सम्पादकीय : ज़िन्दगी के मेला में एक दिन ऐसा भी आता है...


जगदीश सिंह 

सोचा ही नहीं था ज़िन्दगी में ऐसे भी फसाने होंगे।

रोना भी जरुरी होगा आंसू भी छिपाने होंगे।।

ज़िन्दगी के मेला में एक दिन ऐसा भी आता है कि सब कुछ रह कर भी आदमी अकेला हो जाता। गजब का विधान बना दिये है बिधाता! प्रारब्ध के परिकल्पना से परिष्कृत जीवन की सच्चाई को जान परख कर भी इन्सान प्रकृति के सम्विधान से निशेचित हर सांस को स्वार्थ के सानिध्य में पुष्पित पल्लवित परिकल्पित कर अभिमान के साथ झूठे स्वाभिमान की तिलस्मी दुनियां में अकड़ कर चलता है। वक्त का करिश्मा देखिए आखरी सफर के बीरान रास्ते में तन्हा ही आग की लपटों मे मतलबी इन्सानों के सामने तड़प तड़प कर जलता है। न कोई साथी न हम दर्द खाक में मिलाकर सभी ने पूरा कर दिया फर्ज! राम नाम सत्य की उठती स्वर लहरी मौत जब प्रहरी बनकर आती है तब लोगों के जीह्वा से प्रस्फुटित होकर मन के सकुचित गली से होते हुए बाहर निकलती है। जब तक आराध्य के लिए वैराग्य का समय था तब तक धनाढ्य बनकर शोहरत की तमन्ना मृग तृष्णा सरीखे हर के उपर नाच रही थी।

कब जीवन की किताब का आखरी पन्ना आ गया पता ही नहीं चला! चली चला के बेला में जब आदमी अकेला होकर अपने कर्मों का फल मायाबी संसार में छोड़कर सबसे मुंह मोड़कर  तन्हाई की डोली में सवार प्रकृति की बजती शहनाईयों के सानिध्य मे दूर देश के लिए प्रस्थान कर जाता है तब इस भू लोक में यम लोक जाने के बाद उसके कर्मों की चर्चा शुरु होती है!किसी के कर्मों की चर्चा पर आस्था रोती किसी के कर्मों पर समाज थू थू करता है और उसी के आवरण में उस व्यक्ति से सम्बन्धित परिवार समाज में प्रतिस्थापित होता है। कहा भी गया है कर्म प्रधान विश्व रचित राखा! मगरूरियत की चपेट में आकर जीवन की अनमोल धरोहर इन्सानियत को जिसने भी दरकीनार‌ किया उसके साथ कायनात भी नहीं रहती!

वह उनके कर्मों का हिसाब‌कर आखरी सफर में सजा सुना देती है। बदलता परिवेश जिस विकृति के साथ अपनी पहचान बना रहा है वह मानव समाज के लिए अति घातक बनता जा रहा है। प्रकृति के सुरक्षित पर्यावरण में चहकने वाला पपिहा के तरह चाहत के एक एक बूंद पानी के लिए तड़पता जा रहा है!अहम के किरदार में खुद को समझदार साबित करने  के लिए फिरती इन्सान अपनी पहचान जिस मुकाम तक हासिल करता है उसका खामियाजा भी खुद ही भुगतता है। कल तक चाइना का चालबाज राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुनियां में दहशत का पर्याय बना हुआ था आज खुद उसी दहशत का सिकार‌ होकर सजा भुगत रहा‌ है। लाखों लाख लोगों को करोना वायरस का शिकार बनाने वाला धोखेबाज शी जिनपिंग की ज़िन्दगी अपने किए गए कर्मों की मकड़जाल जाल में उलझ गई?खत्म हो गई दहशत की कहानी?

इन्सानियत को कुचलकर सुख समृद्धि की चाहत के साथ बादशाहत कायम रखना आसान नहीं!उपर वाले के निजाम में सबके लिए बराबर का इन्तजाम है। धरणी धरा पर मानव हो या अप्सरा कर्म फल सबको भुगतना है।स्वार्थ के समर्पण में अपनों के लिए सर्वस्व अर्पण करने का मुगालता लिए मानव समाज अपने मूल को ही भूल जाता है। नश्वर शरीर को ही महत्व देकर स्थाईत्व में बदल देता है।जब तक ज्ञान होता है तब तक तो जीवन का अवसान करीब आ जाता है। समय रहते जिसने भी समाज में सत्कर्मों का सानिध्य लिए इन्सानियत की राह पर चलने के कृत संकल्पित हो गया उसकी चर्चा सम्बृध समाज में उदाहरण बनकर आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करती है। खुद को संवारने के साथ ही प्रकृति की परोपकारी ब्यवस्था में सहयोगी बने।आप का भी भला होगा समाज भी सुरक्षित रहेगा।

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