को, पिता तुमको बुला रहे हैं। तो जैसे कोई लड़की अपने पिता के घर से चली जाए ससुराल में तो कुछ दिन के बाद भूल जाती है। जब पिता किसी को भेजता है कि जाओ लड़की को याद दिलाओ, बहुत दिन हो गया आ जाए मेरे पास। वो जब जाता, बताता है तब पिता याद आता है। तब वो अपनी गृहस्थी को सेट करके फिर पिता के घर की तरफ़ चल पड़ती है। 

जीवात्मा को नरक-चौरासी से छुटकारा दिलाने, अपने वतन सतलोक पहुँचाने के लिए गुरु करना जरूरी है 

ऐसे ही जीवात्मा जब मन को समझाती है की अरे तू तो मेरा साथ दे देता था, अब तू यहाँ पर क्यों  फंसा है? चल मेरे साथ। दोस्ती के नाते साथ दे देता है। नहीं तो जैसे कुंवारी सुरत करे व्यभिचारी यानी जब तक इसका (सुरत/ जीवात्मा) का कोई पति परमेश्वर नहीं बनेगा तब तक ये मन के साथ इसी व्यभिचार में, इंद्रियों के भोग में, देखने, सुनने, जिभ्या-नभ्या के भोग में फंसी पड़ी रहेगी। इसीलिए कहा गया कि गुरु करना जरूरी होता है। 

गुरु कैसा होना चाहिए? 

गुरु करे जानकर और पानी पिए छान कर।

जैसे समरथ गुरु होते हैं। जो तमाम लोगों को तारने वाले गुरु हुए उस तरह के गुरु को समरथ गुरु कहा जाता है। गुरु माने क्या होता है? 

'रू' है नाम प्रकाश का, 'गु' कहिये अंधकार। ताको करे विनाश जो, सोई गुरु करतार।।

इन बाहरी आंखों को बंद कर लोगे तो अंधेरा हो जाएगा और न बंद करो फिर भी थोड़े समय के बाद जब रात आएंगी तो अंधेरा हो जाएगा। इसको जो हटा दे, तिमिर (अंधकार) को जो हटा दे, ऊपर जहाँ अंधेरा (रात) होता ही नही, वहाँ पहुंचा दे, जब आंख बंद करो तो अंदर में रोशनी प्रगट कर दे वो सच्चा गुरु, समरथ गुरु हुआ करता है।

सन्त उमाकान्त जी के वचन : जब प्रभु की, गुरु की कृपा हो जाती हैं तब ये दुनिया की सारी चीजें आसान, सुलभ हो जाती हैं। भगवान को हमेशा हाजिर-नाजिर समझो, जो भी कर्म करते हो, वह देख रहा है। बुरा करोगे तो सजा मिल जाएगी। आत्मा को मुक्ति परमात्मा के पास पहुँच जाने पर मिलती है। आत्मा को मुक्ति समर्थ गुरु ही दिला सकते हैं। दशहरा का अर्थ दसों इंद्रियों पर विजय पा लेना है। जो भाग्य में नहीं है उसको लेने के लिए नेक काम करना पड़ता है।

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