- दुनिया और जीवात्मा दोनों का काम करने के लिए शरीर स्वस्थ होना जरूरी है
- किस समय क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए
जिस उद्देश्य के लिए ये अनमोल मनुष्य शरीर मिला उसकी प्राप्ति कराने वाले, जीते जी भगवान खुदा गोड के दर्शन कराने वाले, उसका मार्ग नामदान पूर्णतया निःशुल्क देने वाले, शरीर और आत्मा दोनों की हर तरह की जिम्मेदारी लेने वाले, काल, कर्म और माया के झकोलों से बचाने वाले, इस दुनिया में प्रगति और साथ ही आध्यात्मिक तरक्की का मार्ग प्रशस्त करने वाले, वक़्त के सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने तीन दिवसीय नज़रे इनायत गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम के दूसरे दिन 12 जुलाई 2022 सायं कालीन बेला में जयपुर में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बुजुर्गों के पास बैठना चाहिए। उनको बड़ा अनुभव होता है। बुजुर्गों ने ही शोध करके बताया चैते चना, बैशाखे बेल। चैत में चना और वैशाख में (पत्थर) बेल जिसकी पत्ती लोग शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, बहुत फायदा करता है, संग्रहणी तक का रोग खत्म कर देता है। जेठ में सैन, जेठ की धूप से बचना, आराम करना चाहिए। आषाढ में खेल खेलना चाहिए क्योंकि आषाढ में अग्नि कमजोर पड़ जाती है, उमस में भोजन ठीक से पच नहीं पाता है इसलिए शरीर को हरकत में लाना, चलना-फिरना, कसरत व्यायाम करना चाहिए जिससे शरीर में सक्रियता रहे, रक्त में रुकावट न आए। सावन में हरड़ फायदेमंद है। भादो में चिरायता जो पेट में बेकार में पैदा हुए अनुपयोगी, खराब कीड़ों को खत्म करता है।
अंग्रेजी दवाएं पेट के गुणों को खत्म कर देती हैं, उससे आदमी को कमजोरी आ जाती है
क्वार मास गुड़ खाओ नित। क्वार के महीने में गुड़ और कार्तिक में मूली सुबह खाने पर अमृत के समान है। सुबह मूली मूल है, दोपहर में मूली मूली, शाम को मूली सूली, शाम को नहीं खाना चाहिए। सुबह खीरा हीरा, दोपहर में खीरा खीरा, शाम को खीरा पीड़ा। खीरा शाम को नहीं खाना चाहिए, तकलीफ देगा। सुबह दही सही, दोपहर में दही दही, शाम को दही नहीं। ठंडे से शुरू करो और गर्म से खत्म करो। रात को भोजन के बाद एक गिलास गर्म दूध पी लिया, पेट सुबह साफ हो जाएगा। तासीर गर्म होने के बावजूद सुबह दही ठंडा होता है, अमृत रस होता है, दोपहर में दही का गुण मिलेगा, शाम को नुकसान करता है। सुबह खीरा बहुत सी बीमारियों को खत्म करता है, दोपहर में खीरे का गुण मिलेगा और शाम को नुकसान करता है, पेट में पड़ा रहता है, जल्दी हजम नहीं होता है, नुकसान, ठंड भी करता है, नहीं लेना चाहिए। सुबह मूली अमृत के समान है। कितनी भी गैस बनती हो मूली का एक टुकड़ा खा लो, पेट साफ, गैस खत्म। जैसे पेट में पड़ी हुई चीज को हजम, साफ करने की 200 गुना ताकत पपीते में होती है इसी तरह से मूली में भी है लेकिन मूली स्वयं हजम नहीं होती। मूली की डकार आती रहती है, पचता नहीं है जल्दी, लेकिन उसका पत्ता खा लो, तुरंत पचाव शुरू हो जाएगा। केला खाने के बाद इलायची दाना, दो दाना खाने से पचाव शुरू हो जाएगा।
चिकनी चीजें खाने से पेट में पचने में देर लगती हैं
उड़द की दाल, बड़ा और अरबी में थोड़ी हींग और अजवाइन क्रमशः डालने से इनकी गरिष्ठता कम हो जाती है। अरबी में चिकनाहट होती है। चिकनी चीजों के पचने में देर लगती है। कार्तिक मूली, अगहन तेल, पूसे करो दूध से मेल।
किस समय क्या नहीं खाना चाहिए
चैत में गुड़, वैशाख में तेल नुकसान, बहुत गर्म करता है। जेठ में पंथ यानी दोपहर में सफर करना, आषाढ़ में बेल (में दाने पड़ जाते हैं) नुकसान करता है। सावन में साग, हरी पत्ती वाला साग नुकसान करता है, उसमें कीड़े ज्यादा पड़ जाते हैं।
भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ। सतगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ।।
ठंडी में कीड़े-मकोड़े जमीन के अंदर गर्मी होने की वजह से छुप जाते हैं। बरसात का पानी जब अंदर जाता है तब उभरकर बाहर आ जाते हैं। तो मिट्टी खाते हैं। मिट्टी का असर नीचे मुलायम है। यह धरती ऊपर से तो कड़ी है नीचे से मुलायम होती चली जाती है। फिर पानी मिलने लगता है, एकदम पतला हो जाता है। तो कीड़े मुलायम चीज खाते, खोजते हैं तो पत्ते पर बैठ जाते हैं। फिर वही पत्ता ठीक से साफ नहीं हुआ, धुलाई नहीं हुई, और अगर आपने धुलाई भी किया तो जब उस पर बैठे तो उसका असर पत्ती पर आना ही आना है। जैसे-
एक समय ऐसा आएगा बड़े-बड़े वैज्ञानिक हाथ उठा देंगे, कहेंगे गोबर की खाद डालो कंपोस्ट खाद बनाओ
जैसे खेत में लगी फसल पर जब दवा छिड़कते हो तो पत्ते, छिलके से दाने पर असर जाता है क्योंकि दाना से छिल्का जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि दवाओं के छिड़कने से बीमारियां बढ़ती चली जा रही है। यह लोग नहीं सोच रहे हैं कि नीयत खराब हो रही तो बरकत कम होती जा रही है। सोचते हैं कि खाद दवा ज्यादा डालेंगे तो उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी। उपजाऊ शक्ति ज्यादा नहीं होती बल्कि खत्म होती है। एक समय ऐसा आएगा बड़े-बड़े वैज्ञानिक हाथ उठा देंगे और अभी से उठाने लग गए, कहते हैं गोबर की खाद डालो, कंपोस्ट खाद बनाओ नहीं तो धरती की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाएगी। मतलब यह है कि जितनी भी चीजें बनाई गई उनको समझना जरूरी है। न समझ पाओ तो अनजान में भी तकलीफ आदमी को हो जाती है।
इच्छाओं का दमन करो, सादा भोजन करो तो बीमारियों से बचे रहोगे
जहरीली चीज चाहे जान में खाओ या अनजान में, उसका असर तो आएगा ही। इसलिए जानना भी थोड़ा बहुत जरूरी होता है क्योंकि आदमी की इच्छाएं अनंत होती जा रही हैं। एक दिन में चटनी मिली तो दूसरे दिन अचार भी होना चाहिए। एक दिन एक सब्जी मिली तो दूसरे दिन कहता है कि एक सूखी, एक रसेदार और एक मीडियम सब्जी बन जाए। आदमी की इच्छाएं बढ़ती चली जा रही हैं। या तो इच्छाओं का दमन करो। बस इतना ही सोचो, हम खाने के लिए नहीं, जीने के लिए पैदा हुए हैं। हमको इस शरीर से कुछ काम करना है। यह सोचोगे तब तो सादा भोजन, जो नुकसान न करे, वह खाओगे। अगर इच्छाएं बढ़ती जाएगी, पेट में ऐसी चीजें जाएंगी तो फिर तो आपको नुकसान करेंगी, तकलीफ देंगी, बीमारियां लाएंगी ही लाएंगी।
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