गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। यह पासेराडेई परिवार का हिस्सा है। विश्व के विभिन्न देशों में यह पाई जाती है। यह लगभग 15 सेंटीमीटर के होती है। शहरों के मुकाबले गांवों में रहना इसे अधिक सुहाता है। इसका अधिकतम वजन 32 ग्राम तक होता है। यह कीड़े और अनाज खाकर अपना जीवनयापन करती है। इसके दिवस मनाने की बात करें तो इसकी शुरुआत भारत के नासिक में रहने वाले मोहम्मद दिलावर के प्रयत्नों से हुई।
दिलावर द्वारा गौरैया संरक्षण के लिए नेचर फॉर सोसाइटी नामक एक संस्था शुरू की गई थी। पहली बार विश्व गौरैया दिवस 2010 में मनाया गया था। पिछले 11 सालों से 20 मार्च को मनाया जाता है। और इस दिन जो लोग पर्यावरण एवं गौरैया संरक्षण के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हें गौरैया पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
महेश मिश्रा
करीब 20 साल पहले की बात है। हम ढेर सारी गौरैयों की झुंड एक साथ दाना चुगने के लिए इधर-उधर मडराती थी। और वह दृश्य देखने पर बहुत ही सुहाना लगता था। लेकिन उससे कहीं ज्यादा तो घने बादलों के नीचे जब वह एक साथ उड़ती थी और भी सुहाना लगता है। आपको बात दें कि पर उस तरह का नजारा अब देखने को नहीं मिलता है। सबसे खास बात यह है कि गौरैया एक घरेलू चिड़िया है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से था और आज भी है। सबसे अच्छी बात तो यह है जहाँ भी लोग घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं।
गौरैया की रंग, रूप, नर और मादा की कैसे करें पहचान?
गौरैया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होती है। 14 से 16 सेमी लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आस-पास रहना पसंद करती है। इसे हर तरह की जलवायु पसंद है। गांवों-कस्बों-शहरों और खेतों के आस-पास यह बहुतायत से पायी जाती है। जबकि मादा चिड़िया के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता। लोग इन्हें चिड़ा-चिड़िया भी कहते हैं। यह निहायत ही घरेलू किस्म का पक्षी है।
घर में गौरैया के रहने का धार्मिक महत्त्व
भारतीय पौराणिक मान्यताओं अनुसार यह चिड़िया जिस भी घर में या उसके आंगन में रहती है वहां सुख और शांति बनी रहती है। खुशियां उनके द्वार पर हमेशा खड़ी रहती है और वह घर दिनोंदिन तरक्की करता रहता है। इसके अलावा भी हिंदू धर्म में ऐसे और भी पक्षी हैं जिनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना गया है। पक्षियों को हिंदू धर्म में देवता और पितर माना गया है। कहते हैं जिस दिन आकाश से पक्षी लुप्त हो जाएंगे उस दिन धरती से मनुष्य भी लुप्त हो जाएगा। किसी भी पक्षी को मारना अपने पितरों को मारना माना गया है।
विलुप्त होने का कारण
चीं चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है और कहीं - कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।
लेकिन अब तो यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। पक्षी वैज्ञानिक हेमंत सिंह के अनुसार गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है।
आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, गौरैया की आबादी में क़रीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
क्यों मनाया जाता है विश्व गौरैया दिवस
विश्व गौरैया दिवस का इतिहास विश्व गौरैया दिवस, नेचर फॉरएवर सोसाइटी ऑफ इंडिया के साथ-साथ फ्रांस की इकोसेज एक्शन फाउंडेशन की शुरू की गई एक पहल है। सोसाइटी की शुरुआत फेमस पर्यावरणविद् मोहम्मद दिलावर ने की थी। उन्हें 2008 में टाइम मैगजीन ने "हीरोज ऑफ एनवायरमेंट" में शामिल किया गया था। साल 2010 में पहली बार 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। इसके बाद हर साल 20 मार्च को यह दिवस मनाया जाता है। जिससे लोग इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें।
सबसे खास बात यह है कि पक्षी वैज्ञानिक हेमंत सिंह के अनुसार, आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं।
पक्षी वैज्ञानिक के अनुसार, गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। उनका मानना है कि गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडों तथा बच्चों को खा जाते हैं।
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