सन्त उमाकान्त जी महाराज ने कृष्ण-अर्जुन के प्रसंग से समझाया कि केवल सतगुरु ही माया से बचा सकते हैं क्योंकि माया सिर्फ सतगुरु से डरती है

  • गृहस्थी में लड़ाई झगड़े का मुख्य कारण और उपाय
  • महाराज जी ने बताया अपराधीकरण के कारण और शुरुआत का स्थान

उज्जैन (म.प्र.) । जिनके सामने काल कर्म माया आदि किसी की भी कुछ भी नहीं चलती, जो लेख पर मेख मारने की शक्ति रखते हैं, जो प्रारब्ध में न होने पर भी मनचाही चीज दे सकते हैं और आजकल तो अपने प्रेमियों को नसीब से ज्यादा रूटीन में दिए चले जा रहे हैं लेकिन कभी भी दिखावा नहीं करते, गिनाते नहीं है, ऐसे त्रिकालदर्शी, दयालु, इस समय के समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि माया केवल सतगुरु से डरती है। उनके सामने काल माया का कुछ नहीं चलता है। नहीं तो अच्छों-अच्छों को माया ने पटक डाला। माया का बड़ा पसारा है। आज से नहीं, पिछले युगों से ही माया लोगों को प्रभावित कर रखी है। कृष्ण भगवान अर्जुन को उपदेश कर रहे थे। बोले अर्जुन! माया का बड़ा जोर है। हमारी माया बड़ी प्रबल है, अच्छे-अच्छे को पटक देगी। उसके पटकने के बड़े दांव, हथकंडे हैं। तब पूछा प्रभु! भक्तों के ऊपर भी माया का जोर? बोले हां, जो भी काल के देश में जन्म लिए हैं, सब के ऊपर माया का जोर है। प्रभु! आपके रहते हुए माया का प्रभाव पड़ जाए। कहे पड़ सकता है। पूछे प्रभु! आप बचाओगे नहीं? तो कहा तुम हमें ही भूल जाओगे। अरे प्रभु! आपने कैसी बात कह दिया। 

जमीन आसमान में लग जाए ,आसमान नीचे उतर कर के आ जाए, सूरज पूरब से पश्चिम की तरफ चले लग जाए लेकिन हम आपको भूल जाए, यह मुमकिन नहीं है। बोले अच्छा। कुछ दिन बीता। एक दिन कृष्ण ने कहा, चलो अर्जुन बैठो रथ पर, घूम आवे। बैठे, घूमते-घूमते जंगल में गए। वहां पर मेला (पर्व ) लगा था, लोग स्नान कर रहे थे। ले गए रथ, खड़ा कर दिया, रथ से उतर गए और बोले अर्जुन पर्व लगा है तो स्नान कर लिया जाए। बोले हां। अच्छा पहले तुम स्नान करो, हम खड़े हैं। अर्जुन स्नान करने गए, डुबकी लगाई। निकले तो देखे ऊपर न मेला न लोग न रथ न कृष्ण। कहां चले गए सब? खोजने लगे जंगल में। कोई नहीं मिला। जंगल के बाहर निकलने में रात हो गई। थोड़ी दूर गए तो एक गांव में महाभारत की कथा हो रही थी। सुना तो अर्जुन बोल पड़े, हां मैं अर्जुन हूं, मैंने ही मार गिराया। झूठ बोलना उस समय पाप मानते थे। बोले यह तो झूठा आ गया। इसने बैठ कर जगह को अपवित्र कर दिया। हमारी नजर एक झूठे के ऊपर पड़ गई। अब भी झूठे को लोग पसंद नहीं करते हैं।

आजकल गंदे खान-पान, विचार-भावनाओं माहौल की वजह से दिल दिमाग, शरीर, बुद्धि का अपराधीकरण बहुत बढ़ गया, कहाँ से शुरू हुआ

माया का जोर ऊपर से चलता है। ऊपर से ही भ्रष्टाचार, अपराध की शुरुआत होती है। सबसे ऊपर के लोग कौन माने जाते हैं ? राजनितिक लोग, नेताजी लोग। देखो राजनीति में कितना अपराधीकरण हो गया। शासन, प्रशासन, व्यापार मंडल लगभग सब जगह अपराधीकरण। साफ़ बोलो तो आपके ही उपर हमला कर देंगे। सन्तों ने बिना डरे सच बात ही बोली है। तो झूठ बराबर याद नहीं रहता है। दो घंटे बाद बात दुबारा पूछोगे तो कुछ न कुछ फर्क हो जाएगा। दो महीने बाद झूठ सब भूल जाएगा, केवल सही बात याद रहेगी। कहा गया है कहीं भागे मर्द तो कहीं मारे मर्द, मौका पड़े तो निकल लो, जान बचा लो, मरदागनी न दिखाओ। गोस्वामी जी महाराज ने खल को, दुष्ट को सब को प्रणाम किया कि सबको वंदना करता हूं। तो मौका देख कर के बोले, मैं वह अर्जुन नहीं, मेरा नाम अर्जुन है। तो लोगों ने कहा ऐसा बोलो। महाभारत की कथा खत्म होने पर सब लोग चले गये। अब बैठे रहे कि कहां जाएं? घर वाले ने पूछा आप कौन? मैं परदेशी। कहां जाओगे ? पता नहीं, घर भूल गए। बोला भोजन आराम करो। जो पौधा जल्दी विकसित होने, जल्दी फल देने वाला होता है उसके पत्ते चिकने और बड़े रहते हैं। तो सुबह उठे तो गृहस्थी के काम में हाथ बंटाने लगे। झाड़ू लगाना, खिलाना, गोबर फेंकना आदि। तंदुरुस्त सुंदर सुडौल शरीर भी था। सेवा से ही दिल को जीता जा सकता है। कहते हैं चाम (चमड़ी) प्यारा नहीं है, काम प्यारा है। मेहनत का फल मीठा होता है। मेहनती का ही नाम होता है। मेहनत किये तो दिल जीत लिया। लोग खुश हुए। उस गांव के धनी मुखिया का संकल्प कि हष्ट पुष्ट तंदुरुस्त सुंदर लड़के से अपनी कन्या की शादी करेंगे। आज की तरह से धन ही पैमाना नहीं था।

गृहस्थी में लड़ाई झगड़े का मुख्य कारण और उपाय

आजकल बढ़ते झगड़े का कारण शादी का पैमाना आधुनिकता में बदल गया। और जब से विदेशियों का देश में और (यहां वालों का) विदेश में आना-जाना ज्यादा शुरू हुआ तब से विदेश की संस्कृति, रीति-रिवाज को ज्यादा लोग पकड़ने लग गए और यही गृहस्थाश्रम स्वर्ग से अब नरक बनता जा रहा है, फांसियां लग रही, जल रही। तो शादी के योग्य होने पर बच्चे-बच्चियों का ब्याह समय से देख कर के आप कर दो। बच्चे-बच्चियों आप भी बुजुर्गों के कहने में ही शादी करो क्योंकि उनको जीवन का ज्यादा अनुभव होता है, आप बहकावे में, दिखावे में न पड़ो तो ज्यादा खुशहाल रहोगे। कल ही एक आई, बोली लड़की की सास बहुत परेशान करती है। तो उसे बता दिया कि तुम्हारी वजह से परेशान करती है। क्यों ज्यादा अपनी लड़की को शादी के बाद लिफ्ट देते हो? क्यों बातचीत करते रहते हो? उसको अपनी लड़की क्यों मानते हो जब कन्यादान कर दिया, दान में दे दिया तो? पराई हो गई, दूसरे की हो गई, खुद ढाल लेगी, सेट कर लेगी।

कैसे अर्जुन को पहचान कराई

तो मुखिया ने शादी कर दिया। अब अर्जुन रहने लगे, कई बच्चे हो गए। कुछ दिन बाद औरत ने कहा पर्व आ रहा है, नदी में स्नान करेंगे, मेला घूमेंगे। बोले तैयारी करो। तो चल पड़े। नदी में स्नान करने के लिए घुसे, डुबकी लगाया और फिर निकले तो देखा न मेला है न बैलगाड़ी है न बच्चे हैं न औरत। कृष्ण रथ के पास खड़े मुस्कुरा रहे हैं। ये नदी से निकले, हाय मेरी बैलगाड़ी, बीवी, बच्चे कहां चले गए? कृष्ण कहे अर्जुन! अरे तुम हमको भूल गए, मैं कृष्ण हूं। मैं तुम्हारे साथी हूं। देखो मैं रथ लिए हुये तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। तुम कहां जा रहे हो? हाय मेरी बीवी, बच्चे, बैलगाड़ी कहां चले गए? कृष्ण ने एक थप्पड़ मारा, माया का पर्दा हटा तब चरणों पर गिर पड़े। बोले आप बिल्कुल सही कह रहे थे। माया कब किसको भरमादे, इस काल के देश में कुछ नहीं कहा जा सकता है। अब हमको ज्ञान हो गया। तो माया का जोर कहां होता है? आदमी के अंग-अंग पर रहता है। बहुरंगी माया जिसे कहा गया। जड़ माया धन को और चेतन माया स्त्रियों को कहते हैं। इन्हीं दोनों का जोर पड़ता है। अच्छे-अच्छे साधक, सतसंगी, सेवादार भी माया, रुपया पैसा, पद के चक्कर में आ जाते हैं, अपना खानपान गलत करके बुद्धि भ्रष्ट कर लेते हैं, अपने शरीर से अंगों से अपराध करने लग जाते हैं। सबसे ज्यादा असर खान-पान का आता है। इसलिए बचो और हमेशा समरथ गुरु की शरण में रहो, उनके आदेश में ही रहो।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ