- बाबा उमाकान्त जी ने बताई सपूत की पहचान
उज्जैन (म.प्र.)। संकट के समय में जब कोई मदद करने वाला न हो तब जिस नाम को बोलकर कोई भी शाकाहारी सदाचारी नशामुक्त व्यक्ति बोल कर मदद ले सकता वो वर्णात्मक नाम बताने वाले, आत्मा का कल्याण उद्धार करने वाले आदि पांच नाम भी बताने वाले, परिवार को तोड़ने वाले शराब जैसी बुराई के सम्पूर्ण उन्मूलन में लगे, इतिहास से सही शिक्षा सिखाने वाले, प्रभु पर खोया विश्वास वापस दिलाने वाले, दिन-रात अपने शरीर खाने-पीने सोने की परवाह किया बिना जीवों की भलाई में, जीवों को चेताने में लगे, बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 19 सितम्बर 2022 प्रातः अमृतसर (पंजाब) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सब कुछ यहीं पर है।
सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाही।
कर्म जो नहीं करता है, उसको नहीं मिलता है, बाकी सब कुछ यही मिलता है। अगर तरीका मालूम हो जाए रहने का तो यही गृहस्थ आश्रम स्वर्ग जैसा है और तरीका नहीं मालूम हो पाया तो यही नरक जैसा हो जाता है। घर-घर में देखो लड़ाई झगड़ा, वैमनस्यता, रोग, रुपया-पैसा बहुत कमाते हैं लेकिन बरकत नहीं मिलती है, हर कोई तो परेशान है। कहा है-
नानक दुखिया सब संसार, सुखी वही जो नाम अधार।
नाम एक ऐसा है जो सुख शांति मुक्ति मोक्ष सब दिलाता है। लेकिन नाम को लोगों ने छोड़ दिया। नाम जपन क्यों छोड़ दिया? नाम को याद करना, जानकारी करना लोगों ने छोड़ दिया। नाम है क्या? वह पंच नाम कौनसे हैं जिसके बारे में संतों ने कहा? उसको जानने की लोगों ने कोशिश नहीं किया और जानते हुए भी उसकी कमाई नहीं किया। जो सूत्र, सुख-शांति का आधार है, उसको लोगों ने छोड़ दिया। आये हुए सभी सन्त ने इन्हीं आदि नामों को बताया। कहा है-
कोटि नाम संसार में ताते मुक्ति न होय। आदि नाम जो गुप्त जपे बिरला समझे कोई।।
आदि नाम को पकड़ें, नाम का सहारा लें, शब्द रूपी नाम की डोर को अगर पकड़ लिया जाए तो अभी यह आत्मा शब्द की डोर को पकड़ करके प्रभु के पास पहुंच जाए जहाँ दुःख नाम की कोई चीज ही नहीं है।
सपूत कौन होता है?
महाराज जी ने 29 मई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि गरीबी में भक्ति करें ताकर नाम सपूत। भक्ति होती है गरीबी में। गरीबी में जो भक्ति करता है सपूत हो जाता है। जो आरामतलब होकर भक्ति भजन करेगा वो लीक पर चल रहा है। लीक छाड़ तीनों चले, शायर सिंह सपूत। जो त्याग करता है, जिसके पास नहीं है वह तो त्यागी है ही लेकिन जिसके पास है वह त्याग करता है तब त्यागी कहलाता है, तब उसका लाभ, फल उसको मिलता है। गुरु महाराज को गरीबी का खूब अनुभव हुआ। गुरु महाराज जब दादा गुरु के पास आए और वहां पर साधना करने लगे, रहने लगे तो कैसे देखो गुरु हर चीज को बताते, खाने-पीने, रहने का तौर-तरीका किस तरह से सिखाते हैं। उस समय तो आज की तरह से 4 तरह की सब्जी रहती ही नहीं थी।
इस तरह का मेवा मिष्ठान मिठाइयां तरह-तरह के चाट-चपाट बनता ही नहीं था। बहुत कुछ होता था शादी ब्याह में तो एक-आध मिठाई, पूड़ी, पूआ बन जाता था। तो त्याग का जीवन तो वैसे भी था। नमक के ऊपर रोटी रखकर खा लेते थे। जो लोग थोड़ा और अच्छा खाते, उस पर मक्खन या घी या तेल रखकर खा लेते थे। तो उसमें भी बताना सिखाना पड़ता है। जैसे बच्चे को खाने के लिए उठने बैठने के लिए सिखाया बताया जाता है ऐसे ही गुरु बताते थे। यह परंपरा रही है। जैसे आप लोगों को बहुत चीज बताई, याद कराई जाती है। तो एक बार गुरु महाराज की धोती गंदी हो गई थी तो दादा गुरु ने कहा इतनी गंदी धोती पहने हुए हो।
धोता नहीं है? कुछ नहीं बोले। हाथ जोड़े खड़े रहे। अरे, धोती क्यों नहीं धोया बोल! बोले एक ही है। एक ही धोती है। अगर कोई बड़ा कपड़ा भी होता लपेटने के लिए तो धोती को धो लिए होते, वह भी नहीं था। एक ही धोती थी। दादा गुरु ने कहा जब एक ही है तो बोले आधी धोती धो ले और सुखवा ले और फिर उसको पहन करके और फिर दूसरी आधी को धो ले। गुरु महाराज को तो पूरा अनुभव था हर चीज का।
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