यदि त्रिदेव, उनकी माता आद्या महाशक्ति आदि का दर्शन नहीं हो रहा तो ऐसे समरथ गुरु को खोजो जो करवा दें

  • जयगुरुदेव नाम से क्या क्या फायदे होते हैं
  • निस्वार्थ भाव की सेवा से कर्म कटते है

उज्जैन (म. प्र.)। शरीर से जान-अनजान में बने पापों को आसानी से सेवा के द्वारा कटवा देने वाले, इस कलयुग में प्रभु के नाम जयगुरुदेव का प्रचार करने वाले लेकिन संकट में जयगुरुदेव बोलने पर स्वयं मदद के लिए आने वाले, दुनिया की किसी भी और सभी तरह की तकलीफों में आराम दिलवाने वाले, आत्मा का कल्याण भी करने वाले, आध्यात्मिक साधना के द्वारा अंतर में ऊपरी दैवीय लोकों और देवी-देवताओं को दिखलाने वाले, शिव नेत्र खुलवाने वाले, जीवात्मा को मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का शर्तिया रास्ता नामदान देने के एकमात्र अधिकारी जिसको वो फ्री में लुटाने में लगे हैं, जिनकी दया दृष्टि की महिमा ग्रंथों में लिखी है और लोग रोज पढ़ने रटने के बाद भी समझ नहीं पा रहे हैं ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 9 अगस्त 2022 प्रातः काल बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सेवा से कर्म कटते हैं तो दिन-रात सेवा करते थे।

निस्वार्थ भाव की सेवा से कर्म कटते है

जो गुरु कहे करो तुम सोई, मन के कहे करो मत कोई। जो गुरु जी ने कह दिया कि गौशाला में सेवा करो, जानवरों की सेवा देखरेख करो, या अन्य जो भी सेवा के लिए कहें। यानी समझो लगन के साथ, विश्वास के साथ गुरु के आदेश का पालन करना चाहिए। उससे क्या होगा? निस्वार्थ भाव से जब सेवा करोगे तो उससे कर्म कटेंगे, निर्मलता ज्ञान आएगा, गुरु की, प्रभु की, अपने आप की पहचान होगी कि मैं कौन हूं। प्रेमियों! जिस काम के लिए यह मनुष्य शरीर मिला, वह काम पूरा हो जाएगा फिर लौट-लौट चौरासी (लाख योनियों) में नहीं आना पड़ेगा।

जयगुरुदेव नाम से क्या क्या फायदे होते हैं

महाराज जी ने धनतेरस के अवसर पर 12 नवंबर 2020 दोपहर में उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि जयगुरुदेव नाम बोलने से बहुत फायदा होता है। जयगुरुदेव नाम की ध्वनि जिस घर में बराबर सुबह शाम 2 घंटा होती है वहां बीमारियों में राहत, भूत प्रेत भी अपनी छाया प्रकोप कम कर देते हैं राहत मिल जाती है, धन में भी बरकत दिखाई देती, बच्चे भी जब बोलते हैं तो बिगड़े हुए बच्चे भी सुधरने लगते हैं ,औरतें आदमी सब सुधरने लगते हैं। तो यह सब (भौतिक, संसारी) फायदा जयगुरुदेव नाम से भी होता है। लेकिन जिन पांच नामों से आत्मा का कल्याण, जन्म मरण से छुटकारा मिलेगा, वो ध्वनयात्मक नाम भी आपको बताऊंगा, नामदान दूंगा लेकिन उससे पहले आपसे अपनी बुराई छोड़ने का संकल्प बनवाऊंगा।

किस तरह के गुरु की खोज करनी चाहिए

महाराज जी ने 12 नवंबर 2020 दोपहर में उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि गुरु भी बहुत तरह के होते हैं। जिसको जहां तक की जानकारी होती है वह वहां तक का रास्ता बताता है। अब कोई गुरु मिल गया तो कुछ न कुछ तो बताएगा ही। अब उससे अगर आपको कुछ दिखाई सुनाई नहीं पड़ रहा, विष्णुजी लक्ष्मीजी गणेशजी शिवजी आदि, इनके पिता माता ईश्वर आद्या महाशक्ति नहीं दिखाई पड़ रहे तो आप दूसरे गुरु को खोजो। ऐसा गुरु जो यह कहता हो कि मैं आपको दिखाऊंगा, उन तक पहुँचाउंगा, उनकी आवाज सुनाऊंगा, उन से परे भी ले जाऊंगा, जिनको सन्त सतगुरु कहा गया, उन पर आपको विश्वास करना चाहिए। जैसे हमारे गुरु महाराज इस चीज को कहते थे कि मैं तुमको ले चलूंगा, दिखाऊंगा, वो अगम अटारी, वहां की शोभा न्यारी, सुंदरता, वहां का शीश महल दिखाऊंगा, वहां की खुशबू दिलाऊंगा और आपने विश्वास किया। और आप उनके बताये रास्ते पर चलते हो। कुछ लोगों ने पक्का विश्वास किया। विश्वास जब डगमगता है तब दया नहीं मिल पाती है। दृढ़ता मजबूती विश्वास के साथ जो करता है उसके लिए वो फलदाई हो जाता है, वही गुरु भक्त हो जाता है। जो उनके आदेश का पालन करता है उसी को गुरु भक्त कहते हैं।

नदियों में स्नान करने से मुक्ति मोक्ष नहीं होता है

महाराज जी ने 2 जनवरी 2018 सायं काल उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि नदी-नाले में, गंगा यमुना कृष्णा कावेरी नदियों में नहाने से मुक्ति मोक्ष नहीं मिलता है। कभी किसी को नहीं मिला। समझ लो मगरमच्छ कछुआ मछली नदी में ही रहते हैं लेकिन किसी के पार होने की कोई खबर लिखा पढ़ी वर्णन में है? कुछ नहीं। लेकिन (पहले साफ पानी में घुली जड़ी-बूटियों की वजह से) शरीर रोग मुक्त होता था और स्नान के बाद महात्माओं के सन्तों के स्थान पर लोग जाते थे, सतसंग सुनते समझते थे, उनके दर्शन करते थे। दर्शन करने से ही 15 दिनों में जान-अनजान में बने कर्म कटते नष्ट होते थे। कहा गया है- 

तेरी नजर में कोई करामात है।

हर समय होती अमृत की बरसात है।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं।

जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।

सन्तों की आंखों में आंखें डाल कर देखने में, उनसे दया मांगने में यानी जब दया कर दें तो दृष्टि पड़ते ही जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। तो दीन भाव से लोग जाते उनके सामने पेश होते थे की जान-अनजान में कोई कर्म बन गया हो तो उसके लिए क्षमा कर दीजिए। कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो आदमी जान करके स्वार्थ में, इंद्रियों के रस लेने के लिए करता है और कुछ अनजान में भी बन जाते हैं तो लोग माफी मांगते थे और वह माफ होता रहता था। कैसे रहा जाए, किस तरह से विचार व्यवहार किया जाए, यह भी वह सिखाते थे। कोई गलती मान लो जान करके बन गई तो अब उसको मत करना, यह भी समझाते थे। उसका उपाय भी कोई पूछता था तो बता देते थे। तो उससे क्या होता था? गृहस्थ आश्रम बड़ा सुख में बीतता था।

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