सतसंग की बातें इस दुनिया के साथ-साथ साधना में भी मदद करती है- बाबा उमाकान्त जी महाराज

  • कहते हैं भगवान खुश होने पर दीन गरीबी देते हैं क्योंकि भक्ति मुफलिसी में ही होती है
  • रोग तकलीफ अपमान में प्रभु याद आते हैं और दूर होते ही प्रभु को भूल जाते हो

उज्जैन (म.प्र.) । खुश होकर ऐसी दात देने वाले जिससे प्रभु याद आवे वो सबसे बड़े दाता, साधना में दया कर जीवात्मा का शब्द से मिलान करवाने वाले, अपने साथ जीवात्मा को उपरी लोकों में सैर करवाने वाले, यदि कोई जीवात्मा उपरी लोकों में फंस गयी तो उस पर दया करके उसे मनुष्य शरीर दिलाकर नाम दान देकर निज धाम सतलोक ले चलने वाले, सन्तमत की बारीकियां और बुनियाद समझाने वाले, मन को मोड़ने का सरल उपाय बताने वाले, सतसंग सुना-सुना कर मन को साफ़ करा कर साधना में लगाने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 अक्टूबर 2022 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि भगवान जब खुश होते हैं तो दीन गरीबी (मुफलिसी) देते हैं। भक्ति, गरीबी में ही होती है। अपमान, रोग, तकलीफ में प्रभु याद आते हैं। और जैसे ही दूर हुआ बस तुरंत प्रभु को भूल जाते हैं। अब खाना, टट्टी मैदान जाना, नहाना, बच्चों को नहीं भूलते हो लेकिन जिसने आपकी तकलीफ बीमारी मानसिक टेंशन को खत्म कर दिया उसी को भूल जाते हैं। तो यह क्या है? यह भूल और भ्रम का, काल और माया का देश है। काल सब को खा जाता है लेकिन इस चीज को भूले हुए हैं कि एक दिन हमको भी खायेगा, हमारी जीवन लीला खत्म हो जाएगी, हमारा सब कुछ चला जाएगा।

संभाल करने वाले को न मानने पर क्या होता है

महाराज जी ने 22 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि भजन में जब बैठते हैं, अगर गुरु की दया हो जाए तो जीवात्मा शब्द को पकड़ लेती है और एकदम से निकलती है। समरथ गुरु को किसी भी (उपरी) लोक में जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है। वह बहुत बार आते-जाते हैं। उन्हें सब मालूम रहता है। तो उनसे अगर प्रेम हो गया, वह अगर आपकी मदद कर दिए, आप पर दया कर दिया तो यह जितने भी (अंतर साधना में) लोक हैं, उनका सफर करने में देर नहीं लगती है। और अगर उनको भूल गए या उनको ठीक से नहीं याद कर पाए और अगर मान लो कि स्वयं आगे बढ़ने की कोशिश किया, अपनी तरफ से आगे बढ़े तो वहां कुछ समय तक रुकना, ठहरना पड़ जाता है। और मान लो गुरु (शरीर से इस दुनिया से) चले गए, गुरु ने जिनको सौंपा कि अब संभाल यह करते रहेंगे, इनके पास आते-जाते रहना, इनकी बातों को पकड़ना, अमल करना, उनको भूल गए, उनका साथ छूट गया तो वहीं पड़ा रहना जाना पड़ता है, ऊपरी लोकों में, फिर जब दूसरे सन्त आते हैं तो दया करके नीचे लाते, जन्म दिलाते हैं तो समय लग जाता है। एक जन्म उसमें चला जाता है। इसलिए प्रेमियों! कोशिश करो कि अब दुबारा इस दु:ख के संसार में, इस मृत्युलोक में न आना पड़े। गुरु महाराज जैसे समरथ गुरु आपको मिले हैं, उनकी दया ले लो, उनको बराबर याद करते रहो, जो उन्होंने अपने, मालिक की दया का घाट बताया, उस घाट पर आप बैठते रहो जिससे आप निकल चलो, कोई रुकावट न आवे नहीं तो बीच में जब आप फंसोगे तो बहुत तड़प भी आप में रहेगी। ऊपर के लोकों में, बह्म लोक, पारब्रह्म लोक, स्वर्ग बैकुंठ, माया के लोकों में अगर आप वहां फंसे रह गए तो दूसरे (सन्त) आएंगे, तड़प आपकी जगी रहेगी, भाव प्रेम बना रहेगा तो ले तो जा सकते हैं लेकिन कम ले जाते हैं। ले भी जाए तो मान लो दूसरी जगह छोड़ दे, तीसरी जगह छोड़ दें तो बहुत समय लग जाएगा। इसीलिए प्रयास करो, आपके अहो भाग्य हैं कि आपको मनुष्य शरीर मिला, समरथ गुरु मिले और नाम अनमोल मिला मानो तपाया हुआ सोना मिला हो। इस (नाम) की कीमत लगाओ और इसकी कमाई करो।

हर सतसंगी को दो-तीन प्रार्थनाएं याद होनी चाहिए

महाराज जी ने 21 अक्टूबर 2022 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि हर सतसंगी को कम से कम 2-3 विरह तड़प की प्रार्थनाएं याद होनी चाहिए। और जोर से बोलना चाहिए कि जिससे लोग सुने, समझे और उनके अंदर भी तड़प विरह पैदा हो। ऐसी प्रार्थनाएं बोलते रहना चाहिए। तो यह मन ढीला पड़ेगा। सन्तों ने मन को ही कहा कि इस समय पापी हो गया है। यह फसाये हुए है, इंद्रियों के घाट पर बैठ कर के यह रस दिला रहा है और उधर से हट नहीं रहा है। इंद्रियों के सुख प्राप्त करने की लोगों की इच्छा बार-बार जग रही है तो प्रार्थना से यह मन ढीला पड़ेगा। जब ध्यान सुमिरन भजन में मन न लगे तब प्रार्थना बोलना चाहिए। प्रार्थना में ही थोड़ी देर के लिए मन को लगाना चाहिए। सन्तमत की प्रार्थनाओं का असर पड़ता है। प्रार्थना सुनने पर जब आदमी का ध्यान उन लाइनों पर जाता है तो फिर समझ में बात आने लगती है। बहुत कुछ तो लोग प्रार्थना के माध्यम से ही लोगों को समझा देते हैं। प्रचारक लोग जब गांव में प्रचार के लिए जाते हैं तो प्रार्थना बोलते है। प्रार्थना सुनकर के लोग आ जाते हैं और फिर आपकी बातों को सुन लेते हैं। ऐसे बोलने लग जाओगे तो नहीं आएंगे, प्रार्थना दो-तीन बोल दोगे तो प्रार्थना को सुनकर के ही समझ जाएंगे की क्या कहना चाहते हैं, इनकी प्रार्थना, अन्य प्रार्थनाओं से अलग है तो यह है कौन लोग? तो इनकी बातों को चला जाए, सुना जाए। सतसंग से, ध्यान भजन से पहले भी प्रार्थना बोली जाती है। कम से कम आदमी का भाव तो बने, आदमी दुनिया को तो भूले। इधर उसका ध्यान तो आवे तब तो ध्यान भजन सुमिरन सतसंग सुनने में मन लगाएगा। तो प्रार्थना विरह की हो, प्रभावी हो, भाव से बोली गयी हो, भक्ति जगाने वाली हो। प्रार्थना बराबर बोलते रहो। प्रार्थना बोलते बोलते 4-6 किलोमीटर आदमी पैदल चला जाता है, पता नहीं चलता है। काम करता रहता है, प्रार्थना बोलता रहता है, मुंह चलता रहता है हाथ से खेत काटते रहते हैं, जुताई या कुछ-कुछ करते रहते हो तो दुनिया का काम भी इतना आसान हो जाता है कि आदमी सोच भी नहीं पाता। तो प्रार्थना बहुत काम की चीज है और जरूरी है लोगों के लिए। नाम की कमाई असली चीज है।

सतसंग की बातें साधना में भी मदद करती है

गुरु महाराज पूरे सन्त समरथ गुरु थे। गुरु महाराज से लोग कहे कि नाम दान दे दीजिए तो कहे कि सतसंग सुनो। क्योंकि सन्तमत में सतसंग प्रमुख चीज होती है। सतसंग से ही ज्ञान, विवेक जगता है, मैल छुटता है, गंदगी हटती है। सतसंग यहां का पथ प्रदर्शक है। यहां पर रहना, उठना-बैठना, पारिवारिक प्रेम, आपस का प्रेम सिखाता है, गृहस्थी और समाज को संवारता है। यहां भी मदद करता है। सतसंग की बातें साधना में भी मदद करती है। सतसंग प्रमुख मुख्य चीज होती है। सन्तमत में नाम की डोर को पकड़कर के जाने का रास्ता बताया गया - प्रार्थना सुमिरन ध्यान और भजन। यह सीढी है ऊपर जाने की, मालिक के पास पहुंचने की, अपने घर जाने की तो गुरु महाराज सतसंग सुनाते थे, एकदम जहन में बात जब आ जाती थी कि अब सिवाय इसके उद्धार का कोई रास्ता नहीं है, नाम की कमाई ही भवसागर पार कर सकती है तो नाम लेने की इच्छा लोगों की जग जाती थी। तो नामदान देते थे, मदद करते थे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ