- गुरुपूर्णिमा का दिन मानवता लाने का, मानवधर्म को स्थापित करने का दिन है- बाबा उमाकान्त जी
- हाथ जोड़कर विनय हमारी, सतयुग काबिल बनो नर-नारी
- देश दुनिया में आध्यात्मवाद की बेल को फैला रहे
वक़्त के पूरे सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने नजरें इनायत गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम के तीसरे व अंतिम दिन 13 जुलाई 2022 प्रातः काल को जयपुर में बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के पूजन के पश्चात भारी संख्या में अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, हॉन्गकॉन्ग आदि कई देशों से आये भक्तों पर नजरें इनायत करते हुए दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आदमी को मौत को हमेशा याद रखना चाहिए कि पता नहीं कब आ जाये। अच्छे काम को तुरंत करना चाहिए और मन में ख़राब भावना आए उसको टालना चाहिए क्योंकि मन बदल जाता है। बुरे कर्म की सज़ा भुगतना पड़ेगी। कर्मों की सज़ा से आज तक कोई बच नहीं पाया। जितने भी मनुष्य शरीर में आये, चाहे औतारी शक्तियां हो, ऋषि-मुनि हो, योगी-योगेश्वर हो, सबको कर्मों की सज़ा मिली। सन्त भी परोपकार में भक्तों के कर्म अपने ऊपर ले लेते हैं। कर्मों को भोगना ही पड़ता है, कर्मों का ये देश है।
भारत सन्तों का, धर्मपरायण देश है
भारत देश ऋषि-मुनियों, सन्तों-महात्माओं का, धर्मपरायण देश है। पहले तो केवल एक ही धर्म, मानव धर्म था लेकिन अब बहुत से धर्म, मत-मतान्तर हो गए। धर्म के नाम पर लोग मरने-मिटने को तैयार हैं। सबके अंदर उस प्रभु की अंश ये एक ही जीवात्मा है तो प्रभु से प्रेम करो। प्रभु से जिसको प्रेम हो जाता है तो वो सबके अंदर प्रभु को ही देखता है। आज गुरुपूर्णिमा का दिन सीख लेने, अपनी कमी निकालने, मानवता को लाने, मानवधर्म को स्थापित करने का दिन है।
प्रेमियों! गुरु के मिशन को पूरा करने का बनाओ आज संकल्प
महाराज जी ने सतसंग एवं नामदान देने के बाद भक्तों से आह्वान किया की आज गुरुपूर्णिमा के दिन आप संकल्प बनाओ कि गुरु के काम को, सतयुग लाने के अधूरे मिशन को पूरा करना है। सबको उसमें लगना है। आप जितने भी लोग हो आप हीरा हो, गुरु के रत्न हो। जो काम आप लोग कर सकते हो, वो दुनिया के लोग नहीं कर सकते, चाहे कितनी भी योग्यता हो या धनीमानी लोग हो। आपके अंदर जो जगी हुई जीवात्मा है, गुरु की दया वाली जीवात्मा बैठी हुई है, इस जीवात्मा के पावर को आप नहीं समझ पा रहे हो। जैसे आप कभी मुसीबत में पड़ जाते हो तो गुरु आपकी मदद, रक्षा कर देते हैं तो आपको विश्वास हो जाता है। ऐसे ही जब आप गुरु के काम में लगोगे तो दया का अनुभव करोगे।
हाथ जोड़कर विनय हमारी, सतयुग काबिल बनो नर-नारी
ऐसे ही सतयुग नहीं आ जायेगा और अगर आ जायेगा तो कलयुगी लोगों (गलत कामों में लिप्त) को अपने साथ लेता जायेगा। उनकी रगड़ाई करेगा, बेमौत लोग बहुत मरेंगे। इन लोगों को बचाने की ज़रूरत है क्योंकि अगर सतयुग आ जाये और कोई आनंद लेने वाला न रहे तो सतयुग लाने का क्या मतलब रहेगा। तो लोगों को सतयुग के लायक बनाओ। सतयुग में लोग शाकाहारी, सदाचारी, धर्मनिष्ठ, प्रभु के प्यारे होंगे, लोगों की नीयत दुरुस्त होगी, प्रकृति मदद करेगी, समय पर जाड़ा-गर्मी-बरसात होगी, थोड़ी सी लागत में ज्यादा फायदा होगा। तो आप लोग मुख्य रूप से लोगों को शाकाहारी, नशामुक्त बनाओ। बोलो लोगों से कि बाबा उमाकान्त जी महाराज ने आपके लिए सन्देश भेजा है की "हाथ जोड़कर विनय हमारी, सतयुग काबिल बनो नर-नारी"।
हिंदी महीनों के नाम का असली अर्थ
लोगों को सन्त की किताब जैसे रामचरितमानस को सही से समझ कर अमल करने की जरूरत है। हिंदी महीने आषाढ़ का मतलब होता है आशा लेकर बच्चे का जन्म होता है कि गर्भ से बाहर निकल कर पूरे समर्थ सन्त सतगुरु को खोजूंगा। जिस पर ध्यान दोगे वोही महसूस होगा। जैसे ठंड में ड्यूटी पर जाते समय ठंडी पर ध्यान दोगे तो ठंडी लगेगी और समय से पहुंचने पर ध्यान दोगे तो नहीं महसूस होगी। सावन यानी सा-वन यानी हम प्रभु के जैसे बन जाएं, उन्हीं को प्राप्त कर लें। क्वार यानी कुंवारापन, सतगुरु मिलेंगे तो सुरत का कुंवारापन खत्म करेंगे वरना काल चाहता है कि सुरत जीवात्मा हमारी भक्ति करे, हमारे अधिकार में रहे। पति के समान सतगुरु भी अपनी सुहागिन अपनायी हुई सुरत का हर तरह से ध्यान रखते हैं।
मासिक धर्म शुरू होते ही बच्ची की शादी की चिंता तैयारी शुरू कर दो। कुंवारापन खत्म होना चाहिए जैसे शादी की हुई लड़की का फिर शादी प्रस्ताव नहीं आता है। कार्तिक यानी काया के अंदर ताको। आकाश से घर्षण द्वारा हवा, उससे अग्नि, उससे जल, उससे पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। पत्थर में भी जान होती है, पृथ्वी पर रखा पत्थर बढ़ता है। बुढ़ापे में काम क्रोध लोभ खत्म होता है लेकिन मोह अंत तक रहता है। मोह सकल व्याधिन कर मूला। सूर्य से पुरुष में बीज की और चंद्रमा से महिला में रज की उत्पत्ति होती है। तत्वों की कमी से बच्चा पैदा नहीं हो पाता। प्रणाम वास्तव में प्रभु की अंश जीवात्मा को किया जाता है। मुर्दे को पुराने लोग प्रणाम करते हैं क्योंकि इस शरीर रूपी मिट्टी में मालिक की अंश जीवात्मा थी।
मन डगमग न हो, भक्ति में कमी न आए तो जैसी भक्ति वैसा लाभ
श्री गुर पद नख मनि गन जोती, सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती। यानी ऐसा गुरु हो जिसकी बताई युक्ति करते ही दिव्य दृष्टि खुल जाए। सतगुरु की महिमा बताने में लोगों ने कलम तोड़ दिया। यदि आपके पास एक बच्चा है तो उसको देखो जिसके एक भी नहीं है, दूसरी तरफ मत देखो। जिनके बच्चे नहीं होते वह भी तो संतोष करते हैं। यदि मनुष्य खाए और ठीक से लैट्रिन हो जाए तो रोग नहीं होता है। जूता मोजा उतारो पांव धो लो, पसीना साफ होने से रोग नहीं होते, ऐसे ही उस निज घर में जाने के लिए सारी गंदगी साफ होना जरूरी है। एक घंटा दिन में और एक घंटा रात में, 2 घंटे के लिए दुनिया से विरक्ति ले लो। कुछ करोगे तभी काम होगा। यदि चलोगे ही नहीं, आगे ही नहीं बढ़ोगे तो मदद कैसे होगी? जब चलोगे तो मदद हो जाएगी।
आज संकल्पना बनाओ की हमको रोज हाजिरी देनी है, अंतर के घाट पर बैठना है, ध्यान भजन सुमिरन करना है। सुमिरन में सब धनियों को खुश करना पड़ता है नहीं तो ये बाधा डालते हैं। दादा गुरु जी की सारी दया गुरु महाराज स्वामी जी में आ गई। रुद्राक्ष की माला पहनने से अटैक वगैरह में फायदा करती है। कई बार आत्महत्या की प्रवृत्ति वालों में प्रेत बाधा होती है, जयगुरुदेव नाम बोलने बुलवाने से मदद मिलती है। दीपक फल फूल सुगंधी वाली चीज से प्रेत अपना सुगंधि का भोजन ले लेते हैं फिर बाधा में नहीं डालते हैं। मन को समझाओ कि कल किसी ने देखा है? मन चंचल हो गया, इसे साधना में बच्चे की तरह मनाना पड़ता है।
ये भाग-भाग कर थक जाता है क्योंकि यह शरीर से ही काम लेता है, शरीर रुकने पर यह भी रुकता है। ध्यान में जब पुतलियां रुकने लगती हैं तब दिखता है। धीरे-धीरे मन की प्रैक्टिस उधर की होने लगेगी। जिसकी जैसी भक्ति होती है उसको वैसा लाभ मिलता है, बस मन नहीं डगमग हो, भक्ति में कमी न आए। ऐसा होने पर पूरा लाभ नहीं मिलता है। एक बार की सफाई से पुराना दाग नहीं जाता, बार-बार धुलाई करनी पड़ती है, ऐसे ही रोज साधना करनी पड़ती है। चेला प्रेमी शिष्य को गुरु से ज्यादा करना होता है। आप लोग हर वक्त खुशी हो या गम, उठते-बैठते, चलते-फिरते, लैट्रिन जाते, हर समय जयगुरुदेव बोलते रहो। भोजन करने के पहले जयगुरुदेव की नाम ध्वनि बोल करके भोजन ग्रहण करो।
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